Hijab Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘स्कूलों को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार’
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Hijab Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘स्कूलों को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार’

Hijab Case Hearing: जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने यह टिप्पणी कर्नाटक (Karnataka) के स्कूलों में हिजाब (Hijab) बैन को बरकरार रखने के हाई कोर्ट (High Court) के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की.

Hijab Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘स्कूलों को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार’

Hijab Case Hearing In Supreme Court:  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बार फिर दोहराया है कि स्कूलों (Schools) को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार है. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच ने यह टिप्पणी कर्नाटक (Karnataka) के स्कूलों में हिजाब (Hijab) बैन को बरकरार रखने के हाई कोर्ट (High Court) के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की.

'हिजाब ड्रेस का हिस्सा नहीं है
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि स्कूल में ड्रेस न पहनने की वजह से छात्राओं को प्रवेश नहीं रोका जा सकता. गोल्फ क्लब जैसे प्राइवेट क्लब ड्रेस कोड के आधार पर एंट्री रोक सकते है, पर एक सरकारी स्कूल में बच्चों पर ड्रेस नहीं थोपी जा सकती.

इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने उन्हें टोकते हुए कहा कि इसका मतलब आपकी दलील ये है कि सरकारी स्कूल ड्रेस तय नहीं कर सकते. इस पर भूषण ने कहा कि अगर स्कूल को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार भी है तो भी वो हिजाब को  बैन नहीं कर सकते.  इसके बाद जस्टिस धुलिया न कहा कि नियमों के मुताबिक स्कूलों को ड्रेस कोड तय करने का अधिकार है. स्कूलों के इस अधिकार को नहीं नकारा का सकता. हिजाब अलग चीज़ है (ड्रेस का हिस्सा नहीं है).

प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर स्कूल ड्रेस कोड तय करते हैं तब भी वह मानव अधिकारों का हनन नहीं कर सकते. यहां सिखों के लिए पगड़ी,हिंदू के लिए तिलक और ईसाइयों के लिए क्रॉस को बैन नहीं किया है, सिर्फ हिजाब को बैन करना भेदभावपूर्ण है.

करीब साढ़े चार घण्टे चली जिरह
आज हिजाब समर्थक पक्ष की ओर से करीब साढ़े चार घण्टे जिरह हुई . प्रशांत भूषण के अलावा वरिष्ठ वकील  मीनाक्षी अरोड़ा, ए एम दार, जयना कोठारी, दुष्यत दवे,कॉलिन गोंजाल्विस ने दलीले रखी. दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल ने मामला संविधान पीठ को सौंपने की मांग की.

'क़यामत के दिन सबके गुनाहों का हिसाब होगा'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अब्दुल मजीद दार ने कुरान के तीन सूरे (चैप्टर) का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम में महिलाओं के सिर ढकना अनिवार्य है. दार ने कहा कि कुरान शरीफ 1400 साल पहले आई. अल्लाह का जो निर्देश है, वो सबके लिए ज़रूरी है. कुरान में कोई संशोधन नहीं किया जा सकता.

दार ने कहा कि कुरान की अहमद अली की ओर से की गई व्याख्या जिसके आधार पर हाई कोर्ट ने फैसला दिया है, वो ग़लत और भ्रामक है. अल्लाह अगर दयावान और क्षमाशील है तो इसका मतलब ये नहीं कि उसके आदेश का पालन ही नहीं किया जाए. इसका मतलब ये नहीं कि अगर हिजाब नहीं पहनोगे तो अल्लाह माफ़ कर देगा. कुरान में दी गई शिक्षाएं अनिवार्य हैं. कयामत के दिन सबके कर्मों का हिसाब किताब होगा. सबको अपने गुनाहों का परिणाम भुगतान ही होगा. कर्नाटक हाई कोर्ट का ये निष्कर्ष कि चूंकि हिजाब न पहनने पर कोई दण्ड का प्रावधान नहीं है, गलत है.

