Kissa Kursi Ka: प्रधानमंत्री, प्रचार और सरकारी प्लेन, पहले लोकसभा चुनाव में क्यों हिचक रहे थे जवाहरलाल नेहरू? जानिए कैसे मान गए
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Kissa Kursi Ka: प्रधानमंत्री, प्रचार और सरकारी प्लेन, पहले लोकसभा चुनाव में क्यों हिचक रहे थे जवाहरलाल नेहरू? जानिए कैसे मान गए

Model Code Of Conduct News: आदर्श आचार संहिता के लागू होने के दौरान यानी चुनाव में प्रचार अभियान के लिए देश में केवल एक ही शख्स सरकारी प्लेन का इस्तेमाल कर सकता है. देश के प्रधानमंत्री ही वह इकलौते शख्स होते हैं. आइए, चुनाव आयोग के इस नियम या प्रावधान की शुरुआत के बारे में जानते हैं.

Kissa Kursi Ka: प्रधानमंत्री, प्रचार और सरकारी प्लेन, पहले लोकसभा चुनाव में क्यों हिचक रहे थे जवाहरलाल नेहरू? जानिए कैसे मान गए

Lok Sabha Chunav Campaign News: लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सरकारी विमान का इस्तेमाल करते देखकर विपक्ष के कई नेताओं को रश्क होता है. हालांकि, भारत में केवल एक शख्स ही आम चुनावों में प्रचार के दौरान सरकारी प्लेन का इस्तेमाल कर सकता है. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक वो हस्ती देश के प्रधानमंत्री होते हैं.

चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री के सरकारी विमान का इस्तेमाल कैसे शुरू हुआ

चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री के सरकारी विमान का इस्तेमाल करने का प्रावधान कैसे शुरू हुआ? इसकी एक दिलचस्प कहानी है. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से इसकी शुरुआत हुई और उनके बाद देश के सभी प्रधानमंत्री को इसका फायदा मिला. मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन में रिकॉर्ड संख्या में चुनावी जनसभाओं को संबोधित करते हैं.

सरकारी प्लेन से पीएम का ज्यादा चुनावी जनसभाओं में पहुंचना मुमकिन

पीएम मोदी के एक दिन में कई चुनावी जनसभाओं या रैलियों में शामिल होने में सरकारी प्लेन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा मदद पहुंचाता है. हालांकि, शुरुआत में पीएम नेहरू नहीं चाहते थे कि वह सरकारी विमान से चुनाव प्रचार के लिए जाएं, लेकिन आखिरकार उन्हें ये बात माननी पड़ी. आइए, किस्सा कुर्सी का में इस पूरे वाकए के बारे में विस्तार से जानते हैं.

पंडित नेहरू के प्राइवेट सेक्रेट्री एमओ मथाई की किताब में पूरी कहानी

पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्राइवेट सेक्रेट्री एमओ मथाई ने अपनी किताब “रेमिनिसेंसेस ऑफ द नेहरू एज” में इस बारे में विस्तार से लिखा है. मथाई ने अपनी किताब में देश के पहले पीएम नेहरू और चुनाव प्रचार के दौरान उनके सरकारी प्लेन के इस्तेमाल के बारे में एक पूरा चैप्टर ही लिखा है. किताब में इस चैप्टर का शीर्षक 'यूज ऑफ एयर फोर्स एयरक्राफ्ट बाई द प्राइम मिनिस्टर' है.

एयरफोर्स के विमान का इस्तेमाल करना नहीं चाहते थे जवाहरलाल नेहरू

मथाई ने अपनी किताब में लिखा, 'ये 1951 के बीच की बात है. इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर उनके पास आए. उन्होंने देश के पहले आम चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की. उनका कहना था कि नेहरू को अगर पर्याप्त सुरक्षा और सुविधा नहीं मिली तो उनकी जान को खतरा हो सकता है. वो नहीं चाहते थे कि प्रधानमंत्री नियमित तौर पर व्यवसायिक उड़ानों से चुनावों के दौरान यात्रा करें. उस दौरान में इन विमानों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी.'

