नई दिल्लीः प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर देश भर ने दीपक जलाकर कोरोना के कारण फैले हुए अंधकार और निराशा को दूर करने की कोशिश की. दीपक का प्रकाश हमें आशावान बनाता है. उसकी ऊर्जा सकारात्मकता की ओर ले जाती है. संकट की इस घड़ी में विरोधी पहले से ही इसके खिलाफ में लिख और बोल रहे थे, अब जब दीप जल चुके हैं तब भी उनका यह विरोध जारी है. विरोध का क्या है वह तो होता ही रहा है, लेकिन दीपक की बाती सदियों, युगों और अनगिनत काल खडों से जल रही है. वेदज्ञान से लेकर आज तक दीपक प्रकाशिक है. क्या कहती है भारतीय मनीषा, डालते हैं एक नजर-
देशभर ने जलाए दीपक
पीएम मोदी ने देश की जनता से 5 अप्रैल रविवार रात 9 बजे 9 मिनट के लिए दीपक जलाने की अपील की थी. उनके इस आह्वान को देश की जनता ने सचाई में बदल दिया और घर के चौबारे, छत, बालकनी में जलते दीप सजाए गए.
राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, केरल तक दीप जलाए गए. ऋग्वेदकाल से कलयुग तक सनातन परंपरा में दीपक का बहुत महत्व बताया गया है.
सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है दीपक
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दीपक विषम संख्या में जलाए जाते हैं और प्रत्येक संख्या का एक प्राकृतिक संदेश है. जैसे एक दीपक जलाने का अर्थ है परमसत्ता एक है. तीन दीपक त्रिगुण और त्रिदोषों को दर्शाते हैं. (लेकिन देवपूजा में तीन दीपक जलाना निषिद्ध है)
इसी तरह पांच दीपक पंच भूतों और पंच तत्वों का प्रतीक हैं. घी का दीपक लगाने से घर में सुख समृद्धि आती है. इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई रूप से निवास होता है. घी को पंचामृत यानी पांच अमृतों में से एक माना गया है. दीपक की ज्योति सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह लाती है.
आरोग्य का फल देता है दीपक
समुद्र मंथन से निकले वैद्य धन्वन्तरि ने अमृत के साथ-साथ दीपक का महत्व आयुर्वेद में बताया है. आसन व प्राणायम की क्रिया से पहले घी का दीपक जलाकर रखने से वायु शुद्ध होती है और इस दौरान शरीर के रोम से निकलने वाली टॉक्सिक गैसें दीप ज्योति में जलकर भस्म हो जाती हैं.
दीपक अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है, इसी वजह से घर में सुबह-शाम दीपक का प्रकाश फैलाना चाहिए. अग्नि पुराण के अनुसार सूर्योस्त के बाद मुख्य द्वार के पास दीपक लगाने से उस घर में रहने वाले लोगों की उम्र बढ़ती है और रोग खत्म होने लगते हैं. इसके साथ ही दीप ही लक्ष्मीस्वरूप भी है. श्रीहरि उन्हें एक नाम दीपकांति और दीपाक्षी भी पुकारते हैं.
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ऋग्वेदिक काल से कलयुग तक दीपक
ऋग्वेद काल से अग्नि प्रज्वलित करने यानी दीपक जलाने की परंपरा चली आ रही है. बाद में अलग-अलग कारणों से ये परंपरा पर्वों के साथ जुड़ गईं. त्रेतायुग में श्रीराम के अयोध्या आने पर और द्वापरयुग में श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस को मारने पर दीपक जलाए गए थे.
इसके बाद कलयुग में दीपावली पर्व के दौरान सुख-समद्धि की कामना और उल्लास प्रकट करने के लिए 5 दिनों तक दीपक जलाए जाते हैं. वहीं अग्नि पुराण, ब्रम्हवैवर्त पुराण, देवी पुराण, उपनिषदों तथा वेदों में गाय के घी तथा तिल के तेल से ही दीपक जलाने का विधान है.
महादेव का ज्योति स्वरूप है दीप
महर्षि दधिची को परम सत्ता का ज्ञान महादेव से ही हुआ था. महादेव उनके गुरु हैं. जब महर्षि दधिची ने परमेश्वर परमसत्ता के आकार रंग-रूप व अन्य गुणों के बारे में पूछा तो महादेव ने उन्हें निराकार बताया. यह रहस्य जब समझ से परे हुआ तो महादेव ने एक ज्योति की ओर इंगित करते हुए कहा कि वही है परमात्मा का स्वरूप.
अभी जो जल रहा है वह ईश्वर तत्व है, जब यब बुझ जाएगा तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह समाप्त हुआ. वह फिर भी रहेगा. अनुकूल परिस्थितियां होते ही फिर ज्योति प्रकट हो जाएगी. दीप जलाने के लिए जो जतन करने पड़ते हैं, वैसा ही उद्योग परमसत्ता को पाने के लिए जीवात्मा करती है. तब इस मंत्र का प्रतिपादन होता है
ओम नमः सच्चिदानंदः, रूपाय परमात्मने,
ज्योतिर्मय स्वरूपाय विश्व मांगल्य मूर्तये।
पंच तत्वों का प्रतीक है मिट्टी का दीपक
मिट्टी का दिया पंच तत्व का प्रतीक है, इसे मिट्टी को पानी में गला कर बनाते हैं जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है, उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं फिर आग में तपाकर बनाया जाता है.
घी के अंदर एक सुगंध होती है जो जलने वाले स्थान पर काफी देर तक रहती है जिसकी वजह वह स्थान शुद्ध रहता है और इससे कई तरह की बीमारियों से भी बचाव होता है. इसके अलावा आध्यात्म के अनुसार हमारे शरीर में 7 ऊर्जा चक्र होते हैं, घी का दिया जलाने से यह चक्र जागृत हो जाते हैं. इनके साथ ही शरीर में चंद्र, सूर्य तथा सुषुम्ना नाड़ी को भी शुद्ध करता है.
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तमसो मा ज्योतिर्गमय से अप्प दीपो भवः तक
बृहदारण्यकोपनिषद् का एक पवित्र मंत्र है तमसो मा ज्योतिर्गमय. यह सोमयज्ञ के दौरान उच्चारित किया जाने वाला प्रधानमंत्र है. यह एक प्रार्थना है, जो कहती है कि मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. इसी मंत्र का दिव्य ज्ञान योगेश्वर कृष्ण कुरुक्षेत्र के रण में अर्जुन को देते हैं. वह कहते हैं कि कर्म फल में मत पड़ो अर्जुन, उठो. युद्ध करो अर्जुन. जीवन का सार अंधकार से प्रकाश की ओर गति पाने का है.
प्रवज्या धारण करने के बाद जब महात्मा बुद्ध वन-वन भटक रहे थे और ज्ञान की खोज में लगे हुए थे, तब उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ अप्प दीपो भवः, यानी अपना दीपक खुद बनो. यही ज्ञान भारत की थाती है. हमारी समृद्धि है और हमारा विश्वास है. दीप ज्योति नमोस्तुते.
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