नई दिल्ली: शनि और बृहस्पति हमारे निकटतम अंतरिक्ष के दो बड़े ग्रह हैं. जिनका काफी असर ज्योतिष शास्त्र के नजरिए देखा जाता है.
आज है महासंयोग
हमारे सौरमंडल में बृहस्पति पांचवा और शनि छठा ग्रह है. आज यानी 21 दिसंबर की रात सबसे बड़ी है. दोनों ग्रह एक दूसरे के बेहद नजदीक आ रहे हैं. इनके बीच की दूरी मात्र 73.5 किलोमीटर होगी.
इस दुर्लभ खगोलीय घटनाक्रम को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है. आज के दिन बृहस्पति और शनि 0.1 डिग्री नजदीक दिखाई देंगे. इसके पहले दोनों ग्रहों की कक्षाएं नजदीक आती जाएंगी, जब तक ये दोनों सबसे नजदीक नहीं पहुंच जाते. अंतरिक्ष विशेषज्ञों के मुताबिक साल 1623 के बाद शनि और बृहस्पति के बीच की सबसे कम दूरी होगी.
हमारे जीवन की दुर्लभ घटना
दूसरे ग्रहों की तरह ही बृहस्पति और शनि भी लगातार सूर्य का चक्कर लगाते हैं. जहां पृथ्वी 365 दिनों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है. वहीं इस काम में बृहस्पति को 11.86 वर्ष और शनि को 29.5 वर्ष लगते हैं.
दोनों ग्रहों के परिक्रमा के समय में इस बड़े अंतर की वजह से बेहद लंबे अंतराल पर ही ये दोनों ग्रह एक साथ आकाश में दिखते हैं. 21 दिसंबर 2020 को नजदीक आने के बाद बृहस्पति और शनि मार्च 2080 यानी 60 साल बाद एक दूसरे के करीब आएंगे.
तब हमारी पीढ़ी के ज्यादातर लोग गुजर चुके होंगे. इस नजरिए से बृहस्पति और शनि का यह संयुग्मन बेहद दुर्लभ घटना है.
ज्योतिष के नजरिए से भी अहम घटना
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति को ग्रहों का राजा माना जाता है. यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. इसे देवताओं के गुरु की उपाधि दी गई है. बृहस्पति का प्रभाव शुभ फल प्रदान करता है. यह व्यक्ति को न्याय की तरफ अग्रसर करता है.
वहीं शनि की गिनती क्रूर ग्रहों में होती है. यह दंड देकर व्यक्ति को सुधारते हैं. लेकिन दोनों ही ग्रह न्यायप्रिय हैं. यह मनुष्य को न्यायोचित जीवन देने की प्रेरणा देते हैं. लेकिन दोनों का तरीका अलग अलग है. लेकिन न्याय की भावना प्रधान होने के कारण दोनों में नैसर्गिक संबंध होता है.
वैदिक ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक शनि एक राशि में लगभग 2.5 साल जबकि बृहस्पति एक राशि नें 12 से 13 माह तक रहते हैं. इस बार की युति के दौरान दोनों ही ग्रह मकर राशि में उपस्थित हैं. जो कि शनि की स्वराशि है.
20 नवंबर से शुरु है महासंयोग
शनि और बृहस्पति के नजदीक आने की प्रक्रिया 20 नवंबर से चल रही है. जब बृहस्पति धनु राशि से निकल कर मकर राशि में आए. वहां शनिदेव पहले से मौजूद थे. दोनों के संयुग्मन की यह प्रक्रिया 21 दिसंबर यानी आज अपने चरम पर होगी.
दोनों ग्रह एक दूसरे के प्रति सम भाव रखते हैं. अर्थात् इनमें ना तो शत्रुता है और ना ही मित्रता. लेकिन न्याय के प्रति दोनों की दृष्टि समान है. दोनों न्यायप्रिय ग्रहों का एक साथ एक ही राशि में आना ज्योतिष की दृष्टि से अद्भुत घटना है. इसका असर पूरी दुनिया पर देखा जा सकता है.
शनि और बृहस्पति के लक्षण
फलित शास्त्र के अनुसार बृहस्पति का रंग पीला, विशाल पेट और भूरी आंखों और केशों से सुसज्जित होते हैं. यह अध्यात्म और ब्रह्म विद्या पर प्रभाव रखते हैं. भगवान शिव के आदेश से बृहस्पति समस्त सात्विक शक्तियों को धारण और उनका संरक्षण करते हैं.
वहीं शनिदेव का रंग गहरा नीला होता है. उनके नेत्र तीक्ष्ण होते हैं. वह दुष्टों को दंड देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. शनि और बृहस्पति में समानता यह होती है कि जहां बृहस्पति शुभत्व को जागृत करके लोगों को बुरे कर्मों से दूर रखते हैं, वहीं शनिदेव दंड का भय दिखाकर लोगों को बुरे कर्मों से बचाते हैं.
यदि मनुष्य अपनी चेतना के आधार पर सत्-असत्, न्याय-अन्याय की पहचान करना सीख ले और बुरे कर्मों से दूर रहे तो शनिदेव उसपर अनंत कृपा करते हैं. चेतना के विकसित होने के लिए बृहस्पति का प्रसन्न होना जरुरी होता है. इस नजरिए से शनि और बृहस्पति एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं.
आज शनि और बृहस्पति की युति देश और दुनिया पर भारी असर दिखाने वाली है. जिसके आसार कोरोना महामारी के फिर से प्रसार, सड़कों पर हिंसा और तोड़ फोड़ के रुप में देखा जा रहा है. लेकिन सन्मार्ग पर चलने वाले सत्पुरुषों के लिए यह भी सामान्य घटना है. जिसका चित्त सदैव ईश्वर के ध्यान में लीन है. ऐसे लोगों पर ग्रहों की उथल पुथल का ज्यादा असर नहीं पड़ता.
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