आईबी डायरेक्टर, पीएम के प्राइवेट सेक्रेट्री और कैबिनेट सेक्रेट्री ने लिया ये फैसला

इसके बाद आईबी डायरेक्टर ने एमओ मथाई से कहा कि क्या ये संभव नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री नेहरू चुनावों के दौरान  एयरफोर्स के विमान से यात्रा करें और इसका भुगतान करें. इससे उनके साथ उनका सरकारी स्टाफ और सुरक्षा बल भी चल सकेगा. साथ ही इस दौरान पीएम नेहरू अपने जरूरी कामकाज भी निपटाते रह सकेंगे. 

आईबी डायरेक्टर से मुलाकात के बाद एमओ मथाई ने कैबिनेट सेक्रेटरी एनआर पिल्लै से इसकी चर्चा की. उन्होंने इस बारे में राय देने के लिए सीनियर अधिकारियों की एक कमेटी बनाने की सलाह दी. इस कमेटी के चेयरमैन खुद कैबिनेट सेक्रटरी पिल्लै थे. कमेटी में जो तीन बड़े अधिकारी नियुक्त हुए थे उनमें तत्कालीन रक्षा सचिव तरलोक सिंह भी थे.

कमेटी ने क्या तय किया? एयर फोर्स के प्लेन के खर्चे का क्या निकला समाधान

कमेटी में तय हुआ कि प्रधानमंत्री नेहरू बेशक चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पार्टी की ओर से यात्रा करें, लेकिन वो प्रधानमंत्री होने के नाते अपने काम जारी रखें. इसके साथ ही उनकी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था भी हो. लिहाजा प्रधानमंत्री एयर फोर्स के विमान का इस्तेमाल कर सकते हैं. हां, इस यात्रा में जो खर्च होगा, उसे वह पार्टी की ओर से चुका दें. उनका पार्टी कामर्शियल हवाई यात्रा के बराबर खर्च का भुगतान कर दे.

हिचक रहे थे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, चाहते थे कैबिनेट मीटिंग में हो चर्चा

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए. वह चाहते थे कि इस मुद्दे पर कैबिनेट में भी चर्चा होनी चाहिए ताकि इस मामले पर आम सहमति से राय बन सके. हालांकि, इसके बावजूद पंडित नेहरू इस पेशकश को लेकर हिचक रहे थे और दूसरे विकल्प को देखने की भी बात कर रहे थे.

एमओ मथाई लिखते हैं, 'तब मैंने इस मामले पर कंट्रोलर एंड आडिटर जनरल (सीएजी) से बात की. उनके पास संबंधित फाइल भेज दी गई. दो तीन दिन बाद ये फाइल इस टिप्पणी के साथ लौटाई गई कि ऐसा किया जा सकता है. इसके बाद सीएजी के इस नोट को कैबिनेट सदस्यों तक पहुंचा दिया गया.'

एयरफोर्स के विमान के किराए को लेकर पंडित नेहरू और सरकार की जिम्मेदारी तय

इसके बाद नियम बनाया गया पंडित नेहरू अपनी यात्रा के लिए सरकार को उतना किराया दें, जो किसी एयरलाइन में यात्री को देना होता है. इसके साथ जाने वाले सुरक्षा स्टाफ और पीएम के प्राइवेट स्टाफ का किराया सरकार अलग से दे. अगर कोई कांग्रेसी नेता इस विमान में प्रधानमंत्री के साथ यात्रा करता है तो वो भी अपना किराया अलग से दे.

नेहरू के बाद हुए प्रधानमंत्रियों को भी इस व्यवस्था के तहत सुविधाएं मिलने लगी. प्रधानमंत्री केंद्र सरकार का अकेला शख्स होता है, जो सरकार से मिले विमान का इस्तेमाल कर सकता है. उस पर चुनाव आयोग की ओर से कोई पाबंदी नहीं होती है. प्रधानमंत्री को सिवाय खुद के यात्रा खर्च के व्यक्तिगत तौर पर विमान का कोई खर्चा नहीं देना होता. हालांकि, ये खर्च भी उनकी सियासी पार्टी अपने फंड से ही चुकाती हैं. 

