Red Sea Houthi Attack: लाल सागर (Red Sea) में भारतीय तिरंगा लगे गैबॉन ऑयल टैंकर एमवी साईबाबा पर ड्रोन अटैक के बाद हूती फिर सुर्खियों में है. ऑयल टैंकर के क्रू में तैनात 25 भारतीय सुरक्षित बताए जा रहे हैं. दूसरी ओर, अमेरिका समेत दुनिया के कई देश समुद्र में आतंकी हरकतों को लेकर हूती के खिलाफ बड़ी कार्रवाई के मूड में हैं.
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Who Is Houthi: दक्षिणी लाल सागर में एक ही दिन दो बड़े कारोबारी जहाजों पर ताबड़तोड़ ड्रोन अटैक (Drone Attack) करने के बाद हूती ने भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों की टेंशन बढ़ा दी है. यूएस सेंट्रल कमांड ने 23 दिसंबर को एक बयान में कहा कि ईराम समर्थित हूती के कब्जे वाले यमन के क्षेत्रों से दक्षिणी लाल सागर (South Red Sea) में अंतरराष्ट्रीय शिप लेन में दो बैलिस्टिक मिसाइल दागी गईं. उसके बाद ड्रोन अटैक किया गया. हालांकि, इन हमलों से किसी भी जहाज के अधिक प्रभावित होने की सूचना नहीं है. यूएस आर्मी का कहना है कि 17 अक्तूबर के बाद अब तक हूती की तरफ से किसी कमर्शियल जहाज पर हमले की 15वीं घटना है.
एक दिन में अमेरिका, नार्वे और भारत के झंडे वाले तीन जहाजों पर हमला
यूएस सेंट्रल कमांड के आधिकारिक बयान के मुताबिक, स्थानीय समयानुसार दोपहर तीन बजे से रात आठ बजे के बीच दक्षिणी लाल सागर में गश्त कर रहे यूएसएस लैबून (डीडीजी 58) ने यमन में हूती-कब्जे वाले क्षेत्रों से आने वाले चार ड्रोन को मार गिराया. इन ड्रोन के निशाने पर यूएसएस लैबून ही था. हूती के इस ड्रोन अटैक में कोई हताहत नहीं हुआ. इससे किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ है. पहले नॉर्वे के झंडे वाले ऑयल टैंकर ‘एमवी ब्लामानेन’ ने हूती के ड्रोन अटैक की सूचना दी. उसके बाद भारतीय झंडे वाले एक दूसरे ऑयल तेल टैंकर ‘एमवी साईबाबा’ से भीड्रोन हमले का अलर्ट मिला. हूती के इन दोनों ड्रोन हमले में भी किसी के घायल होने की सूचना नहीं है. आइए, जानते हैं कि लाल सागर में दुनिया को परेशान करनेवाला हूती समूह क्या है? इसकी ताकत कितनी है और यह क्या चाहता है?
1990 में बाप-बेटे की जोड़ी ने शुरू किया था हूती नाम का मजहबी नेटवर्क
इस्लामिक मुल्क यमन से जड़ें जुड़ी होने का दावा करने वाले हूती रिबेल्स की स्थापना साल 1990 में मौलवी बद्र अल दीन अल हूती और उसके बेटे हुसैन अल हूती ने की थी. साल 1979 में हुई ईरानी क्रांति और साल 1980 के दशक में दक्षिण लेबनान में हिजबुल्लाह के उदय से प्रभावित हूती बाप-बेटे की जोड़ी ने यमन के जायदियों के बीच सामाजिक और मजहबी नेटवर्क बनाना शुरू किया था. यमन में करीब 60 फीसदी आबादी सुन्नी मुसलमानों की और शिया की आबादी करीब 35 फीसदी है. वहां लंबे समय से शिया और सुन्नियों के बीच संघर्ष चला आ रहा है. सऊदी अरब की सीमा पर स्थित यमन के उत्तरी प्रांत सादा में रहने वाले हूतियों ने यमन के शासकों और उनकी तानाशाह नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया जो बाद में गृह युद्ध में तब्दील हो गया. इसकी शुरुआत 2004 में यमन सरकार की ओर से हूती की गिरफ्तारी का वारंट जारी करने से हुआ था. विद्रोह को खत्म करने के लिए सरकारी ऑपरेशन में हूती के संस्थापक सदस्यों में एक हुसैन ढेर हो गया. उसके भाई अब्दुल मलिक ने हूती की कमान संभाली है. गृह युद्ध के दौरान आतंकवादी करार दिए गए हूतियों ने 2010 में सादा शहर पर कब्जा कर लिया. यमन के लोगों और सरकार के एक हिस्से ने भी उसका समर्थन शुरू कर दिया.
