नई दिल्लीः नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा. हनुमान चालीसा की यह चौपाई महज प्रार्थना या प्रशंसा गीत नहीं है. रामभक्तों के लिए यह वाकई एक औषधि है, संजीवनी है. 14वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान जब भारत में आततायी शक्तियां प्रबल हो रही थीं, ठीक इसी के सापेक्ष सगुण भक्ति काव्य की धारा भी उत्कर्ष पर थी. जहां एक ओर सूरदास, रसखान जैसे कवि कृष्णभक्ति की डोर थामे थे. तो वहीं बाबा तुलसी दास ने राम नाम का आश्रय ले रखा था. श्रीराम से उनकी डोर जोड़ने वाले भक्त महावीर हनुमान ही थे.
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को जन्मे महावीर
भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को हुआ था तो उनके परम प्रिय भक्त और सेवक हनुमान ठीक पांच दिन बाद चैत्र पू्र्णिमा को जन्मे थे. एक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान श्रीहरि के मोहिनी स्वरूप को देखकर महादेव भी डिग गए थे. कामदेव के जो बाण पहले निष्फल रहे थे, उचित परिस्थित बनने पर उन बाणों की कामाग्नि महादेव को झुलसाने लगी.
इसके फलस्वरूप महादेव से एक ऊर्जा पुंज निकला. यही रुद्रांश था. देवताओं ने इसे मतंग ऋषि के आश्रम में सुरक्षित रख दिया. कालांतर में माता अंजना ने जब पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया तो यही रुद्रांश उन्हें वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ. नियत तिथि पर माता के अंजना के गर्भ से वानर राज केसरी के घर वीर हनुमान की किलकारी गूंजने लगीं.
इसलिए होती है मंगलवार को पूजा
भगवान शिव के अंश अवतार और रूद्र स्वरूप हनुमान जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था. जिस दिन हनुमान जी ने जन्म लिया, उस दिन मंगलवार था. इस वजह से प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी की आराधना की जाती है.
सभी संकटों का नाश करने वाले महावीर संकटमोचन कहलाते हैं. राम काज करिबे को आतुर रहने वाले भक्त शिरोमणि हनुमान ने विवाह नहीं किया. वह बाल ब्रह्मचारी हैं. इसलिए ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने वाले साधकों के लिए हनुमान जी प्रेरणा स्त्रोत हैं.
इसलिए पवन पुत्र हैं अंजनी सुत
वानरराज केसरी के घर जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन में केसरी नंदन और अंजनिसुत पुकारा गया. लेकिन उन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता है. इसका कारण यह है कि देवी अंजना पूर्व जन्म में अप्सरा थीं और पवन देव उनसे प्रेम करते थे. दोनों एक दिन पृथ्वी पर जलविहार करने उतरे.
पहाड़ी निर्जन क्षेत्र में एक झरने के पास अप्सरा अठखेलियां कर रही थीं और पानी उछाल रही थीं. वह जल स्त्रोत एक चट्टान से दो भागों में बंटा था. दूसरी ओर एक ऋषि जलमग्न ध्यान कर रहे थे. अप्सरा के उछालने से पानी उछल कर उन्हें परेशान करने लगा.
तब उन्होंने श्राप दिया कि वानरों की भांति ऐसे उछलकूद मचाती स्त्री, जा तू भी वानरी हो जा. वही वानरी ने अंजना माता के रूप में जन्म लिया. वानर राज केसरी के पवनदेव ईष्ट रहे, उनके पुत्र हनुमान को खुद पवन देव ने अपना पुत्र मानकर वेग प्रदान किया. इस तरह हनुमान पवन पुत्र भी कहलाए.
सूर्यदेव बने गुरु, दिया ब्रह्म का ज्ञान
बाल्यकाल में पेड़ की झुरमुट से दिखते सूर्य को उन्होंने ताजा पका फल समझ लिया और उसे खाने के लिए उछाल लगा दी. कुछ ही देर में पृथ्वी का वायुमंडल पार कर सौर क्षेत्र में पहुंच गए और सूर्य को निगल लिया. विश्व में अंधकार देख इंद्र चकित हुए कि समय से पहले सूर्य ग्रहण कैसे लग गया.
