नई दिल्लीः भीषण गर्मी में वह उस विशाल वटवृक्ष के नीचे बैठी थी. पति का सिर उसकी गोद में था और उनकी निद्रा थी कि टूट ही नहीं रही थी. माथे पर पसीने की बूंदे धारा बनकर चिंता से बनी रेखाओं में बहने लगी थीं. वह लगातार पति के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्हें उठाने का प्रयत्न कर रही थी, सहसा उसे याद आया कि आज विवाह को एक साल पूरे हुए. अभी वह विवाह की सुखद स्मृतियों की ओर बढ़ ही रही थी कि सहसा एक भयानक आकृति उसे अपनी ओर आते दिखी.
सावित्री ने सत्यवान से किया विवाह
सावित्री को याद हो आई देवर्षि नारद की वह भविष्यवाणी जो उन्होंने विवाह के विषय में की थी. पिता अश्वपति को संबोधित करते हुए कहा था कि महाराज सत्यवान अल्पायु है, इसलिए इस संबंध को रोक लीजिए. इस पर सावित्री ने अपनी मां की शिक्षाओं के खंडन का भय दिखाया.
वह दृढ़ होकर बोली, सती, सनातनी स्त्रियां अपना पति एक बार ही चुनती हैं. इस तरह सावित्री साल्व देश के निर्वासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की गृहलक्ष्मी बनकर तपोवन में आ गई.
जब पूरी हो गई पति की अल्पायु
आज देवर्षि के बताए अनुसार वही एक वर्ष पूर्ण होने वाली तिथि है, जिस दिन उसके पति का परलोक गमन होना विधाता ने निश्चित किया है. तभी तो सुबह से विचलित मन लिए सावित्री सत्यवान के साथ ही वन में चली आई थी. अभी वह आम के पेड़ से लकड़ियां चुन ही रहे थे कि भयंकर पीड़ा और चक्कर आने के कारण वह भूमिशायी हो गए.
तबसे सावित्री उन्हें जगाने का प्रयत्न कर रही थी. इन्हीं उलझनों में विचरते हुए वह काली छाया अब सामने आकर प्रकट हो गई. यह कोई और नहीं साक्षात यम थे. काल रूपी भैंसे पर सवार यमराज.
यमराज ने हर लिए सत्यवान के प्राण
वह सत्यवान के आत्म स्वरूप को पाश से खींच कर ले जाने लगे. सावित्री ने फिर भी साहस करते हुए परिचय पूछा. हे देव, आप कौन हैं और मरे पति की ज्योति क्यों खींच ली आपने. यम ने परिचय देते हुए कहा कि मैं यमराज हूं. बहुत देर से मेरे दूत काली छाया बनकर तुम्हारे पति के प्राण हरण करने की चेष्टा कर रहे हैं, लेकिन तुम्हारे सतीत्व के कारण निकट नहीं आ पा रहे थे. इसलिए मुझे स्वयं आना पड़ा. इतना कहकर वह चलने लगे. सावित्री को अपने संकट का हल मिल गया था.
सावित्री भी यम के पीछे चल पड़ी
इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी. तब यमराज ने कहा, ऐसा असंभव हे पुत्री, सावित्री ने देवी सीता का उदाहरण दिया कि वह भी तो पति संग वन गईं थीं, तो मैं यमलोक भी चलूंगी.
या तो आप मुझे भी साथ ले चलें, या फिर मेरे भी प्राण ले लें. यमराज प्रकृति के नियम विरुद्ध सावित्री के प्राण नहीं ले सकते थे. उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता तू मनचाहा वर मांग ले.
धरा पर देवतुल्य और पूजनीय है वट वृक्ष, इसलिए होती है पूजा
मांग लिया परिवार का संपूर्ण सुख
तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली. यमराज ने कहा तथास्तु, लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी. तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए. उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों. यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो. तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों. यमराज ने कहा तथास्तु.
इसलिए होती है वट सावित्री पूजा
यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे. सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं. आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है. यह सुनकर यम सोच में पड़ गए कि अगर सत्यवान के प्राण वह ले जाएंगे तो उनका वर झूठा होगा.
तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया. इस तरह सावित्री ने अपने सतीत्व से पति के प्राण, श्वसुर का राज्य, परिवार का सुख और पति के लिए 400 वर्ष की नवीन आयु भी प्राप्त कर ली. इस कथा का विवरण महाभारत के वनपर्व में मिलता है. यह संपूर्ण घटना क्रम वट वृक्ष के नीचे घटने के कारण सनातन परंपरा में वट सावित्री व्रत-पूजन की परंपरा चल पड़ी.
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