पहले आम चुनाव 1951-52 में पीएम नेहरू ने किया डाकोटा विमान का इस्तेमाल

देश के पहले आम चुनाव 1951-1952 में इंडियन एयरफोर्स के पास केवल कुछ डाकोटा विमान थे. जो बहुत ज्यादा दूरी नहीं तय कर सकते थे. पीएम पंडित नेहरू को प्रचार अभियान में इस्तेमाल के लिए यही डाकोटा विमान मिले थे. इसके कई वर्षों बाद भारतीय वायुसेना के पास चार इंजन वाले मझोले ब्रिटिश विस्काउंट जेट आए थे.

नेहरू ने पहले आम चुनाव के प्रचार के दौरान हवाई मार्ग से कुल 18,348 मील की यात्रा की. उन्होंने सड़क मार्ग में कार से 5682 मील की दूरी तय की. उन्होंने 1612 मील का सफर ट्रेन से भी तय किया. इसके साथ ही उन्होंने नाव से भी 90 मील की यात्रा की. चुनाव के दौरान उन्होंने 305 भाषण दिये. उनकी सभाओं में इसे कुल तीन करोड़ लोगों ने सुना. नेहरू ने इस प्रचार अभियान में कुल 46 दिन लगाए थे.

जवाहरलाल नेहरू के बाद के प्रधानमंत्रियों ने इस मामले में क्या कदम उठाए

मथाई की किताब में आगे लिखा गया है, 'जैसा कि मैं जानता हूं कि नेहरू के बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उन्होंने कभी अपने गैर आधिकारिक दौरों के लिए सीएजी की राय लेने की जरूरत नहीं समझी. क्योंकि उन्हें लगता था कि सीएजी शायद इसके लिए राजी नहीं होंगे. इसलिए कहना चाहिए कि बाद के प्रधानमंत्रियों ने जिस तरह गैर आधिकारिक यात्राओं के लिए एयरफोर्स के विमानों का इस्तेमाल किया, वो उचित नहीं था.'

नेहरू ने बाद में दो बार ही वायुसेना के विमान का इस्तेमाल किया

आमतौर पर नेहरू अपनी विदेशी यात्राओं के लिए  एयर इंडिया की कमर्शियल फ्लाइट्स का ही इस्तेमाल करते थे. मथाई ने लिखा, 'मैं दो मौकों को याद कर सकता हूं जबकि उन्होंने आईएएफ के विस्काउंट विमान का इस्तेमाल किया. एक तब जब उन्होंने सीरिया, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नार्वे, इंग्लैंड, मिस्र और सूडान देशों की एक साथ यात्रा की. दूसरा मौका जब वो सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के साथ सऊदी अरब गए थे. दोनों मौकों पर एयर फोर्स के चीफ ने खुद कहा था कि प्रधानमंत्री को भारतीय वायुसेना के विमान से जाना चाहिए ताकि एयरफोर्स के कुछ चुने हुए पायलटों को कुछ बढ़िया अनुभव मिल सके.'

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एमओ मथाई के बाद दुर्गा दास की किताब में भी इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा

दुर्गा दास ने अपनी किताब ‘फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर’ में भी इस मामले का विस्तार से जिक्र किया है. उन्होंने लिखा, “पंडित नेहरू को ये ठीक नहीं लगा कि वो उस जहाज़ में चुनाव प्रचार करें जिसे वो प्रधानमंत्री के तौर पर इस्तेमाल करते थे. दूसरी तरफ़ न तो उनके पास और न ही कांग्रेस पार्टी के पास इतने पैसे थे कि वो चुनाव प्रचार के लिए हवाई जहाज़ चार्टर कर सकें. हालांकि, कहना चाहिए कि तब होशियार ऑडिटर जनरल ने जो फार्मूला निकाला, उसने कांग्रेस की उस चुनावों में मदद की. इससे पंडित नेहरू पूरे देश में सरकारी विमान से दौरा करके चुनाव प्रचार कर सके.

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