नई दिल्लीः शक्ति की अधिष्ठात्री देवी का उत्सव जारी है. इसके साथ ही यह मर्यादा पुरुषोत्तम की अवतार कथा के शुभारंभ का भी समय है. सनातन परंपरा का यह उत्सव कई पीढ़ियों, सदियों और युगों से चला आ रहा है. दरअसल शक्ति का यह पर्व भले ही देवी स्वरूप में रूपक है, लेकिन इससे अलग यह हमारी अंदरूनी आकंक्षा का ही प्रतीक पर्व है.
आखिर कौन है जो शक्तिमान बनना नहीं चाहता है. सृष्टि की शुरुआत से ही यह भावना चारों तरफ व्याप्त है. भौतिक विज्ञान का सबसे जरूरी तथ्य बल (फोर्स) और ऊर्जा ही शक्ति है. फिर चाहे आप बिग बैंग की व्याख्या कर लीजिए, प्रलय का सिद्धांत समझ लीजिए या फिर कयामत के दिन का इंतजार कर लीजिए. शक्ति या ऊर्जा से बात शुरू होगी और इसी पर समाप्त.
कवि निराला ने लिखी राम की शक्ति पूजा
साहित्य की ओर नजर डालें तो लिखने वालों ने इस पर खूब बल लगाकर लिखा है. इन सबके बीच सूर्य कांत त्रिपाठी निराला का लिखित काव्य ‘राम की शक्ति पूजा’ स्मरणीय है. हालांकि निराला ने केवल एक पौराणिक गाथा को केवल शब्द ही दिए हैं, लेकिन किसी भी स्वरूप में ईश्वर का स्मरण हर भाव को पवित्र और अमर बना देता है.
वैसे भी काव्य लिखने वालों में निराला अलग ही सूर्य जैसी चमक रखते हैं, उस पर 1936 में लिखित यह पद्य पंक्तियां आज भी सार्थक हैं. शक्ति पूजा के चल रहे इस समय में इस कवितावली की बात करना सबसे मौजूं है. इसी की बात करते हुए त्रेतायुग में घटित इस सुंदर घटना पर डालते हैं नजर-
श्रीराम ने लिया शक्ति पूजा का व्रत
रचना का मजमून यह है कि श्रीराम ने वानर दलों के साथ लंका पर हमला बोल दिया है. अब राम-रावण युद्ध जारी है और इसी दौरान आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की तिथियों का समय है. युद्ध से पहले हर दिन श्रीराम देवी दुर्गा की आराधना करते हैं. देवी एक स्वरूप प्रृकृति का है और दूसरा पार्वती का.
पार्वती शिवप्रिया हैं और प्रकृति स्वयं धरती हैं. नौ दिन तक चला राम का अनुष्ठान दसवें दिन यानी दशमी को फलीभूत होता है और रावण मारा जाता है. निराला ने श्रीराम को ईश्वर तत्व के आकाश से उतारकर धरातल पर ला खड़ा किया है, जहां वह हंसते हैं, घबराते हैं, शंका भी करते हैं और चिंतित भी होते हैं.
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परिणाम हीन हो रहा था राम-रावण युद्ध
शाम हो चली है और युद्ध समाप्त होने पर जहाँ राक्षसों की सेना में उत्साह व्याप्त है वहीं भालु-वानरों की सेना में खिन्नता है. वे मंद और थके-हारे चल रहे हैं. कोई निर्णय न निकलता देख निराश हैं. सोच रहे हैं कि सुग्रीव और जाम्वंत जी कल की कोई और योजना बनाएं जो सार्थक हो जाए. इस दृष्य को निराला शब्दों में ढालते हैं.
लौटे युग-दल ! राक्षस-पद-तल पृथ्वी टलमल’
विंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकल
वानर वाहिनी खिन्न,लख-निज-पति-चरण-चिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविर-दल ज्यों विभिन्न
है अमा निशा: उगलता गगन घन अंधकार
खो रहा दिशा का ज्ञान स्तब्ध है पवन चार
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल
भूधर ज्यों ध्यान मग् केवल जलती मशाल।
वानर सेना में विजय को लेकर शंका
लंकेश रावण को महाशक्ति का वरदान है. यही कारण है कि श्रीराम के समस्त शस्त्र विफल हुए जा रहे हैं. यह दृश्य मर्यादा पुरुषोत्तम निराशा के भंवर में डूबते-उतराते है. रावण आदिदेव के वरदान से गर्वोन्मत हो रहा है. इधर श्रीराम को निराशा और अवसाद में घिरे मानस पटल में बार-बार सीता की छवि दिखाई दे रही है.
राजा जनक का उपवन सीता की प्रथम दृष्टि की झलक की यादे मन को उत्साहित करने के सुंदर सफल भाव संयोजन निराला की लेखनी से मुखरित हुई है. सीता की यादें श्रीराम को रोमांचित कर जाती हैं. दुबारा शिव धनुष तोड़ने की शक्ति की यादों से प्रफुल्लित तन मन पुलकित हो जाता है.
