'प्रेम का प्राथमिक बिंदु है सेक्स' जब ओशो ने खड़ा कर दिया दुनियाभर में बखेड़ा
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'प्रेम का प्राथमिक बिंदु है सेक्स' जब ओशो ने खड़ा कर दिया दुनियाभर में बखेड़ा

Osho Death Anniversary: ओशो को आज भी लोग बड़ी तादाद में सुनना और पढ़ना पसंद करते हैं. उनके विचार लोगों को बेहद पसंद आते हैं. 19 जनवरी को ओशो की पुण्यतिथि है. आइए जानते हैं उनके बारे में.

'प्रेम का प्राथमिक बिंदु है सेक्स' जब ओशो ने खड़ा कर दिया दुनियाभर में बखेड़ा

Osho Death Anniversary: जिंदगी की भागदौड़ में हमारे मन में रोजाना हजारों ख्याल आते हैं. चलते- चलते किसी सड़क के किनारे रखी किताब के पन्नों में हमें कुछ ऐसा दिख जाता है, जिसके बारे में जानने के लिए हमारी जिज्ञासा बढ़ जाती है. कभी उन चीजों को देखकर लगता है कि ये तो हमारे ही जिंदगी की कहानी हैं. ऐसे में कभी- कभी हम उन बातों की गहराई को चले जाते हैं तो कभी आगे बढ़ जाते हैं. इसी उधेड़बुन में अचानक मन में आता है कि जीवन क्या है? ये दुनिया क्या है? ऐसे सवालों का जवाब तलाशे जाते हैं. कोई इसके लिए किताबों को पढ़ता हैं तो कुछ लोग महान विचारकों को सुनते हैं. इसी सिलसिले में बहुत से लोग ओशो को पढ़ते हैं. ओशो को कुछ लोग दार्शनिक मानते हैं, कुछ विचारक तो कुछ सतगुरु कहता है. ओशो की किताब 'संभोग से समाधि की ओर' ने तो दुनियाभर में बखेड़ा खड़ा कर दिया था. 19 जनवरी को ओशो की पुण्यतिथि है. ऐसे मे आइए जानते हैं ओशो के बारे में. 

ओशो कौन हैं? ये सवाल, ये खयाल आज भी लोगों के जेहन में उठता है. ओशो को कोई सतगुरु के नाम से जानता है. किसी के लिए ओशो एक विचारक हैं तो किसी के लिए दार्शनिक हैं. एक तरफ ओशो को पढ़ने वालों की बड़ी तादाद है, वहीं दूसरी तरफ उनके आलोचकों की भरमार है. जानिए आखिर कैसे चंद्रमोहन जैन दुनिया भर के लिए ओशो बन गए. 

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. घरवालों ने बच्चे का नाम चंद्रमोहन रखा. उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और आगे चलकर वहीं जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन गए. इसी दौरान आध्यात्मिक गुरू के रूप में उनकी पहचान बनने लगी. उसी दौरान वो भारत भ्रमण पर निकल गए. ओशो राजनीति, धर्म और सेक्स जैसे टैबू माने जाने वाले विषयों पर भी अपने विचार रखने लगे. लोगों को उनकी बातें खूब पसंद आती थीं. सोचिए जब कंप्यूटर, इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसे संचार के साधन नहीं थे तब भी उनके विचारों ने सुपरपावर अमेरिका तक को हिला कर रख दिया था. 

1969 में उन्होंने मुंबई में अपना आश्रम बनाया और खुद को 'ओशो' कहने लगे. ‘ओशो’ का अर्थ है वो शख़्स जिसने अपने आपको सागर में विलीन कर लिया हो. उसी दौरान उनकी मुलाकात एक विदेशी महिला क्रिस्टीना वुल्फ़ से हुई. उनको रजनीश ने संन्यासी नाम 'मा योगा विवेक' दिया. वो उन्हें पिछले जन्म की दोस्त मानते थे. वो उनकी निजी सहयोगी बन गईं.

ओशो ने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. 70 और 80 के दशक में यह आंदोलन खूब विवादों में रहा. व्याख्यान देने के दौरान ओशो ने धार्मिक धारणाओं और कर्मकांडों के खिलाफ आवाज उठाई. साल 1974 में ओशो अपने बहुत सारे सन्यासियों के साथ पूना गए और वहां जाकर रजनीश आश्रम की स्थापना की. इसके बाद विश्व भर में उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी. उन्होंने पुणे में बहुत से प्रवचन दिए. उनके नजरिए की बात करें तो उन्होंने कहा था, 'धर्म कुरीतियों का शिकार होकर अपनी जीवन शक्ति खो चुका है'.

प्रेम का प्राथमिक बिंदु सेक्स: ओशो

ओशो सामान्य मनुष्यों से बिल्कुल ही अलग थे. 'संभोग से समाधि की ओर' उनका विषय आज भी सुर्खियों में बना हुआ है. ओशो का कहना था कि प्रेम का प्राथमिक बिंदु सेक्स ही है और जो लोग सेक्स को घृणा के नजरिए से देखते हैं, वे कभी प्रेम कर ही नहीं सकते. ओशो समाज के युवाओं को सेक्स के संबंध में चेताते हुए कहा था कि हजारों साल से पीढ़ियां सेक्स से भयभीत रही हैं, तुम भयभीत मत रहना. इस पर चर्चा करना और समझने की कोशिश करना. 

1981 में सेहत खराब होने की वजह से वो अमेरिका चले गए. 1981 से 1985 के बीच वो अमेरिका में रहे. अमेरिकी शिष्यों ने जमीन खरीदकर उन्हें रहने के लिए बुलाया. ओरगॅान में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने उनका जमकर विरोध किया. 

ओशो से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

  • ऐसा कहा जाता है कि जब ओशो पैदा हुए थे पैदा होने के बाद तीन दिनों तक न तो वे रोये और न उनके मुंह से कोई आवाज निकली और न ही उन्होंने मां का दूध पिया. 
  • जिसके बाद घरवालों ने एक वैध भी बुलाया पर सब कुछ सामान्य निकला. 
  • 1960 के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से और 1970-80 के दशक में भगवान 'श्री रजनीश' नाम से और 1989 में 'ओशो' नाम से फेमस हुए. 
  • ओशो की लिखी कई किताबें काफी ज्यादा चर्चित और विवादित थी, जिसमें संभोग से समाधि की ओर, ध्यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति, मैं मृत्यु सिखाता हूं, प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, कृष्ण स्मृति काफी ज्यादा चर्चित हैं. 
  • 1985 में ओशो अमेरिका से भारत आए और इसके बाद सिर्फ 5 साल जीवित रहे. 58 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.  19 जनवरी 1990 को उनका निधन हो गया. 
  • माना जाता है अमेरिकी सरकार ने ओशो को ‘थेलियम’नाम का स्लो पॉइजन दे दिया था, जिससे धीरे-धीरे वो मौत की तरफ बढ़े. अमेरिका से लौटने के बाद ओशो ने बताया था कि उनके शरीर में ज़हर के लक्षण हैं. मेरी रजिस्टेंस कमजोर हो गया है.

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