शिया, सुन्नी, जायदी मुस्लिम कौम के अंदरूनी फिरकों की लड़ाई का असर
मिस्र और ट्यूनीशिया में तानाशाही का पतन होने के बाद साल 2011 में यमन में बहुत मजबूत हो चुके हूती ने करीब 33 सालों से सत्ता में जमे राष्ट्रपति सालेह को हर हाल में हटाने की मुहिम छेड़ दी. लगातार जारी आतंक और उपद्रव के बीच सालेह ने इस्तीफा दे दिया. सालेह ने अपने ही डिप्टी और सुन्नी मुस्लिम मंसूर हादी को शासन की सत्ता सौंप दी. सालेह शिया मुस्लिम कौम के एक महत्वपूर्ण हिस्से जायदी समुदाय से थे. सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात ने यमन में गृह युद्ध को समाप्त कर शांति बहाली की पहल की. संवाद में शामिल होने के बावजूद हूती हादी सरकार का विरोध करते रहे. फिर संवाद से बाहर होकर विद्रोह और आतंक को जारी रखा. अंतरिम सरकार से खफा सालेह भी हूती के साथ मिल गए. सालेह-हूती गठबंधन ने जनवरी 2015 तक साना और उत्तरी यमन के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया. साल 2015 में भीषण गृह युद्ध के दौर में भारत ने यमन से अपने चार हजार नागरिकों को बाहर निकाला था. साल 2017 में सालेह के खिलाफ होकर हूती ने उनकी जान ले ली.
सऊदी अरब, UAE, अमेरिका और इजरायल को अपना कट्टर दुश्मन मानता है हूती
सऊदी अरब ने खुद पर खतरा देख हूती के खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया, लेकिन वह बेनतीजा रहा. इसके बाद सऊदी अरब से खफा होकर हूती उसके सीमावर्ती शहरों पर लगातार हमले करता रहा है. बाद में हूती ने उत्तर में सरकार का गठन भी किया. पिछले साल हूती ने यूनाइटेड अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी पर भी ड्रोन हमले किए थे. इस हमले में दो भारतीय मारे गए थे. हूती ने इजराइल पर भी हमले का दावा किया है. बड़ी संख्या में यमन के लोग मेडिकल सेवा के लिए भारत आते रहते हैं. कई मौकों पर भारत सरकार ने यमन को खाद्य और मेडिकल मदद भेजी है. हालांकि, अमेरिका के खिलाफ ईरान के हिज्बुल्लाह और इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास का समर्थन करने वाला हूती भारत को लेकर भी अच्छा रूख नहीं रखता. इजरायल के खिलाफ दुनिया में दबाव बनाने की अपनी रणनीति के तहत ही हूती लाल सागर में कारोबारी जहाजों पर हमला, हाइजैक और लूटपाट कर रहा है. हूती खुद को ईरान से जुड़े समूहों के ‘प्रतिरोध की धुरी’ का हिस्सा बताते हैं.
बाब-अल मंदाब की खाड़ी में कारोबारी जहाजों को क्यों निशाना बनाता है हूती
हूती आतंकियों ने लाल सागर और हिंद महासागर को जोड़ती बाब-अल मंदाब की खाड़ी में इंटरनेशनल और कमर्शियल जहाजों को निशाना बनाया है. दक्षिण लाल सागर का यह हिस्सा कंटेनर, कार्गो और पैसेंजर शिप्स के लिए सबसे बेहतर रूट माना जाता है. भारत और यूरोप के बीच समुद्री व्यापार के लिए भी सबसे मुफीद रूट है. बाब-अल-मंदाब एक अरबी शब्द है. इसका मतलब "आंसू का द्वार" होता है. लाल सागर और स्वेज नहर के जरिए भूमध्य सागर और हिंद महासागर को जोड़ने वाला समुद्री व्यापार मार्ग अरेबियन पेनिनसुला को अफ्रीका से अलग करती है. इसके बंद होने से यूरोप की ओर जाने वाले मालवाहक जहाजों को अफ्रीका के निचले सिरे पर स्थित केप ऑफ गुड होप होते हुए सफर करना होगा. भारत समेत पूरे एशिया के समुद्री व्यापार पर इसका बुरा असर होगा. इजरायल-हमास जंग के बाद इस समुद्री रास्ते पर कारोबारी जहाजों को लगातार निशाना बनाए जाने से चिंतित होकर अमेरिका ने ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, बहरीन और नॉर्वे सहित 20 देशों का एक नौसैनिक संगठन बनाया है. वहीं, पीएम मोदी ने 19 दिसंबर को इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यनाहू से फोन पर बातचीत की है.