नई दिल्लीः पात-पात पर प्रभु, कंकड़-कंकड़ शिव, भारत भूमि के लिए कही जाने वाली यह पंक्ति अतिश्योक्ति नहीं, बल्कि सच है. यहां गुफा-कंदराओं, पहाड़ों, नदियों और मैदानों में ऐसे-ऐसे सिद्ध देवालय हैं कि उनका पराक्रम और चमत्कार सभी को सिर झुकाने पर मजबूर कर देता है.
जहां विज्ञान भी नतमस्तक होकर खड़ा रहे ऐसे हैं भारत भूमि के मंदिर. उत्तराखंड राज्य आध्यात्म का केंद्र है और इसी भूमि पर एक दिव्य मंदिर है, एक हथिया देवाल.
यहां है स्थित
पिथौरागढ़ से धारचूला जाने वाले मार्ग पर लगभग सत्तर किलोमीटर दूर स्थित है कस्बा थल. यहां से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम सभा बल्तिर, जहां एक अभिशप्त देवालय भक्तों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है. यही है एक हथिया देवाल.
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं, भगवान भोलेनाथ का दर्शन करते हैं, मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को निहारते हैं और पुनः अपने घरों को लौट जाते हैं. यहां भगवान की पूजा नहीं की जाती.
एक हाथ से बना था मंदिर
एक हथिया देवाल का मतलब है – एक हाथ से बना हुआ. यह मंदिर बहुत प्राचीन है और पुराने ग्रंथों, अभिलेखों में भी इसका जिक्र आता है. किसी समय यहां राजा कत्यूरी का शासन था. लोगों का मानना है कि एक बार यहां किसी कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण करना चाहा. वह काम में जुट गया. कारीगर की एक और खास बात थी. उसने एक हाथ से मंदिर का निर्माण शुरू किया और पूरी रात में मंदिर बना भी दिया.
अद्भुत स्थापत्य कला
मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है. चट्टान को काट कर ही शिवलिंग व मंदिर बनाया गया है. मंदिर का साधारण प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है. मंदिर के मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है. मंदिर को देखने दूर- दूर से लोग पहुंचते हैं, लेकिन पूजा नहीं करते हैं.
ऐसे बना था मंदिर
कहते हैं कि गांव में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकाटकर मूर्तियां बनाता था. एक बार किसी दुर्धटना में उसका एक हाथ नहीं रहा. वह एक हाथ से ही मूर्तियां बनाने की कोशिश करने लगा. लोग उसे उलाहना देते और चिढ़ाते भी थे.
लगभग सारे गांव से एक जैसी उलाहना सुन सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया. ऐसे में उसने गांव छोड़ने का निर्णय लिया. एक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गांव से बाहर निकल पड़ा. गांव के बाहर का दक्षिणी छोर लोगों के लिए प्रमुख नहीं था, लेकिन शौच आदि के लिए लोग इस ओर आते थे. यहां पर एक विशाल चट्टान थी.
इसलिए नहीं होती है पूजा
अगली सुबह गांव वाले जब शौच आदि के लिए उस दिशा में गए तो विशाल चट्टान को देवालय के रूप में पाया. इस पर पूछताछ के लिए सारे गांव वाले इकट्ठे हुए, लेकिन वहां एक हाथ वाला कारीगर नहीं था. लोगों ने समझ लिया कि यह देवालय उसी मूर्तिकार ने बनाया है.
लोगों को अपने उलाहनों पर दुख हुआ. दूसरी ओर अंधकार में निर्माण करने के कारण मूर्तिकार ने शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बना दिया, इसके कारण यह शिवलिंग पंडितों ने पूजा के लिए उपयुक्त नहीं पाया.
इसलिए महादेव के इस विशेष और आकर्षक मंदिर के दर्शनों के लिए तो दूर दूर से लोग आते हैं, लेकिन यहां पूजा नहीं होती है.
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