नई दिल्लीः पूर्णिमा, यानी कि पूर्णता के अहसास का दिन. भारतीय मनीषा ने जीवन पद्धति और दर्शन को प्रकृति की गोद में बैठकर सीखा है. इसलिए इससे उपजी सनातन परंपरा दर्शन को अनुकरण करने की नहीं बल्कि इसे जीने की कामना करती है.
काल, खंड और समय की गणना में तिथि क्रम का महत्वपूर्ण स्थान है और इसी बढ़ती तिथि के कारण एक मास में पूर्णिंमा और अमावस्या का समय आता है. कितनी सटीक गणना है कि जो कि एक जरूरी जीवन दर्शन केवल तिथियों के बढ़ते क्रम में सामने रख देती है. पूर्णिमा उन्नति के चरम उत्कर्ष का प्रतीक है. यह उन्नति अमावस्या से शुरू होती है और क्रम से बढ़ते हुए पूर्णिमा तक पहुंच जाती है.
इसलिए महत्वपूर्ण है पूर्णिंमा
उन्नति के उत्कर्ष का दिन साधारण नहीं हो सकता है. इसलिए पूर्णिमा तिथि के दिन व्रत-दान व अनुष्ठान के संकल्प लिए जाते हैं. प्रत्येक साल 12 पूर्णिंमाओं का सौभाग्य मिलता है. इनमें चैत्र पूर्णमा सबसे अधिक विशेष हुोती है. पहली बात तो यह है कि चैत्र पूर्णिमा वर्ष की पहली पूर्णिमा होती है.
यह उत्कर्ष का प्रारंभ दिवस होता है. प्रारब्ध का प्रारंभ दिवस. कहते हैं कि श्री कृष्ण ने इसी दिन रास की शुरुआत की थी और शरद पूर्णिमा के दिन महारास का महानृत्य किया था. फिर कार्तिक पूर्णिमा को उन्होंने सभी गोपिकाओं क दिव्य ज्ञान दिया और फाल्गुन पूर्णिमा को महारास का उत्कर्ष हुआ.
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श्रीहरि को विशेष प्रिय है पूर्णमा
पूर्ण चंद्र से आलोकित यह दिवस श्री हरि को विशेष प्रिय है. उन्होंने इसी रूप मं चंद्र देव की उत्पत्ति की थी. दग्ध नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ति के बाद विश्रांति के दौरान जब उनका हृदय अत्यंत शीतल था तो उनके हृदय से एक तेज प्रकाश फूट पड़ा. इस प्रकाश में गर्मी नहीं थी, यह आंखों को चौंधियाता नहीं था और सारा संसार इसकी दूधिया रौशनी में क्षीर सागर सा दमक उठा.
श्री हरि के मन से पर राज करने वाली यह किरणें चंद्र किरणें कहलाईं और चंद्रमा को वरदान मिला कि तुम्हारे जीवन का यह दिन मुझे समर्पित रहेगा. इसलिए इस दिन दान-स्नान, अनुष्ठान और हरिकथा कहने-सुनने की परंपरा है.
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चैत्र पूर्णमा के लाभ
इस दिन भगवान सत्य नारायण की पूजा कर उनकी कृपा पाने के लिए सत्यनारायण की कथा सुनते हैं और पूर्णिमा का उपवास रखते हैं. इससे घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है. इस दिन रात्रि के समय चंद्रमा की पूजा की जाती है। यदि कुंडली में चंद्र दोष है तो वह दूर हो जाता है.
चैत्र पूर्णिमा पर नदी, तीर्थ, सरोवर और पवित्र जलकुंड में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन दान, जप, हवन और व्रत भी किया जाता है. इस दिन गरीब व्यक्तियों को दान देना चाहिए. कहते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में महारास रचाया था. अत: इस दिन उनकी पूजा करने उन्हें भोग लगाने से जीवन में सुख और शांति की स्थापना होती है.