Manmohan Singh: फोन की घंटी बजी तो वह सो रहे थे... नरसिम्हा राव ने कैसे की थी मनमोहन सिंह की खोज?
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Manmohan Singh: फोन की घंटी बजी तो वह सो रहे थे... नरसिम्हा राव ने कैसे की थी मनमोहन सिंह की खोज?

Manmohan Singh 33 year Rajya Sabha Tenure: जब नरसिम्हा राव 1991 में पीएम बने तो आर्थिक संकट चरम पर था. एक अर्थशास्त्री ने देश की नैया पार लगाई. उन्होंने आर्थिक सुधार किए और देश तरक्की की राह पर दौड़ने लगा. वह कोई और नहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं. आज उनकी संसदीय पारी विराम ले रही है. ऐसे में देश को उनका योगदान याद आ रहा होगा.

Manmohan Singh: फोन की घंटी बजी तो वह सो रहे थे... नरसिम्हा राव ने कैसे की थी मनमोहन सिंह की खोज?

Manmohan Singh Kissa Kursi Ka: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब संसद में नहीं दिखेंगे. आज उनकी 33 साल की संसदीय पारी का समापन हो रहा है. ऐसे में उनकी राजनीतिक पारी को लेकर विश्लेषण भी किए जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर पुराने वीडियो शेयर हो रहे हैं. क्या आप जानते हैं अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह राजनीति में कैसे आए थे? यह किस्सा दिलचस्प है. मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को जाता है. थोड़ा पीछे चलते हैं. 

1991 में राव की राजनीतिक पारी का एक तरह से अंत हो चुका था. उनकी किताबों का वजन लादकर एक ट्रक हैदराबाद के लिए रवाना हो चुका था. 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद तेजी से घटनाक्रम बदले. राव को जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह जल्द ही भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. 

राव का एक फील्ड में हाथ तंग था

राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि राव का देश के लिए एक प्रमुख योगदान डॉ. मनमोहन सिंह की खोज था. जब नरसिम्हा राव 1991 में प्रधानमंत्री बने तब तक वह कई क्षेत्रों के विशेषज्ञ बन चुके थे. स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालय वह पहले देख चुके थे. वह भारत के विदेश मंत्री भी रह चुके थे. एक ही विभाग ऐसा था जिसमें उनका हाथ तंग था, वह था वित्त मंत्रालय. पीएम बनने से दो दिन पहले कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा ने उन्हें 8 पेज का एक नोट थमाया जिसमें बताया गया था कि देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है.

राव ने शुरू की तलाश

ऐसे में राव को एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और उनके घरेलू विरोधियों को मैसेज दे सके कि भारत अब पुराने ढर्रे पर नहीं चलेगा. उन्होंने उस समय के अपने सलाहकार पीसी अलेक्जेंडर से पूछा कि क्या आप वित्त मंत्री के लिए ऐसे शख्स का नाम सुझा सकते हैं जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता हो. अलेक्जेंडर ने उन्हें रिजर्व बैंक के गवर्नर और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक रहे आईजी पटेल का नाम सुझाया. बताते हैं कि पटेल दिल्ली नहीं आना चाहते थे क्योंकि उनकी मां बीमार थीं. उस समय वह वडोदरा में रह रहे थे. ऐसे में अलेक्जेंडर ने दूसरा नाम लिया- मनमोहन सिंह.

मनमोहन के फोन की घंटी बजी

अलेक्जेंडर ने शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह को फोन किया. उस समय वह सो रहे थे. कुछ घंटे पहले ही वह विदेश से लौटे थे. जब उन्हें उठाकर इस प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. अगले दिन शपथ से तीन घंटे पहले मनमोहन सिंह के पास UGC के दफ्तर में नरसिम्हा राव का फोन आया- मैं आपको अपना वित्त मंत्री बनाना चाहता हूं. 

मनमोहन का योगदान

आगे राजीव-इंदिरा की नीतियों को पलटते हुए मनमोहन देश को आर्थिक सुधारों की ओर ले गए. 91 साल के मनमोहन 1991 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने थे. आज जब उनकी संसदीय पारी का समापन हो रहा है तो कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी पहली बार उच्च सदन में पहुंच रही हैं. 

मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री और 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के योगदान का जिक्र करते हुए कहा है कि वह सदैव मध्यवर्ग और आकांक्षी युवाओं के नायक बने रहेंगे. उन्होंने कहा कि बहुत कम लोगों ने देश और उसके लोगों के लिए आपके जितना काम किया है. कांग्रेस अध्यक्ष के अनुसार मनमोहन सिंह की नीतियों की बदौलत उनके प्रधानमंत्री रहते हुए भारत 27 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सक्षम रहा. 

खरगे ने आगे कहा कि मुझे याद है कि उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आपके बारे में (मनमोहन) कहा था कि जब भी भारतीय प्रधानमंत्री बोलते हैं तो पूरी दुनिया उन्हें सुनती है. 

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