दिवाली के एक दिन पहले इसे रूप चौदस और नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन सुबह-सवेरे उबटन लगा कर नहाना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद घर में पांच दीये जलाए जाते हैं.
प्रसिद्ध लोकोत्ति है कि चोरी का माल मोरी (नाली) में जाता है. इसलिए सिर्फ शुभ कर्मों के द्वारा और ईमानदारी से पवित्र धन अर्जित करने की बात कही गई है. ऐसा ही धन संपत्ति के रूप में आगे जुटता चला जाता है.
दीपावली सिर्फ बाहरी उजाले का पर्व नहीं, बल्कि आतंरिक प्रकाश को जगाने का पर्व है. इसकी शुरुआत हो जाती है, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से, जिसे कि धनत्रयोदशी और धनतेरस भी कहते हैं. आयुर्वेद और अमरता के वरदायी देव भगवान धन्वन्तरि इस उत्सव के अधिष्ठाता देव हैं. उनके नाम की शुरुआत में धन शब्द होने से यह पर्व केवल धन को समर्पित रह गया है
बौद्ध धर्म की दुनिया भर में तमाम शाखाएं हैं.बुद्ध ने अपने जीवन में जो ज्ञान प्राप्त किया था,उनके शिष्यों ने अलग अलग तरह से पूरी दुनिया में फैलाया. इसी में एक है लोटस सूत्र के सिद्धांतों को मानने वाला निचिरेन बौद्धवाद .
किसी भी पर्व व तिथि को नक्षत्र और राशियां बेहद खास बनाते हैं. इस बार रविवार तक पुष्य नक्षत्र है. इससे रविपुष्य योग बनता है जो संतान को लंबी आयु और खूब तरक्की देगा. कहा जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसका कल्याण होता है.
वास्तव में अहोई का तात्पर्य है कि अनहोनी को भी बदल डालना. भारतीय सनातनी इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि नारी शक्ति में इतना सबल सामर्थ्य रहा है कि उन्होंने कई बार अनहोनी को बदला है. कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधान है. यह व्रत माताएं अपनी संतान की रक्षा और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं.
मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद भगवान शिव ने जो हलाहल विष पिया था उसे भगवान शिव के कंठ में मनसा देवी ने ही रोका था. मान्यताएं ये भी कहती है कि शिव-पार्वती के प्रेम नृत्य के दौरान जो तेज़ शिव जी के मस्तिष्क से निकला था उसे मानसरोवर ने धारण किया था और रक्षा नागों ने की थी और वो ही तेज़ आगे चलकर मां मनसा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
देखिए सुरवंदना में विष्णु भगवान करेंगे भक्तों का उद्धार,बृहस्पति देव करेंगे विवाह समस्याओं को दूर.साईं व्रत से मिलेगा सुखी जीवन का वरदान,मां सरस्वती से आशीर्वाद में मिलेगा ज्ञान
महादेव, जिनकी गोद में ब्रह्माण्ड भी सूक्ष्म है, वो जितने सरल हैं, उतने ही जटिल भी हैं. कालों के काल कहे जाने वाले भगवान की नगरी अवंतिका यानी उज्जैन भी उतने ही रहस्यों से भरी है. यहां आज भी कई बेहद अजीबोगरीब परंपराओं का पालन किया जाता है.
करवाचौथ को लेकर भी समय-समय पर की कहानियां घटित हुई हैं. देवी करवा के सतीत्व के आधार पर व्रत का नाम करवाचौथ पड़ा. महाभारत में द्रौपदी ने भी यह व्रत किया था.
लोक व्यवहार में कार्तिक चतुर्थी स्कंद माता स्वरूप देवी शक्ति से उनके जैसा सौभाग्य और प्राप्त करने का दिन है और श्रीगणेश के आशीष से इसके अखंड बनाए रखने की प्रार्थना का दिन है.
हिमाचल में यमराज के मंदिर से आगे बढ़ने पर स्वर्ग जाने का रास्ता है. रावण की भक्ति को माने तो वहां स्वर्ग जाने की सीढ़ी है. कुबेर की तपस्या से देखें तो वो मानस केंद्र है. वैज्ञानिकों के नज़रिए से देखें तो कैलाश एक बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव रेडिएशन वाला पहाड़.
श्रीहरि ने कार्तिक को महज एक मास नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग बताया है. आश्विन शुक्ल पूर्णिंमा के बाद अब 1 नवंबर से कार्तिक मास प्रारंभ हो चुका है. श्रद्धालु इसके महात्म्य के अनुसार कार्तिक के प्रत्येक दिन पुण्य लाभ कमाते हैं.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से कहा गया है कि 1 नवंबर से प्रतिदिन 15 हजार श्रद्धालुओं को वैष्णो देवी के दरबार में जाने की इजाजत होगी. अभी प्रतिदिन अधिकतम 7 हजार लोग त्रिकुटा पर्वत पर पवित्र गुफा में दर्शन कर सकते हैं.
खीर खाना, पित्त को नियंत्रित करता है. इसलिए पित्त के असंतुलन से बचने के लिए इस समय खास तौर से खीर खाने की परंपरा है. खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है और मलेरिया के खतरे को कम करती है.
केरल के कासरगोड में अनंतपुरा मंदिर में एक मगरमच्छ रहता है जो मांसाहारी नहीं शाकाहारी है. उसे मछलियां और मांस नहीं पसंद वो चावल और गुड़ का प्रसाद खाता है. ये मगरमच्छ भक्तों के साथ एक भक्त की तरह मंदिर में रहता है. भगवान विष्णु की भक्ति करता है.