Mulayam Singh Yadav: सियासत ही नहीं असली 'अखाड़े' में भी सूरमाओं को पटक देते थे मुलायम, पहलवानी के ये किस्‍से हैं फेमस
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Mulayam Singh Yadav: सियासत ही नहीं असली 'अखाड़े' में भी सूरमाओं को पटक देते थे मुलायम, पहलवानी के ये किस्‍से हैं फेमस

Mulayam Singh Yadav Death:  मुलायम सिंह यादव को बचपन में ही अखाड़े की मिट्टी ने अपनी ओर खींच लिया. उन्होंने जवानी की दहलीज में कदम रखने के पहले ही अपने साथी पहलवानों को पटखनी देना शुरू कर दिया था.

Mulayam Singh Yadav: सियासत ही नहीं असली 'अखाड़े' में भी सूरमाओं को पटक देते थे मुलायम, पहलवानी के ये किस्‍से हैं फेमस

Mulayam Singh Yadav News: सियासत के सूरमा मुलायम सिंह यादव के बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे की उन्हें बचपन से ही पहलवानी का शौक था. उन्होंने सियासत के दांव पेंच तो लोहिया समेत अपने जमाने के दिग्गज नेताओं के साथ सीखे. लेकिन पहलवानी के दांव तो वो अखाड़े की मिट्टी में ही सीख चुके थे

मुलायम सिंह यादव को बचपन में ही अखाड़े की मिट्टी ने अपनी ओर खींच लिया. उन्होंने जवानी की दहलीज में कदम रखने के पहले ही अपने साथी पहलवानों को पटखनी देना शुरू कर दिया था. भले ही अखाड़े में मुलायम सिंह का कद छोटा था. लेकिन वो बड़े पहलवानों को पल में ही चित करने में माहिर थे.

यह था पसंदीदा दांव
कहा जाता है कि पहलवानी के दौर में अखाड़े के अंदर मुलायम सिंह का प्रिय दांव होता था- ‘चरखा’ तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि कि धोबी पछाड़ का यही दांव वे राजनीति में भी अपनाएंगें. मुलायम सिंह यादव का अखाड़ा प्रेम धीरे धीरे उनके पूरे इलाके में मशहूर हो गया और मुलायम अपने साथी पहलवानों के साथ दूरदराज में होने वाले कुश्ती मुकाबलों में शिरकत करने लगे.

तीन बार यूपी के सीएम रहने वाले मुलायम सिंह यादव को यूपी ही नहीं देश की राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है. राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह एक शिक्षक थे. 1963 में मुलायम ने बतौर सहायक अध्यापक पहली नौकरी की.

जैन इंटर कॉलेज में ही मुलायम सिंह यादव 11 साल बाद 1974 में राजनीत शास्त्र के प्रवक्ता के तौर पर प्रोन्नत हुए जिसके बाद मुलायम सक्रिय राजनीति में आ गए. 1967 में मुलायम पहली बार जसवंत नगर से विधायक बनें. 1984 में राजैनतिक व्यस्तता के चलते उन्होंने शिक्षक पद से इस्तीफा दे दिया.

सामाजिक ताने बाने की समझ और सियासत में गहरी पकड़
1967 में मुलायम सिंह यादव की उम्र महज 28 साल की ही थी. मुलायम सिंह की सामाजिक ताने बाने की समझ और सियासत में गहरी पकड़ की वजह से उनके गुरु नाथू सिंह ने जसवंतनगर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ाया. इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने जोरदार जीत दर्ज की. इसके बाद 1974 और 1977 में हुए मध्यावधि चुनाव में मुलायम को जीत हासिल हुई.

मुलायम सिंह यादव ने सभी वर्गों के हित के लिए आवाज उठाई आंदोलन किए. जिसके बाद उन्हें धरती पुत्र कहा जाने लगा. मुलायम सिंह की इसी समाजवादी विचारधारा की वजह से जनता ने खूब सराहा जैसे जैसे वक्त बीत रहा था वैसे वैसे मुलायम सिंह यादव का नाम पूरे उत्तर प्रदेश में गूंजने लगा. जनता के बीच लोकप्रिय हुए मुलायम अपनी इसी लोकप्रियता की वजह से सियासत के सूरमा भी बने.

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