Kissa Kursi Ka: राम लहर में आडवाणी पर कैसे भारी पड़े राजेश खन्ना? फिर कांग्रेस में ही हो गया गेम
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Kissa Kursi Ka: राम लहर में आडवाणी पर कैसे भारी पड़े राजेश खन्ना? फिर कांग्रेस में ही हो गया गेम

Chunavi Kissa: इस बार भी लोकसभा चुनाव में कई फिल्मी हस्तियां मैदान में हैं. कंगना रनौत से लेकर शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव लड़ रहे हैं. दशकों पहले अमितभ बच्चन के इलाहाबाद से चुनाव जीतने के बाद दिल्ली में काका राजेश खन्ना लड़ने आए थे. उनके लिए डिंपल कपाडिया और ट्विंकल खन्ना ने भी चुनाव प्रचार किया था. 

Kissa Kursi Ka: राम लहर में आडवाणी पर कैसे भारी पड़े राजेश खन्ना? फिर कांग्रेस में ही हो गया गेम

Lok Sabha Chunav 2024: राजेश खन्ना की एक स्टाइल थी. जब वह चुनावी रैली करने के लिए मंच पर जाते तो जोर-जोर से हाथ हिलाया करते थे. उनके हाथ का मूवमेंट देख जनता का शोर बढ़ जाता. उन्होंने राजीव गांधी के लिए भी प्रचार किया था लेकिन 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें मैदान में उतार दिया. तब नई दिल्ली की सड़कों पर भीड़ कुछ ज्यादा होने लगी थी. सुपरस्टार राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) प्रचार करने आते तो लोग एक झलक पाने के लिए बेकरार हो जाते. अयोध्या रथ यात्रा की पृष्ठभूमि में हो रहे उस चुनाव में नई दिल्ली लोकसभा सीट से लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ रहे थे. राम लहर में ज्यादातर लोग मानकर चल रहे थे कि 'कांग्रेस के सुपरस्टार' आडवाणी के सामने चुनौती नहीं बन पाएंगे. हालांकि ऐसा हुआ नहीं.

आडवाणी को कांग्रेस ने घेरा

इससे पहले, आडवाणी की सोमनाथ से निकली अयोध्या रथयात्रा बिहार में रोकी गई, उन्हें गिरफ्तार किया गया. भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया. आगे चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से पीएम बने. इसके बाद मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. कांग्रेस ने सुपरस्टार को उतार भाजपा के शिखर पुरुष और अयोध्या आंदोलन के नायक रहे आडवाणी को चुनौती देने का फैसला किया. कांग्रेस की रणनीति थी कि फिल्मी सितारे की लोकप्रियता का फायदा लेते हुए आडवाणी की सीट फंसा दी जाए. कुछ हद तक कांग्रेस कामयाब भी हुई. 

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शुरू में राजनीतिक पंडितों को लगा कि आडवाणी के सामने राजेश खन्ना की उम्मीदवारी प्रतीकात्मक ही रहने वाली है. राजेश खन्ना गली-मोहल्लों में जाकर प्रचार करने लगे. काका के प्रचार के लिए उनकी पत्नी डिंपल कपाडिया और दोनों बेटियां भी आई थीं. 

आडवाणी टेंशन में आ गए. उनके करीबियों को लगा कि जीत आसान नहीं होने वाली है. आडवाणी ने आखिरी एक हफ्ते घूम-घूमकर प्रचार किया. उधर, अंदर ही अंदर कांग्रेस में गेम हो गया. कांग्रेस के कुछ बड़े स्थानीय नेताओं को लगा कि अगर राजेश खन्ना ने आडवाणी को हरा दिया तो पार्टी में उनका कद बढ़ जाएगा. ऐसे में भीतरघात हो गया. वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने एक लेख में बताया है कि रातोंरात वोटरों का मन बदलने के लिए सारे हथकंडे अपनाए गए. तब बैलट पेपर से चुनाव होते थे. 

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काउंटिंग शुरू हुई तो कांटे की टक्कर देखने को मिली. राजेश खन्ना ने बढ़त बना ली. अंतर कम था लेकिन आडवाणी का पीछे होना ही बड़ी बात थी. आखिरी राउंड में भी आडवाणी पिछड़े तो राजेश खन्ना के समर्थक जीत का जश्न मनाने लगे. बताते हैं कि कांग्रेस के भीतरघाती नेताओं ने खन्ना को सलाह दे दी कि वह काउंटिंग फिर से कराएं तो उनकी बढ़त सम्मानजनक हो जाएगी. 

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राजनीति के परदे पर एक्टिंग की बारीकियों से अनजान राजेश खन्ना ने वो बात मान ली. आखिर में महज डेढ़ हजार वोटों के अंतर से आडवाणी जीत गए. जी हां, नई दिल्ली लोकसभा सीट से आडवाणी मात्र 1589 वोटों से जीते थे. 

हालांकि 1992 में आडवाणी ने इस्तीफा दे दिया. बाद में वह गांधीनगर चले गए. उपचुनाव में राजेश खन्ना ने भाजपा उम्मीदवार और एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा को 28 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. इस तरह से संसद में काका की एंट्री हुई थी. 

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