नई दिल्लीः जिस तरह श्रीराम जन्मभूमि के रूप में अयोध्या की प्रसिद्धि है. ठीक उसी तरह देवी सीता के जन्म व पालन स्थल के तौर पर जनकपुरी का महत्व है. आज के समय में जनकपुरी नेपाल में स्थित है. देवी सीता के जीवन से जुड़े स्थल भी यहीं आस-पास हैं. इनमें धनुष मंदिर, मणि मंडप और रंगभूमि प्रसिद्ध हैं. देवी सीता के स्थलों के तौर पर श्रद्धालु आज भी यहां पूजन करते हैं, विवाहित स्त्रियां अपनी प्रेरणा मानते हुए देवी सीता के इन स्थानों पर शीष झुकाती हैं. सीता नवमी के मौके पर इन्हीं स्थलों पर डालते हैं एक नजर-
जनकपुरः जहां पली-बढ़ीं और खेलीं देवी सीता
वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता का जन्म जनकपुर में हुआ था. यहां माता सीता का मंदिर बना हुआ है. बताया जाता है कि मंदिर क़रीब 4860 वर्ग फ़ीट में फैला हुआ है. मन्दिर के विशाल परिसर के आसपास लगभग 115 सरोवर हैं. इसके अलावा कई कुण्ड भी हैं. इस मंदिर में मां सीता की प्राचीन मूर्ति है जो 1657 के आसपास की बताई जाती है. यहां के लोगों के अनुसार एक संत यहां साधना-तपस्या के लिए आए, इस दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली, जो सोने की थी. उन्होंने ही इसे वहां स्थापित किया था.
टीकमगढ़ की महारानी ने कराया नवनिर्माण
कई वर्षों बाद टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु जनकपुर में दर्शन के लिए आईं थीं. उन्हें कोई संतान नहीं थी. वहां पूजा के दौरान उन्होंने यह मन्नत मांगी थी कि उन्हें कोई संतान होती है तो वो वहां मंदिर बनवाएंगी. संतान प्राप्ति के बाद वो फिर आईं और करीब 1895 के आसपास मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. 16 साल में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ था. उस समय इस मंदिर के निर्माण में नौ लाख रुपये खर्च हुए थे. इसलिए इसे नौलखा मंदिर भी कहते हैं.
कैसे केदारनाथ में प्रगटे थे महादेव, जानिए पांडवों से जुड़ी यह प्राचीन कथा
रंगभूमिः जहां हुआ था धनुष भंग
वाल्मीकि रामायण में जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट एक मैदान है, जो रंगभूमि कहलाता है. लोक मान्यता के अनुसार इसी मैदान में देश-विदेश के बलशाली राजाओं के बीच महादेव जी का पिनाक धनुष तोड़कर श्रीराम ने सीता जी से विवाह की शर्त पूर्ण की थी. रामचरित मानस में भी इसे रंगभूमि कहा गया है. ये नेपाल का अत्यंत प्रसिद्ध मैदान है. सालों भर यहां तरह तरह के आयोजन होते रहते हैं.
धनुषाः यहां आज भी हैं टूटे धनुष के अवशेष
धनुषा नेपाल का प्रमुख जिला है. इस जिले में धनुषाधाम स्थित है जो कि जनकपुर से करीब 18 किमी दूर है. धनुषा धाम में आज भी शिवजी के पिनाक धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में मौजूद हैं. वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था.
धनुष के टुकड़े चारों ओर फैल गए थे. उनमें से कुछ टुकडे़ यहां भी गिरे थे. मंदिर में अब भी धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में माने जाते हैं. भगवान शंकर के पिनाक धनुष के अवशेष की पूजा त्रेता युग से अब तक अनवरत यहां चल रही है.
मणि मंडप, रानी बाजारः जहां हुआ था चारों भाइयों का विवाह
त्रेतायुग में मिथिला नरेश सीरध्वज जनक के दरबार में अयोध्या नगरी से बारात आई थी. श्री राम सहित चारों भाइयों का विवाह यहीं हुआ. जिस स्थान पर जनकपुर में मणियों से सुसज्जित वेदी और यज्ञ मंडप निर्मित हुआ वह आज वर्तमान में रानी बाजार के निकट है.
यह स्थल मणि मण्डप के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन आसपास कहीं कोई मणि निर्मित परिसर नहीं है. पास में वही पोखर है जहां चारों भाइयों के चरण पखारे गए थे, तथा विवाह की यज्ञ वेदी भी बनी हैं.
अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव जानकी नवमी