किस्सा कुर्सी का: आम चुनाव में ना पोलिंग अफसर, ना सुविधाएं... जब 4 पुलिसवालों ने बूथ पर करा दिया था मतदान
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किस्सा कुर्सी का: आम चुनाव में ना पोलिंग अफसर, ना सुविधाएं... जब 4 पुलिसवालों ने बूथ पर करा दिया था मतदान

General Election 1952 Story: देश के पहले आम चुनाव 1951-52 में मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन खुद हर राज्य में कम से कम एक मॉक इलेक्शन में पहुंचे. तैयारी के दौरान मामूली से चूक को भी दुरुस्त किए जाने की निगरानी उन्होंने खुद की थी.

किस्सा कुर्सी का: आम चुनाव में ना पोलिंग अफसर, ना सुविधाएं... जब 4 पुलिसवालों ने बूथ पर करा दिया था मतदान

Lok Sabha Chunav News: देश में 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव 2024 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की हाल ही में आई एक स्टडी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस चुनाव में देश के राजनीतिक दल (Political Parties) और उम्मीदवार लगभग 14.4 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा खर्च कर सकते हैं.

पोलिंग बूथ पर महज चार पुलिस वालों ने ही मतदान करवा दिया

लोकसभा चुनाव 2024 पर खर्च के लिए तो अब चुनाव आयोग का बजट भी काफी ज्यादा हो गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद देश में हुए पहले आम चुनाव 1951-52 में खर्च के लिए बजट कम था. इस वजह से मैन पॉवर और सुविधाओं तक की बड़ी किल्लत थी. हालत यह थी कि एक पोलिंग बूथ पर महज चार पुलिस वालों ने ही मतदान करवा दिया था. आइए, इस दिलचस्प कहानी के बारे में जानते हैं.

चुनाव के लिए सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी

चुनाव आयोग (ECI) की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, देश के पहले आम चुनाव में 1 लाख 32 हजार 560 पोलिंग स्टेशन और 1 लाख 96 हजार 84 पोलिंग बूथ बनाए गए थे. उन दिनों में शांतिपूर्ण और सुचारू तरीके से चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिए सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी थी. इसके अलावा कई मतदान केंद्रों पर बुनियादी सुविधाएं जुटाना भी मुश्किल था. 

प्रिजाइडिंग और पोलिंग ऑफिसर बनाने के लिए मैन पावर की भी किल्लत

देश के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) सुकुमार सेन के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने इस चुनौती से निपटने के लिए कई उपाय किए थे. कई राज्यों में सीनियर अफसरों की इतनी कमी थी कि रिटर्निंग ऑफिसर बनाया जाने के लिए सही अधिकारी मिलने की समस्या भी खड़ी हो गई. दूसरे राज्यों से अफसर लाने पर वहां दिक्कत होने की आशंका थी. प्रिजाइडिंग ऑफिसर और पोलिंग ऑफिसर बनाए जाने के लिए भी मैन पावर की किल्लत थी.

चुनाव आयोग का उपलब्ध लोगों से ही बेहतर तरीके से काम लेने का फैसला

ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में चुनाव आयोग ने उपलब्ध लोगों से ही बेहतर तरीके से काम लेने का फैसला किया. आयोग ने राज्यों को सुझाव दिया था कि प्रिजाइडिंग ऑफिसर बनाने के लिए  60 रुपये या इससे अधिक मंथली सैलरी वाले सरकारी कर्मचारियों के नाम भेजें. पोलिंग ऑफिसर बनाने के लिए ऐसे लोगों को चुनने का सुझाव दिया गया जो कम से कम साक्षर हों और अगर सरकारी कर्मचारी भी हों तो उन्हें प्राथमिकता दें.

जरूरत पड़ने पर चुनावी ड्यूटी के लिए ली प्राइवेट टीचरों की भी मदद 

चुनाव आयोग का कहना था कि जरूरत पड़ने पर चुनावी ड्यूटी के लिए प्राइवेट टीचरों की मदद भी ली जा सकती है. चुनाव के तौर-तरीकों का प्रैक्टिकल नॉलेज के लिए कर्मचारियों को जमकर ट्रेनिंग दी गई और रिहर्सल करवाए गए. सभी राज्यों में जगह-जगह मॉक इलेक्शन कराए गए. राजस्थान के उदयपुर में 5 अगस्त 1951 को पहला रिहर्सल हुआ था. इसमें राजस्थान के सभी जिला चुनाव अधिकारी और अजमेर स्टेट के चुनाव अधिकारी शामिल हुए थे.

हर राज्य में कम से कम एक मॉक इलेक्शन में खुद शामिल हुए सीईसी

मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन हर राज्य में कम से कम एक मॉक इलेक्शन में खुद शामिल हुए. उन्होंने चुनाव तैयारियों का जायजा लेते हुए किसी भी मामूली सी चूक को भी दुरुस्त किए जाने की कोशिश की. क्योंकि तब दुनिया के तमाम देशों ने कुछ साल पहले ही आजाद हुए भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सफलता पर संदेह जताया था. हालांकि, भारत के लोगों ने लोकतंत्र के पहले महापर्व को शानदार बना दिया था. 

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चार- चार पुलिस वालों की टीम पर एक-एक पोलिंग स्टेशन का जिम्मा

आम चुनाव के दौरान स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पोलिंग स्टेशनों पर पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी, लेकिन आम तौर पर एक पोलिंग स्टेशन का जिम्मा एक असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर और तीन सिपाहियों की टीम को सौंपा गया था. कुछ जगहों पर ASI नहीं मिल सके तो उनकी जगह हेड कांस्टेबल ने ही प्रमुख जिम्मेदारी संभाली. पुलिस के पास बैलट पेपर और बैलट बॉक्स लाने-ले जाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी थी. 

पहले आम चुनाव 1952 में 3 लाख 38 हजार 854 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी

देश के पहले आम चुनाव 1952 में कुल मिलाकर 3 लाख 38 हजार 854 पुलिसकर्मियों की मदद ली गई थी. इस दौरान कई पोलिंग स्टेशनों और बूथों पर प्रिजाइडिंग ऑफिसर और पोलिंग ऑफिसर के अभाव में चार पुलिस वालों की टीम ने ही विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाकर चुनावी प्रक्रिया को पूरा कर दिया था.  पुलिस विभाग में आज तक ऐसे वाकए का शान से जिक्र किया जाता है.

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