Gully Cricket: क्रिकेट लोग गली में भी खेलते हैं और मोबाइल पर भी. इसलिए क्रिकेट की बातें आसानी से ध्यान खींच लेती हैं. कच्चे लिंबू गली क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर जैसी ऊंचाई छूने का ख्वाब देख रहे लड़के की कहानी है. लेकिन इसका दायरा सीमित है. निर्देशक ने यहां तमाम मसालों का तड़का लगाया, मगर स्वाद नहीं आया.
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Radhika Madan OTT Film: कई फिल्म मेकर्स को लगता है कि कहानी में क्रिकेट को ले आना ही इसके हिट होने के लिए पर्याप्त है. इसलिए वह क्रिकेट के साथ कच्चा-पक्का कुछ भी बनाने को तैयार रहते हैं. निर्देशक शुभम योगी की फिल्म कच्चे लिंबू ओटीटी प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर रिलीज हुई है. आईपीएल के इस मौसम में जब हर शाम रोमांचक मैच देखने मिल रहे हैं, कच्चा लिंबू निराश करती है. यह सही है कि क्रिकेट हमारे यहां सपनों से जुड़ गया है और लोग इसमें शानदार करियर देखते हैं. इसी बात से कच्चा लिंबू भी प्रेरित है. मगर यहां क्रिकेट नेशनल लेवल का नहीं बल्कि सोसायटी लेवल का है. वह भी टेनिस बॉल से अंडरआर्म बॉलिंग वाला.
शुरू से फाइनल तक
कहानी और इमोशन के स्तर पर कच्चा लिंबू कुछ खास नया नहीं पेश करती. मुंबई का एक मिडिल क्लास परिवार, जिसमें मुखिया (महेश ठाकुर) को अपने बच्चों के करियर की चिंता है. लड़का (रजत बरमेचा) गली क्रिकेट में टेनिस बॉल पर जमकर सिक्स लगाता है. छह गेंदों पर छह छक्के जड़ने वाला उसका वीडियो वायरल हो जाता है. लड़का गली क्रिकेट में ही अपना करियर ढूंढ रहा है. पता चलता है कि एक नई अंडरआर्म क्रिकेट लीग शुरू हो रही है. यहां इस लड़के की बहन (राधिका मदान) है, जिसे नहीं मालूम कि जीवन में क्या करना है. मां (पूर्वा पराग) लड़की के भरतनाट्यम सीखने पर जोर देती है. पिता कुछ और. जबकि लड़की को लगता है कि वह फैशन डिजाइनर बन सकती है. मगर होते-होते वह भी भाई की तरह गली क्रिकेट की टीम खड़ी कर लेती है और फाइनल भाई-बहन की टीम के बीच खेला जाता है.
सिकुड़ता हुआ दायरा
कच्चा लिंबू सिनेमा जैसा मजा नहीं देती. आरंभ में यहां जब आपको क्रिकेट के लिए आकाश (रजत बरमेचा) का पैशन नजर आता है, तो 2022 में डिज्नी हॉटस्टार पर आई फिल्म कौन प्रवीण तांबे की याद आती है. लेकिन जल्द ही कच्चा लिंबू आईपीएल के सबसे उम्रदराज डेब्यू क्रिकेटर प्रवीण तांबे की प्रेरक कहानी से बहुत पीछे छूट जाती है. साथ ही यह कहानी सीजन क्रिकेट के ट्रेक से उतर कर गली-मोहल्लों में अपने नियम-कायदों से चलने वाले मैचों पर आ जाती है. इसका दायरा सिकुड़ जाता है. कहानी में आकाश और उसकी बहन अदिति (राधिका मदान) के सपने देखने और अपनी शर्तों पर जीवन जीने की बातें किसी नई ऊंचाई को नहीं छूती. न तो परिवार में उनका कोई बड़ा स्ट्रगल है और न मैदान पर. फिर वही होता है, जो इन दिनों अक्सर फिल्मों के प्राण निकाल देता है. सीमित बजट, सीमित लोकेशन, सीमित किरदारों में एक प्रोजेक्ट को पूरा करना. कच्चा लिंबू का भी रस सारा इसी खींच-तान में निकल जाता है. मराठी में नींबू को लिंबू कहते हैं.
कांदे-पोहे और लिंबू
निर्देशक ने कहानी में सारे मसाले डाले हैं. क्रिकेट के साथ परिवार के टेंशन, बच्चों के सपने और मां-बाप की उम्मीदें, आकाश और अदिति के गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड, सिबलिंग राइवलरी, गली क्रिकेट के मैच. कहानी के केंद्र में क्रिकेट होने के बावजूद इसमें कोई ऐसा पल नहीं आता कि आप उछल पड़ें. यही स्थिति फिल्म की है. कच्चा लिंबू का ग्राफ इक्का-दुक्का दृश्यों को छोड़ कर सतह से ऊपर नहीं उठता. राधिका मदान लीड करती हैं, लेकिन उनका परफॉरमेंस औसत है. जबकि रजत बरमेचा ने जरूर कुछ दृश्यों में बेहतर इमोशन दिखाए हैं. वकील से फिल्म निर्देशक बने शुभम योगी का कुछ भावनात्मक दृश्यों पर अच्छा नियंत्रण रहा, लेकिन बाकी जगहों पर फिल्म बांधने में नाकाम है. अगर आप क्रिकेट के दीवाने हैं और इन दिनों आईपीएल में मजा नहीं आ रहा है, तो जरूर कच्चा लिंबू को आजमा सकते हैं. वैसे आपने शुभम योगी की तीन साल पहले रिलीज हुई शॉर्ट फिल्म कांदे पोहे न देखी हो तो यूट्यूब पर देखें. कांदे-पोहे के साथ लिंबू का स्वाद भी मिलेगा.
निर्देशकः शुभम योगी
सितारे: राधिका मदान, रजत बरमेचा, महेश ठाकुर, पूर्वा पराग, आयुष सैनी
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