रामकहानी ऐसी मंथराओं से सतर्क रहने का मर्म भी समझाती है जो गाहे-बगाहे ही आपके वनवास का इंतजाम कर डालती हैं. मंथरा कोई व्यक्ति नहीं बल्कि हर व्यक्ति में छिपी उसकी ईर्ष्या (जलन) की भावना है. मनुष्य जलन तत्व से ही प्रतिस्पर्धी बनता है, लेकिन यह ईर्ष्या जब बढ़ जाए तो भस्म करने लगती है.
धरती पर अनायास हुए परिवर्तन की सारी गाथा कहने एक दूत पाताल की ओर भाग चला. दुर्गम से उसने पृथ्वी की हरियाली का हालसुनाते हुए कहा-राक्षसराज आपका प्रभाव समाप्त हो गया. इस बात से क्रोधित असुर ने उसका शीष काट डाला और खुद ही सारा रहस्य समझने सेना सहित चल पड़ा.
दुर्गमासुर ने देखा कि देवता वेदमंत्रों की शक्ति से संचालित होते है और यज्ञ की हवि से उन्हें ऊर्जा मिलती है तो उसने छल का सहारा लिया. असुर ने कठोर तपस्या कि और ब्रह्मदेव से चारों वेद मांग लिए, संसार से इस ज्ञान को लुप्त करने की मांग कर दी. चैत्र अष्टमी पर पढिए देवी महागौरी के दो दिव्य अवतारों की कथा.
शुंभ-निशुंभ को आता देख देवता समझ गए कि यह युद्ध का अंतिम चरण है. वह भी आकाश में प्रकट हो गए. देवी चंडिका और देवी कालरात्रि ने सभी असुरों का वध कर देवताओं को अभयदान दिया.
दोनों राक्षसों को यमलोक पहुंचाकर युद्ध की देवी ने चंड-मुंड के कटे शीश उठाए और अंबिका स्वरूप को अर्पित करने पहुंचीं. देवी ने अपने इस क्रोधी और वीरांगना शक्ति की भेंट प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार की. इसके बाद उन्होंने देवी को रणचंडिका कहा. वरदान दिया कि आज से मुझसे उत्पन्न आपका यह स्वरूप चंडी देवी के नाम प्रसिद्ध होगा.
शुंभ-निशुंभ के अत्याचार बढ़ने लगे. देवी इसी अवसर की ताक में थीं कि काल स्वयं शुंभ-निशुंभ को उनतक लेकर आए, इसके साथ ही वह उन्हें अवसर भी देना चाहती थीं कि दोनों अपने राक्षस समाज के साथ अपनी भूल स्वीकार कर लें. लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था.
देवी भगवती के जितने भी स्वरूप हैं, सभी के अलग-अलग तात्पर्य हैं और हर रूप में माता भक्तजनों का कल्याण करती हैं. नवरात्र के पांचवे दिन भक्त स्कंदमाता की पूजा करते हैं तो अगला छठवां दिन देवी कात्यायनी को समर्पित होता है. देवी भागवत से निकले भगवती के इन दोनों स्वरूपों की कथा, जिन्होंने देवताओं को अभयदान दिया और शुंभ-निशुंभ जैसे दानवों का वध किया.
जब इस संसार में सिर्फ अंधकार था तब देवी कूष्मांडा ने अपने ईश्वरीय हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी. यही वजह है कि देवी को सृष्टि के रचनाकार के रूप में भी जाना जाता है. इसी के चलते इन्हें 'आदिस्वरूपा' या 'आदिशक्ति' कहा जाता है. नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा के पूजन का विशेष महत्व है.
महर्षि मेघा ने उन्हे समझाया कि मन शक्ति के आधीन होता है,और आदि शक्ति के अविद्या और विद्या दो रूप है, विद्या ज्ञान स्वरूप है और अविद्या अज्ञान स्वरूप. जो व्यक्ति अविद्या (अज्ञान) के रूप में उपासना करते है, उन्हें वे विद्या स्वरूपा प्राप्त होकर मोक्ष प्रदान करती हैं.
राजा सुरथ अपने प्रतिद्वंद्वी महाराज नंदि से हारकर वन में भटक रहे थे. वह पराजय को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे और मोह से विमुख नहीं हो पा रहे थे. उसी वन में एक धनी वैश्य अपनी संतान व पत्नी के तिरस्कार से दुखी होकर भटक रहा था. दोनों दुखी वन में मिले तो मित्र बन गए और साथ-साथ देवी की कृपा प्राप्त की, लेकिन कैसे, जानिए यह दिव्य कथा.
देवी का आगमन किस वाहन पर हो रहा है, यह दिनों के आधार पर तय होता है. हालांकि देवी का वाहन सिंह है, लेकिन यह तभी उनका वाहन है जब वे युद्ध रत होती हैं. भक्तों के पास आने के लिए मां भगवती अलग-अलग वाहनों का चुनाव करती हैं.
नवरात्र का उत्सव साधना का उत्सव है. आत्म चिंतन और प्रकृति से एकाकार का समय है. वर्ष के पहले नौ दिन देवी को समर्पित होते हैं क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ का आधार देवी का स्वरूप ही है.
दुख दरिद्र से छुटकारा पाने के लिए शनिदेव की आराधना की जाती है. लेकिन उनकी पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना पड़ता है. जिनके बिना पूजा अधूरी होती है. आईए आपको बताते हैं शनिदेव की पूजा करते समय बरती जाने वाली कुछ खास बातें-
इस व्रत की पावन कथा खुद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. इस उपवास को करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, चोरी करने वाले, मद्यपान व जुआ खेलने वाले, कुवचन कहने वालों के पाप हर जाते हैं. लेकिन नियम यही है कि पाप कर्म को दोबारा न किए जाने का संकल्प लेते हुए ही भक्तिभाव से व्रत करें. इस व्रत का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि आप पाप करते रहे हैं और हर बार पाप मोचिनी एकादशी का व्रत करते रहें.
अखंड रामायण का पाठ शुभ फलदायक होता है. कहते है कि अखंड रामायण का पाठ सुनने हनुमान आते हैं. अखंड रामायण का पाठ पूरे विधि विधान से करना चाहिए. देखिए, आराधना...
कोरोना के कहर को देखते हुए देश के मंदिरों को बंद किए जाने का फरमान जारी किया जा रहा है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर मंदिर को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है.
मंगलवार को हनुमान जी के लिए व्रत किया जाता है. जानिए, व्रत में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? साथ ही जानिए पांडुपोल हनुमान के दर्शन की महिमा, कहते हैं महाभारत काल में रामभक्त हनुमान ने विश्राम यहीं किया था. देखिए, आराधना...