दिया गया UN कन्वेंशन का हवाला
वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने हिजाब के समर्थन में बाल अधिकारों के लिए यूएन कन्वेंशन का हवाला दिया. अरोड़ा ने कहा - ये कन्वेंशन बच्चों के धार्मिक विश्वास, उनकी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करता है. इसमें दूसरे धर्मों, सभ्यताओं के लिए सम्मान की बात कहीं गई है. संयुक्त राष्ट्र भी ये देख रहा है कि तमाम देश कैसे इन कन्वेंशन  का पालन कर रहे है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कमेटी सब देशों पर नज़र रख रही है. 89 फ़ीसदी ईसाइयों की आबादी वाले नॉर्वे ने स्कूलों में सिर्फ ईसाई धर्म की शिक्षाओं को पढ़ाने का फैसला लिया लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने इसके लिए मना कर दिया. संयुक्त राष्ट्र का कहना था कि ये धर्म के आधार पर भेदभाव है. ट्यूनीशिया में जब स्कूलों में शिक्षकों को हेडस्कार्फ़ पहनने से रोक दिया गया तब संयुक्त राष्ट्र की कमेटी ने दखल दिया. शिक्षा का मकसद ही है कि हम धार्मिक रूप से सहिष्णु बनें. अगर हम उन धार्मिक परम्पराओं पर रोक लगाना शुरू कर देंगे जो नैतिकता,  स्वास्थ्य के खिलाफ नहीं है तो हम बच्चों को धार्मिक सहिष्णुता तो नहीं सीखा रहे.

'UN कमेटी ने भी हिजाब बैन पर सवाल उठाया'
वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी कि केंद्र सरकार ने बच्चों के अधिकारों को लेकर UN इनकन्वेंशन को मंजूरी दी है. ऐसे में राज्य सरकार को कोई अधिकार नही है कि वो कोई आदेश जारी करें जो केंद्र सरकार के खिलाफ हो. संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार कमेटी कह चुकी है कि हिजाब पर बैन एक बच्चे के अपनी धार्मिक परम्पराओं के पालन के अधिकार का हनन है. ड्रेस कोड ऐसा होना चाहिए जो बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करें ना कि उन्हें रोके. फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता का एक दूसरा ही रूप है. वहां हर तरह के धार्मिक प्रतीकों के प्रदर्शित होने पर रोक है. पर हमारा यहां ऐसा नहीं हैं. इस देश में हम धर्म का, धार्मिक परम्पराओं का सम्मान करते हैं. क्या हिजाब किसी तरह से भी नैतिकता, क़ानून व्यवस्था के खिलाफ है.

'दुनिया भर में हिजाब को मान्यता'
वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है  पूरी दुनिया में 24 फ़ीसदी लोग इस्लाम को मानने वाले है. 24 से ज्यादा देश इस्लामिक हैं. 34 देशों में यह दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. ज़्यादातर देशों में हिजाब को धार्मिक और सांस्कृतिक पोशाक के तौर पर मान्यता है. जब दुनिया भर में अदालतें, देश, हिजाब को मान्यता दे रहे हैं तब हम कौन होते है जो कहे कि ये इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा है या नहीं. हम सब एक ग्लोबल विलेज का हिस्सा है. कोई अकेले में नहीं रह रहे .धार्मिक परम्पराओं की तह में कोर्ट को नहीं जाना चाहिए. इस पर जस्टिस धुलिया ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने आपने हिजाब को इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा होने की दलील दी थी. लेकिन अब याचिकाकर्ता कह रहे है कि हाईकोर्ट  ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया.

दवे ने संविधान पीठ को भेजने की मांग की
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश दुष्यंत दवे ने कहा कि ये गंभीर मसला है. संविधान पीठ को इस पर सुनवाई करनी चाहिए. इस मामले में जिरह की समय सीमा तय मत कीजिए. ये लाखों लोगो की जिंदगी से जुड़ा मसला है.

दवे ने कहा कि इस मामले को लेकर राज्य सरकार की संजीदगी का ये आलम है कि उन्होंने लिखित जवाब दाखिल करने की भी ज़रूरत नहीं समझी जबकि हर दूसरे मामले में वो जबाब दाखिल करने के लिए वक़्त मांगते रहते हैं. हाई कोर्ट में भी उन्होंने जवाब दाखिल किया था, पर सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने जवाब दाखिल नहीं किया.

सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी.

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