उन्होंने स्थिति की पड़ताल की और बिना सोच बगैर हनुमान पर वज्र प्रहार कर दिया. वज्र उनकी ठुड्डी पर लगा और सूर्य देव मुक्त हुो गए, लेकिन हनुमान मूर्छित हो गए. इससे महादेव भी क्रोधित हो उठे. उन्हें इंद्र को भस्म करने के लिए आतुर देख ब्रह्म देव ने बीच बचाव किया. इसी बीच पवन देव ने विश्व की प्राणवायु रोक दी.
तब सभी देवताओं ने हनुमान को अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान कीं. यमराज ने अपना गदा दिया, ब्रह्म देव ने वेद ज्ञान, इंद्र ने वज्र सा शरीर, महादेव ने आत्मज्ञान दिया. सूर्यदेव ने हनुमान को अपना शिष्य बना लिया.
माता सीता ने दिया यह आशीष
वनवास से लौटने के बाद अवध में राम राज्य था. एक दिन माता सीता श्रृंगार कर रही थीं. हनुमान कौतुक से उन्हें देख रहे थे. सीता माता ने सिंदूर लगाया तो हनुमान ने इसकी वजह पूछी, माता ने कहा, इससे प्रभु प्रसन्न होते हैं और वहां से चली गईं.
इसके बाद भक्त हनुमान ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर मल लिया और इसी वेश में राजदरबार पहुंच गए. वहां जब सभी ने इसका कारण जाना तो माता सीता ने सदा रहो रघुपति के दासा कहकर वरदान दिया कि जो भी तुम्हें इस तरह सिंदूर चढ़ाएगा सहज ही रामकृपा का भागी होगा.
तबसे उन्हें लाल सिंदूर चढ़ाए जाने की मान्यता है. देवी सीता ने अशोक वाटिका में भी हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नव निधि का वरदान दिया था.
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यह हैं प्रिय भोग
हनुमाज जयंती के दिन आप बजरंगबली को प्रसन्न करके अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं. त्रेतायुग में हनुमान जी ने अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम की सेवा में समर्पित कर दिया. चाहे माता सीता का पता लगाना हो या फिर भ्राता लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा करनी हो, संकटमोचन हनुमान सदैव प्रस्तुत रहे.
पवनपुत्र हनुमान जी को हलुवा, गुड़ से बने लड्डू, पंच मेवा, डंठल वाला पान, केसर-भात और इमरती बहुत प्रिय है. पूजा के समय उनको आप इन मिष्ठानों आदि का भोग लगाएं. बूंदी या बूंदी के लड्डू भी चढ़ाते हैं. यह भी ध्यान रखिए कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं.
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ऐसे करें पूजन
चैत्र पूर्णिमा के दिन प्रात:काल में स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद गंगा जल से पूजा स्थान को पवित्र करें और मन में हनुमान जी के साथ प्रभु श्रीराम और माता सीता के नाम का स्मरण करें. अब हाथ में जल लेकर हनुमान जी पूजा और व्रत का संकल्प लें. हनुमान जी की पूजा में ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें और मन, कर्म तथा वचन से पवित्र रहें. संकल्प के बाद पूजा स्थान पर पूरब या उत्तर दिशा में मुख करके आसन पर बैठ जाएं.
इसके बाद हनुमान जी की एक प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें. अब हनुमान जी को पुष्प, अक्षत्, चंदन, धूप, गंध, दीप आदि से पूजा करें. सिंदूर अवश्य अर्पित करें. इसके बाद हनुमान जी को बूंदी के लड्डू, हलुवा, पंच मेवा, पान, केसर-भात, इमरती या इनमें से जो भी हो, उसका भोग लगाएं.
अब हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, श्रीराम स्तुति का पाठ करें. पूजा के समय आप हनुमान कवच मंत्र की एक माला का जाप करें. इससे आपके सभी संकटों का समाधान हनुमान जी करेंगे. अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सर्वकामना पूरक हनुमान मंत्र का जाप करें.
पूजा के अंत में हनुमान जी की आरती करें. हनुमान जी की पूजा के साथ उनके आराध्य श्रीराम और माता सीता की भी पूजा करें. प्रभु श्रीराम की पूजा करने से बजरंगबली अत्यंत प्रसन्न होते हैं.