साधु व संत समाज को Mahakumbh के दौरान विशेष योग में पहले स्नान देने का अवसर देने, उनके बाद आम लोगों के स्नान करने की परंपरा है. इस दौरान संत समाज के लोग और अधिष्ठाता विशेष सजी हुई और सोने-चांदी की पालकियों में बैठकर पूर्ण भव्य श्रृंगार के साथ यात्रा निकालते हुए नदी तट तक पहुंचते हैं.
ग्रहों और राशियों के विशेष योग में लगने वाला महाकुंभ पर्व इस विश्वास को बल देता है कि गंगा माता हमारे सारे पाप धुल देती हैं. यह विश्वास भी उस पौराणिक कथा के कारण आता है जो कहती है कि गंगा में अमृत की बूंदे मिल गई. अमृत वह दैवीय तरल है जो अमर कर देता है. सिर्फ अमर ही नहीं, यह जन्म-मृत्यु का चक्र तोड़ देता है.
जिस तरह चार अलग-अलग स्थानों पर राशियों के अनुसार कुंभ आयोजित किया जाता है. ठीक उसी तरह अलग-अलग वर्षों में आयोजित होने वाले कुंभ के नाम भी अलग-अलग हैं. इन्हें क्रमशः महाकुंभ मेला, पूर्ण कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला और कुंभ मेला कहा जाता है.
कुंभ मेला (Kumbh mela) हर साल सिर्फ यूं ही नहीं आयोजित होता है. इसके आयोजन का आधार बहुत बड़ी खगोलीय चाल और ग्रहों की गति है. नक्षत्र और राशियां यह निर्धारित करती हैं कि चार निश्चित स्थानों में से किस स्थान पर Kumbh का आयोजन होना है.
इस साल हरिद्वार में लगने वाला महाकुंभ 11 साल में ही लग रहा है. इस तथ्य को लेकर बीते दो सालों में विद्वानों के बीच लंबा मतभेद रहा है. कई विद्वान 11 साल में कुंभ के आयोजन के पक्षधर नहीं थे. जानिए, कैसे लिया गया यह निर्णय
सनातन परंपरा में ऋषि-मुनियों ने शकुन शास्त्र भी बताया है. शकुन शास्त्र वह ज्ञान है, जिसके जरिए प्राकृतिक संदेशों को समझकर भविष्य की शुभ-अशुभ घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है.
New Year की जनवरी में 14 तारीख तक खरमास है. इस समय सूर्य भी दक्षिणायन हैं. 14 जनवरी को सूर्यदेव उत्तरायण होने के बाद मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसलिए साल की शुरुआत में 14 दिन तो इसलिए विवाह नहीं हो सकते हैं. इ्सके बाद शुक्र अस्त रहेंगे. शुक्र की स्थिति नहीं होने के कारण भी विवाह नहीं हो सकेंगे.
1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ. दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर (Calendar) को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था. ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था.
आपको बता दें कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ महादेव के मंदिर के ठीक नीचे है तीन मंजिला इमारत के बारे में खुलासा हुआ है. यह खुलासा आईआईटी गांधीनगर और आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के जरिए किए गए संशोधन में हुआ.
मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी (Ekadashi) को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2020) कहा जाता है. सनातन धर्म में मोक्षदा एकादशी का बहुत महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है.
एक हथिया देवाल का मतलब है – एक हाथ से बना हुआ. यह मंदिर बहुत प्राचीन है और पुराने ग्रंथों, अभिलेखों में भी इसका जिक्र आता है. किसी समय यहां राजा कत्यूरी का शासन था. लोगों का मानना है कि एक बार यहां किसी कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण करना चाहा. वह भी एक हाथ से.
गुजरात के मेहसाणा जिले में जगदंबा की साक्षात् स्वरुप माता बहुचरा विराजमान हैं. जो मुर्गे पर सवार होती हैं. इस अद्भुत दैवी स्थान पर मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है. इस स्थान के बारे में कई अलौकिक कथाएं प्रसिद्ध हैं.
ज्योतिष कहता है कि 12 महीनों में सूर्य ज्योतिष की 12 राशियों में प्रवेश करते हैं. 12 राशियों में भ्रमण करते हुए जब सूर्य देव गुरु
बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं तो उस स्थिति को खरमास कहते हैं.
सौराष्ट्र क्षेत्र में पूजित मेलडी माता की शक्ति अपरंपार है. आणंद जिले में उनका भव्य मंदिर है. जहां नवरात्रि के पर्व पर भारी उत्सव होता है. माता मेलडी के प्राकट्य की कथा अलौकिक है.
भारत पर हजारों वर्षों से विदेशी आततायियों के हमले हो रहे हैं. लेकिन भारत ना केवल इस कठोर संघर्ष में जीतता रहा है. बल्कि अपने मूल स्वरुप को भी बरकरार रखे हुए है. इस ताकत का स्रोत है श्रीमद् भागवत गीता.
भैरव शब्द के शाब्दिक अर्थ को देखें तो यह भय और रव का संयुक्त प्रयोग है. भय यानी कि डर और रव अर्थात हरण करने वाला. भय का हरण करने वाला भैरव है. इस तरह कालभैरव का अर्थ हुआ काल से होने वाले भय को हरण करने वाला कालभैरव है.
मनुष्य के जीवन का आधार है अन्न, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते और माता अन्नपूर्णा की कृपा के बिना हमें अन्न प्राप्त नहीं हो सकता. जानिए उनकी अद्भुत महिमा
मनु्ष्य को कई बार ऐसे मौके मिलते हैं, जहां से वह अपनी भूल को समझकर बुरी वृत्तियों से वापसी कर सकता है, लेकिन कई बार अहंकार इतना बड़ा हो जाता है कि संकोच वश वह पुण्य के मार्ग पर वापसी नहीं कर पाता है.