IAS Officer की पोस्ट हुई वायरल, बोले- ऑफिस में आपका कोई दोस्त नहीं, काम करिए, सैलरी लीजिए और...
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IAS Officer की पोस्ट हुई वायरल, बोले- ऑफिस में आपका कोई दोस्त नहीं, काम करिए, सैलरी लीजिए और...

IAS Officer Post: सोशल मीडिया पर एक कोट काफी पॉपुलर रहा है, जिसे आईएएस अधिकारी अवनीश शरण (IAS Officer Awanish Sharan) ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है. इस कोट को शेयर करते हुए उन्होंने पूछा कि क्या आप इससे सहमत हैं या फिर नहीं?

 

IAS Officer की पोस्ट हुई वायरल, बोले- ऑफिस में आपका कोई दोस्त नहीं, काम करिए, सैलरी लीजिए और...

IAS Officer Tweet Viral: भारत में लाखों लोग रोजाना ऑफिस जाते हैं और फिर अपना पूरा वक्त वहीं पर देते हैं. इस दौरान उनके कलीग अच्छे दोस्त बन जाते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपना काम से काम रखते हैं. हालांकि, कुछ लोगों का अनुभव बेहद ही बुरा होता है जिसकी वजह से वह ऑफिस में अकेला ही रहना पसंद करते हैं. सोशल मीडिया पर एक कोट काफी पॉपुलर रहा है, जिसे आईएएस अधिकारी अवनीश शरण (IAS Officer Awanish Sharan) ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है. इस कोट को शेयर करते हुए उन्होंने पूछा कि क्या आप इससे सहमत हैं या फिर नहीं?

आईएएस अधिकारी ने शेयर की ऐसी पोस्ट

आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण (Awanish Sharan) ने अपने ट्वीट में जिस इंग्लिश कोट को शेयर किया है. वह है, 'Not Everyone At Your Workplace Is Your Friend... Do Your Job, Get Paid... Go Home...' यानी आपके ऑफिस में हर कोई आपका दोस्त नहीं होता, अपना काम करो, सैलरी लो और घर जाओ. इस कोट की तस्वीर को शेयर करते हुए अधिकारी ने कैप्शन में लिखा, 'सहमत हैं या नहीं'. कुछ ही घंटे में यह ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो गया और कई लोगों ने अपनी सहमति दी. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद ज्यादातर लोग ऐसे थे जो इस बात का समर्थन कर रहे थे.

 

 

पोस्ट को पढ़ने के बाद लोगों ने दिए ऐसे रिएक्शन

इस पोस्ट को पढ़ने के बाद एक यूजर ने लिखा, 'मैं सहमत नहीं हूं, क्योंकि ऑफिस हमारा दूसरा घर होता है.' इस पर जवाब देते हुए एक अन्य यूजर ने लिखा, 'मेरी नौकरी के शुरुआती वर्षों में मेरे कुछ दोस्त थे. पिछले 18 वर्षों से ऑफिस में मेरा कोई मित्र नहीं है.'  एक तीसरे यूजर ने कहा, 'सहमति है सर, क्योंकि सह-कर्मियों के बीच प्रेम, सहयोग और स्नेह की भावना तो होती ही है, परिस्थिति अनुरूप स्पर्धा, प्रतिद्वंदिता, ईर्ष्या, व्यंग्य, निंदा, चुगली जैसे तत्व भी मौजूद होते हैं!' एक चौथे यूजर ने लिखा, 'नहीं, सामाजिक संस्थाओं को हमारे द्वारा सामाजिक बनाया जाता है.'

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