देवी सीता की यादें श्री राम की आशा, विश्वास रूपी मुस्कान में परिवर्तित होने लगती हैं. इसके बाद भी राम को विजय को लेकर शंका होती है तो वह अपने दल में मंत्रणा करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करते हैं.
देखा है महाशक्ति रावण को लिए अंक
लांछन को लेकर जैसे शशांक नभ में अशंक;
हत मंत्र-पूत शर सम्वृत करती बार-बार
निष्फल होते लक्ष्य पर छिप्र वार पर वार
विचलित लख कपिदल क्रुद्ध, युद्ध को मै ज्यो-ज्यो ,
झक-झक झलकती वह्नि वामा के दृग त्यों –त्यों
पश्चात् ,देखने लगी मुझका बंध गए हस्त
फिर खिंचा न धनु , मुक्त ज्यों बंधा मैं, हुआ त्रस्त !
जाम्बवंत जी ने दी शक्ति पूजा की सलाह
श्री राम को चिंतित देख अब जामवन्त जी आगे आते हैं. सलाह देते हैं कि तपस्या में अद्भुत शक्ति है. आप प्रयास करें कि महाशक्ति आपके वश में हो. इस तरह तय होता है कि यदि रावण पर शिव कृपा है तो श्रीराम शिवप्रिया को मनाएंगे. शक्ति का वरदान लेंगे. इसके बाद जाम्बवंत कहते हैं कि जो शक्ति रावण ने अर्जित की है वही राम भी अर्जित करें.
जाम्बवंत का यह विचार सभी को पसंद आता है. तब राम ने देवी का ध्यान किया और महिषासुर मर्दिनी की आराधना का संकल्प किया. उन्होंने कहा कि मां, मैं आपका संकेत समझ गया हूं, अतः अब इसी सिंह भाव से आपकी आराधना करूंगा. तब राम ने देवी के सभी स्वरूपों की आराधना और व्रत अनुष्ठान करते हैं.
‘माता, दशभुजा, विश्व-ज्योति; मै हूँ आश्रित;
हो विद्ध शक्ति से है महिषासुर खल मर्दित;
जन-रंजन–चरण–कमल-तल, धन्य सिंह गर्जित;
यह मेरा प्रतीक मातः समझा इंगित;
मैं सिंह, इसी भाव से करूंगा अभिनंदित।
बार-बार गायब होने लगे कमल पुष्प
राम अपनी शक्ति पूजा शुरू कर देते हैं, और इसी कड़ी में एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वह देवी को 108 कमल पुष्प चढ़ाएंगे. नवमी के दिन लिए गए इस संकल्प पर देवी दुर्गा उनकी परीक्षा लेने लगती हैं. मंत्रों के साथ राम एक-एक कमल पुष्प अर्पित करते जाते हैं.
देखते हैं कि माला का एक बीज बाकी है और पुष्प समाप्त हो चुके हैं यानी सिर्फ 107 कमल ही अर्पित हुए. राम फिर से कमल चढ़ाना शुरू करते हैं और इस बार भी एक कमल कम निकलता है.
इस तरह नौ बार यह प्रक्रिया दोहराने के बाद राम बाण उठा लेते हैं. कहते हैं कि उन्हें भी कमल नयन कहते हैं तो क्यों न 108वें कमल की जगह अपना एक नेत्र अर्पण कर दूं. यह संकल्प देख देवी खुद प्रकट होती हैं और राम का हाथ पकड़ लेती हैं. इस तरह राम की शक्ति पूजा अपनी उचित फल के साथ समाप्त होती है. इस प्रसंग को निराला ने बेहद निराले अंदाज में काव्य के रूप में ढाला है.
‘यह है उपाय’ कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन-
“कहती थी माता मुझे सदा राजीव नयन।
दो नील कमल हैं शेष अभी यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।
कहकर देखा तूणीर ब्रह्म –शर रहा झलक
ले लिया हस्त वह लक-लक करता महाफलक;
ले अस्त्र थामकर दक्षिण कर दक्षिण लोचन
ले अर्पित करने को उद्दत हो गए सुमन।
देवी ने दिया वरदान
श्री राम की शक्ति पूजा पूरी तरह सफल होती है. देवी उनके धनुष-बाण छीन लेती हैं और अभय का वरदान देती हैं. वह कहती हैं कि मैं ही आपकी योगमाया शक्ति हूं, और आपके आग्रह के कारण ही अब तक युद्ध क्षेत्र में प्रकट नहीं हो सकी थी. अब मैं पुनः आपके आज्ञा चक्र में स्थित होकर आपके द्वारा पाप का नाश कराऊंगी.
यह मेरा संकल्प है. देवी मां के वचनों को सुनकर श्रीराम और उनकी सेना निर्भय हो जाती है और दशमी के दिन दुराचारी रावण का अंत होता है.
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