ये हैं 2023 में सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले, जिन पर पूरे देश की रहीं निगाहें
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ये हैं 2023 में सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले, जिन पर पूरे देश की रहीं निगाहें

Supreme Court of India: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से भारत में कई महत्वपूर्ण निर्णयों को दिशा दी है. यह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट हमेशा से ही स्वतंत्र फैसलों के लिए जाना जाता रहा है. इसी कड़ी में इस साल भी सर्वोच्च न्यायालय ने कई चर्चित फैसले लिए हैं.

ये हैं 2023 में सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले, जिन पर पूरे देश की रहीं निगाहें

Top 10 Verdict Of 2023 By Supreme Court: जैसा कि सर्वविदित है कि सुप्रीम कोर्ट भारत का सर्वोच्च न्यायालय है और इसका मुख्य कार्य कानून का पालन सुनिश्चित करना है. यह संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत स्थापित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के पास कानूनों की व्याख्या करने और उन पर निर्णय देने की शक्ति है. यह उच्च न्यायालयों और अन्य सभी न्यायालयों के निर्णयों की भी समीक्षा कर सकता है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने के लिए भी जिम्मेदार है. कोई भी व्यक्ति जो अपने मूल अधिकारों का उल्लंघन होने का मानता है, सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा करने के लिए भी जिम्मेदार है. और यह सुनिश्चित करता है कि सरकार संविधान के अनुसार कार्य करे. अब जबकि साल 2023 समाप्ति की तरफ है तो ऐसे में आइए जानते हैं कि इस साल सुप्रीम कोर्ट के कौन से ऐसे 10 बड़े फैसले आए जिन पर खूब चर्चा हुई है.

1- 370 हटाने पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
यह फैसला इसी सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को वैध माना है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने वर्डिक्ट में कहा कि जम्मू कश्मीर के पास भारत में विलय के बाद आंतरिक संप्रभुता का अधिकार नहीं है. अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर 2024 तक चुनाव कराने के लिए कहा है. मालूम हो कि 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था, साथ ही राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. केंद्र के इस फैसले के खिलाफ SC में 23 याचिकाएं दाखिल की गई थीं.

2- 'जल्लीकट्टू' मामले में सुप्रीम फैसला
तमिलनाडु और महाराष्ट्र में पारंपरिक जल्लीकट्टू खेल और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने वाले कानून की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने मई में बड़ा फैसला सुनाया था. कोर्ट ने इन्हें कानूनन वैध करार दिया है. पिछले साल पांच जजों की संविधान पीठ ने दिसंबर में इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले राज्य सरकार के कानून को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि नए कानून में क्रूरता के पहलू का ध्यान रखा गया है. खेल सदियों से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा और इसे बाधित नहीं किया जा सकता है.

3- मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 30 अक्टूबर, 2023 को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था और जमानत याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जांच एजेंसी सीबीआई लेनदेन की बात अस्थायी रूप से साबित कर पाई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि सिसोदिया के खिलाफ आरोप गंभीर हैं और उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती है. सिसोदिया को दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में फरवरी में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें सीबीआई और ईडी ने गिरफ्तार किया था. सिसोदिया के खिलाफ आरोप हैं कि उन्होंने दिल्ली की शराब नीति में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए भ्रष्टाचार किया था.

4- समलैंगिक जोड़े की शादी पर फैसला
17 अक्तूबर को दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर वैधता देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट की सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3-2 के 3-2 के बहुमत के फैसले से कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि समलैंगिक शादी पर कानून बनाने का हक संसद का है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस फैसले को पढ़ा था.

5- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल रहेंगे.

6- तलाक को लेकर संविधान पीठ का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने अहम फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में जहां पति पत्नी के साथ रह पाने की कोई संभावना न बची हो, वहां वो आर्टिकल 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अपनी ओर से भी तलाक दे सकता है. ऐसे मामलों में जहां पति पत्नी दोनों ही तलाक के लिए सहमत है या फिर भले ही दोनों में से एक जीवनसाथी तलाक के लिए सहमति नहीं दे रहा तो भी सुप्रीम कोर्ट तलाक का आदेश दे सकता है. इस फैसले का मतलब साफ था कि तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा. अनुच्छेद 142 में इस बात का प्रावधान है कि न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट कानूनी औपचारिकताओं को दरकिनार करते हुए किसी भी तरह का आदेश दे सकता है 

7- भ्रष्‍ट अधिकारियों पर अहम फैसला
भ्रष्‍टाचार में शामिल अधिकारियों पर लगाम कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसला दिया. कोर्ट ने साफ किया कि साल 2014 से पहले दर्ज भ्रष्‍टाचार के मामलों में भी अधिकारियों को गिरफ़्तारी से संरक्षण नहीं मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि 2014 में दिया गया उसका फैसला जिसके तहत कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को गिरफ्तारी/जांच में संरक्षण के प्रावधान को रद्द कर दिया था, वो फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा.

8- बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते कानूनन वैध
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि अंतर्निहित अनुबंध पर संबंधित स्टांप अधिनियम के अनुसार मुहर नहीं लगाई गई है तो मध्यस्थता समझौता शुरू से ही अमान्य या शून्य होगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत निर्णय में कहा कि गैर-स्टांपिंग या अपर्याप्त स्टांप किसी समझौते को शून्य नहीं बनाता है, बल्कि इसे साक्ष्य में अस्वीकार्य बनाता है. संविधान पीठ ने माना कि किसी समझौते पर स्टांप न लगाना या अपर्याप्त स्टांप भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत एक ठीक किये जाने योग्य दोष है.

9- मणिपुर में तीन पूर्व महिला जजों पैनल नियुक्त
मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को कहा कि हाई कोर्ट के 3 पूर्व महिला जजों की कमेटी मणिपुर में जाकर राहत और पुनर्वास का काम देखेगी. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसी कोशिशें की जानी चाहिए, ताकि राज्य के लोगों में विश्वास और कानून के शासन पर भरोसा लौट सके. यह कमेटी वहां की स्थितियों का आकलन कर सीधे सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी. शीर्ष अदालत समग्र स्थिति की निगरानी भी करेगी.

10- अडानी-हिंडनबर्ग मामले में 6 सदस्यीय कमेटी का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से उठे सवाल पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. समिति में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम सप्रे की अध्यक्षता में 6 सदस्य शामिल थे. शीर्ष अदालत ने तब सेबी से दो महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट उस समय हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र से संबंधित एक समिति का गठन भी शामिल था.

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