नई दिल्लीः तिथियों में एकादशी स्वयं में विष्णु स्वरूप है, इसलिए श्रीहरि को एकादशी तिथि अति प्रिय भी है. शनिवार को श्रीहरि पूजा व व्रत विधान में कामदा एकादशी का व्रत किया जाएगा. चैत्र शुक्ल एकादशी को आने वाला यह व्रत कामनाओं की पूर्ति का सरल माध्यम है.
सिर्फ कामनाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सिद्धि प्राप्त करने वाले साधक मोह उत्पन्न करने वाली कामनाओं के नाश के लिए भी इस व्रत को करते हैं. इससे भी अधिक यह व्रत पुण्य फलों को प्रदान करने वाला है. इसका प्रताप इतना अधिक है कि जीव राक्षस योनि से भी मुक्त हो जाता है.
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पापनाशक है यह व्रत
कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है.
कहते हैं कि संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. यह एकादशी चैत्र नवरात्र और रामनवमी के बाद आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है. इस बार कामदा एकादशी 4 अप्रैल को है.
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कामदा एकादशी का महत्व
सनातन परंपरा में प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व है. कामदा एकादशी वर्षभर के एकादशी व्रतों की शुरुआत है. यह वह समय होता है जब नवान्न घर में आ जाता है और प्रकृति धीरे-धीरे शीतलता से ऊष्णता की ओर बढ़ रही होती है. इसलिए इस व्रत को करने से आहार चक्र भी संतुलित होता है.
यह इसका वैज्ञानिक महत्व है. आध्यात्मिक महत्व देखें तो व्यक्ति को सभी संकटों और पापों से मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं यह एकादशी सर्वकार्य सिद्धि और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है.
क्लेश-उपद्रव का करता है नाश
मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं अगर इस एकादशी का व्रत रखें तो उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है. कुंवारी कन्याओं की विवाह में आ रही बाधा दूर होती है. घर में अगर क्लेश है तो वो भी इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है. इस व्रत को करने से घर में सुख-संपन्नता और प्रसन्नता आती है.
ऐसे करें पूजन
एकादशी तिथि को तड़के सुबह उठकर तीर्थ में स्नान करें. अथवा जल में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है. नहाने के बाद घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें. अब भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत और तिल से पूजन करें.
श्रीहरि पूजा में तुलसी दल अवश्य रखें. इसके बाद सत्य नारायण की कथा का पाठ करें. अब श्रीहरि की आरती उतारकर उन्हें भोग लगाएं. एकादशी व्रत के दिन अनाज नहीं खाना चाहिए. अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद पारण करें.
यह है इस व्रत की कथा
पौराणिक काल में भोगीपुर नाम के नगर में राजा पुंडरीक का राज्य था. उनका राज्य हर प्रकार से सुखी था और सामान्य जनों के साथ, नाग, गंधर्व, किन्नर यक्ष आदि भी निवास करते थे. इसी राज्य में दो गंधर्व ललित और ललिता भी रहते थे. इस दंपती के कंठ में सरस्वती के सुर बसते थे.
एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई. इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे. इस त्रुटि को कर्कट नाम के नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी. राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया.
ऐेसे मिली श्राप से मुक्ति
ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ. वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी. श्रृंगी ऋषि बोले, 'हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है. कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा.
ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ.