हर साल मई महीने के आखिर में 'नौतपा' लगता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, साल में एक बार 15 दिन के लिए सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आ जाता है. इसके शुरुआती नौ दिनों के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी कम हो जाती है.
आज यानी 21 जून को सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद से कोरोना त्रासदी खत्म हो सकती है. इस सूर्य ग्रहण को कोरोना के प्रसार का अंतिम दिन माना जा सकता है क्योंकि सूर्य ग्रहण समाप्त होने के उपरान्त कोरोना का बढ़ता हुआ प्रभाव भी कम होना शुरू हो सकता है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना कुछ इसी दिशा में संकेत कर रही है..
ये सज्जन हैं मूल रूप से हिन्दुस्तानी लेकिन रह रहे हैं अमेरिका में. भारत के ज्योतिष की अमेरिका में प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले ये सज्जन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जिन्होंने बताया है कि अगले पंद्रह साल क्या होने वाला है..
सावित्री ने अपने सतीत्व से पति के प्राण, श्वसुर का राज्य, परिवार का सुख और पति के लिए 400 वर्ष की नवीन आयु भी प्राप्त कर ली. यह संपूर्ण घटना क्रम वट वृक्ष के नीचे घटने के कारण सनातन परंपरा में वट सावित्री व्रत-पूजन की परंपरा चल पड़ी.
पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे. महिलाएं भी इसी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए व्रत रखकर पूरे विधि विधान से पूजा करती हैं.
मान्यता है कि इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं. जैन धर्म में मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. यह स्थान प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली के नामसे जा ना जाता है.
कौटिल्य के नाम से विख्यात आचार्य चाणक्य की नीतियां जीवन के युद्ध में भी विजय दिलाने वाली होती हैं. बस शर्त यही है कि उनको सही तरह से समझा भी जाए और सही तरह से अमल में भी लाया जाए.
बदरीनाथ मंदिर में 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में पास के नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था. इस मूर्ति को श्रीविष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है
कर्ण एक महान योद्धा था, लेकिन नियति उसे अधर्म की ओर ले गई. जीवन भर दान धर्म करने वाला कर्ण अपने साथ कई श्राप भी जी रहा था. इसलिए उसकी मृत्यु युद्ध में छल से हुई
रहस्यमय श्रीविद्या के यंत्र स्वरूप को ‘श्रीयंत्र’ या ‘श्रीचक्र’ कहते हैं. यह एकमात्र ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है. इससे मनुष्य के जीवन के सभी लक्ष्य प्राप्त होते हैं.
महाभारत में जयद्रथ वध युद्ध को एक नया और रोचक मोड़ देता है. इसके बाद ही युद्ध का खाका बिल्कुल बदल जाता है और दोनों पक्षों के योद्धा जो अब तक धर्म और संयम के साथ लड़ रहे होते हैं, इसका साथ छोड़ क्रोध और अनीति का भी प्रयोग करने लगते हैं.
तथागत बुद्ध से जुड़ी इतिहास की धरोहर आज भी भारत के चप्पे में बिखरी पड़ी है. इनके सान्निध्य में पहुंचने वाले को यह शांति का संदेश देती है और गीता का जो सूत्र युद्धभूमि से दिया गया था उसे एक बार फिर विस्तार से समझाती है.
भारतीय कैलेंडर के अनुसार अभी वैशाख माह चल रहा है. इस माह की पूर्णिमा अर्थात वैशाख पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्मदिवस पड़ता है इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है..
हिरण्कश्यप ने प्रह्लाद को जीवित जलाने की नाकाम कोशिश की. इस प्रक्रम में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी जल मरी. भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद को बार-बार बचा लिया.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता का जन्म जनकपुर में हुआ था. यहां माता सीता का मंदिर बना हुआ है. बताया जाता है कि मंदिर क़रीब 4860 वर्ग फ़ीट में फैला हुआ है. मन्दिर के विशाल परिसर के आसपास लगभग 115 सरोवर हैं. इसके अलावा कई कुण्ड भी हैं.
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को माता जानकी की उत्पत्ति हुई. इस साल 2 मई को जानकी नवमी मनाई जाएगी. इस दिन लोग माता जानकी के लिए व्रत रखते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है.
कोरोना महामारी, पूरी दुनिया में तनाव, दंगे, आर्थिक मंदी, भुखमरी जैसी वजहों से साल 2020 को बेहद बुरा बीत रहा है. लेकिन इस वर्ष के घातक रहने के आसमानी संकेत पहले से ही मिलने लगे थे. क्योंकि तामसिक शक्तियों को बढ़ाने वाले ग्रहण काल की इस साल में भरमार है. दुनिया के महान ज्योतिषी ने भी 2020 में विनाश का संकेत पहले से दे दिया था.
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे
सगुण भक्ति शाखा में कृष्ण भक्त संत सूरदास का जन्म वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था. इस वर्ष यह तिथि 28 अप्रैल (आज) है. सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के उपासक और ब्रजभाषा के महत्वपूर्ण कवि हैं