सनातन परंपरा में अक्षय तृतीया तिथि का मांगलिक कार्यों के लिए विशेष महत्व है. इस तिथि को विवाह करना अच्छा माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण आभूषण की खरीद करना शुभ माना जाता है, इससे धन संपत्ति में अक्षय वृद्धि होती है. दरअसल इस दिन अबूझ मुहूर्त भी होता है.
इस अद्भुत कृति का नाम राघवयादवीयम है. इसे लिखने वाले महान प्राचीन कवि श्रीवेंकटाध्वरि हैं. राघवयादवीयम कृति में 30 श्लोकों लिखे हैं. इन श्लोकों आप सीधा पढ़ते हैं तो राम कथा पढ़ी जाएगी और यदि इसे उल्टा पढ़ते हैं तो श्रीकृष्ण कथा सामने आएगी.
सनातन परंपरा व पंचांग के अनुसार बुधवार को बैशाख अमावस्या की तिथि है. इस दिन पितरों का स्मरण कर उन्हें पिंडदान व तर्पण किया जाता है. जो लोग श्राद्ध पक्ष में किसी कारण वश पितृ पूजा नहीं कर पाते हैं, वैशाख मास की अमावस्या को वह भी उनका पूजन कर सकते हैं.
कोरोना वायरस जैसे भीषण संकट के बारे में भविष्यवाणी की चर्चा होती है, तो 15वीं शताब्दी के फ्रांसीसी ज्योतिषी नास्त्रेदमस का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन उनके अतिरिक्त भी कई भविष्यदर्शियों ने दुनिया पर छाए कोरोना संकट के बारे में सावधान किया था. इसमें सन् 1574 में लिखी गई तुलसीदास कृत रामचरित मानस भी शामिल है.
लॉकडाउन के कारण लोग घरों में हैं और इन दिनों रामायाण-महाभारत का प्रसारण हो रहा है. यह दोनों ही कथाएं हमारी संस्कृति-संस्कार और सामाजिक ताने-बाने के सबसे पुराने दस्तावेज हैं. महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग है, जो बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद का महत्व सामने रखता है.
वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की तिथि को आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) कहते हैं. इस व्रत को करने बहुत सौभाग्य और पुण्य मिलता है. यह एकादशी 19 अप्रैल 2020 को सुबह 05 बजकर 51 मिनट तक है. इसके बाद करीब साढ़े आठ बजे तक व्रत का पारण किया जा सकता है.
रामायण में एक युद्ध देवी सीता ने भी लड़ा था. एक असुर के सामने श्रीराम भी असहाय हो गए थे, तब रणभूमि में सीता को भी आना पड़ा था. क्या आपकों पता है कि कुंभकर्ण का एक बेटा भी था. आखिर क्या है यह प्रसंग, कौन था कुंभकर्ण का बेटा.
कोरोना पर आज देशभर को संबोधित करते हुए एक सूक्ति से अपनी बात समाप्त की. उन्होंने कहा, वयं राष्ट्रे जागृयामः. यह एक ऋषि वाणी है. यह महज उद्बोधन नहीं बल्कि एक अलौकिक लड़ाई के लिए चेतना का टॉनिक है.
गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह ने सत्य की रक्षा करते हुए और लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देते हुए सूली पर चढ़कर अपने प्राण त्याग दिए थे. माना जाता है कि गुड फ्राइडे पर प्रभु यीशु की मृत्यु के बाद रविवार के दिन फिर से जीवित हो गए.
ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए उनके विरोधी उन्हें गुलगुता नामक स्थान पर ले गए. वहां उन्हें सलीब पर टांग दिया गया. इसके बाद एक दोष पत्र पढ़ा गया जो पिलातुस ने लिखा था. इस पर लिखा था 'यीशु नासरी यहूदियों का राजा' ईसा को क्रूस पर लगा दिया.
भगवान शिव के अंश अवतार और रूद्र स्वरूप हनुमान जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था. जिस दिन हनुमान जी ने जन्म लिया, उस दिन मंगलवार था. इस वजह से प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी की आराधना की जाती है.
पूर्णिमा उन्नति के चरम उत्कर्ष का प्रतीक है. यह उन्नति अमावस्या से शुरू होती है और क्रम से बढ़ते हुए पूर्णिमा तक पहुंच जाती है. प्रत्येक साल 12 पूर्णिंमाओं का सौभाग्य मिलता है. इनमें चैत्र पूर्णिमा सबसे अधिक विशेष होती है.
बृहदारण्यकोपनिषद् का एक पवित्र मंत्र है तमसो मा ज्योतिर्गमय. यह सोमयज्ञ के दौरान उच्चारित किया जाने वाला प्रधानमंत्र है. यह एक प्रार्थना है, जो कहती है कि मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. इसी मंत्र का दिव्य ज्ञान योगेश्वर कृष्ण कुरुक्षेत्र के रण में अर्जुन को देते हैं. महात्मा बुद्ध भी अप्प दीपो भवः का सदेश देते हैं.
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार स्वामी महावीर का जन्म बिहार के कुंडिनपुर के राज परिवार में हुआ था. बचपन में इन्हें वर्धमान नाम से पुकारा जाता था. बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था. हम उम्र किशोरों के साथ खेलते-खेलते अचानक ही वह ध्यान अवस्था में चले जाते थे.
मां दुर्गा की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. जब देवी का स्वरूप युद्ध में रत होता है तो इनका वाहन सिंह है. लेकिन भक्तों और साधकों दर्शन देते हुए देवी सुखासन में अष्टकमल पर विराजित होती हैं. उनका यह स्वरूप परम शांति देने वाला और मोक्षकारी है. इसलिए माता को सुखदायिनी भी कहा गया है.
साहित्य की ओर नजर डालें तो लिखने वालों ने शक्ति के विषय में खूब बल लगाकर लिखा है. इन सबके बीच सूर्य कांत त्रिपाठी निराला का लिखित काव्य ‘राम की शक्ति पूजा’ स्मरणीय है. हालांकि निराला ने केवल एक पौराणिक गाथा को केवल शब्द ही दिए हैं, लेकिन किसी भी स्वरूप में ईश्वर का स्मरण हर भाव को पवित्र और अमर बना देता है.