Mundeshwari Dham Mystery: आपने भगवान शिव के काफी मंदिरों में दर्शन किए होंगे. लेकिन क्या आप एक रहस्यमयी धाम के बारे में जानते हैं, जहां पर 5 मुख वाले भोलेनाथ मौजूद हैं. दिन में 2 बार शिवलिंग अपना रंग बदल लेता है.
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Mystery of Panchmukhi Shivling Temple Kaimur: भगवान शिव देवों के देव हैं. केवल आम मनुष्य ही नहीं बल्कि देव-दानव भी भोलेनाथ की तपस्या करके उनसे वरदान पाते हैं. वे स्वभाव से सरल हैं और उन्हें महज सच्ची भक्ति भावना से भी आसानी से पाया जा सकता है. आज हम आपको भगवान शिव का वो रहस्य-पुराण बताने जा रहे हैं, जो उनके अस्तित्व को ब्रह्मांड के 8वें आयाम से जोड़ता है. इसे जानकर भी भगवान शिव की महिमा जानकर हैरान रह जाएंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के कैमूर में एक शिव मंदिर है, जिसे मुंडेश्वरी धाम कहते हैं. वहां पर देवी सती और शिव दोनों का शाश्वत वजूद है. देवी सती के रूप को कहते हैं माता मुंडेश्वरी और यहां स्थापित पंचमुखी शिवलिंग को मानते हं महामंडलेश्वर शिव. महामंडलेश्वर यानी पूरे महामंडल अर्थात ब्रह्मांड के ईश्वर, जिन्हें सांकेतिक रूप से स्थापित करने के लिए अद्भुत आकार वाला मंदिर बनवाया गया.
अष्टकोणीय मंदिर, 4 दरवाजे
आपने शिव मंदिरों में आमतौर पर एकमुखी शिवलिंग ही देखा होगा, लेकिन यहां शिव के पांच मुख हैं. पंचमुखी शिवलिंग के वजूद का वैदिक संकेत समझने से पहले, शिवलिंग का रंग रहस्य जान लीजिए.
24 घंटे में 2 बार रंग कैसे बदलता है पंचमुखी शिव का?
शिवलिंग के रंग बदलने का ये रहस्य यहां हर आने जाने वाले को हैरान करता है. हालांकि उस दृश्य को कुछ आस्थागत विधानों की वजह से कैमरे में कैद नहीं कर सकते, लेकिन यहां के पुजारी बताते हैं कि सूर्योदय के बाद जैसे जैसे दिन ढलता है, वैसे वैसे शिवलिंग का रंग तीन पहर में तीन तरह का दिखाई देता है.
अगर सूर्य की किरणों के साथ रंग बनता है, तो दो ही चीजें यहां साफ होती हैं. एक तो मंदिर की रौशनी की व्यवस्था और दूसरी शिवलिंग के पत्थर की विशेषता. अगर ये किसी वैदिक गणना के तहत बनाया गया है, तो ये और भी हैरान करता है, क्योंकि मंदिर का निर्माण आज से 1600 साल पहले उत्तर गुप्तकाल, यानी चौथी शताब्दी में कराया गया.
पंचमुखी शिवलिंग का रहस्य
इस दौरान बने शिव मंदिर एक रहस्ययमी योग संयोग के साथ स्थापित किए जाते थे. उन्हीं में से एक है ये पंचमुखी शिवलिंग, जिसके वैदिक विधानों के मुताबिक इसका रहस्य कुछ इस प्रकार है:-
पूर्व मुख- तत्पुरुषा (सूर्य)
पश्चिम मुख- साध्योजटा (ब्रह्मा)
उत्तर मुख- वामदेव (विष्णु)
दक्षिण मुख- अघोरा (रुद्र शिव)
उर्ध्वमुख- ईशान (अनंत)
अलग देव शक्तियों को आकर्षित करते मुख
शिव के पांचों मुख ब्रह्मांड की अलग अलग देव शक्तियों को आकर्षित करते हैं. पूर्व की तरफ वाला मुख सूर्य की उर्जा को आकर्षित करता है, तो पश्चिम का मुख ब्रह्मा की शक्ति का जागरण करता है. इसी तरह उत्तर का मुख भगवान विष्णु तो दक्षिण का मुख भगवान शिव के रुद्र रूप की शक्ति जागृत करता है. जो पांचवा मुख है वो ऊपर होता है, यानी शिवलिंग के ऊपर ब्रह्मांडीय किरणों को आकर्षित करने वाला केन्द्र.
मुंडेश्वरी धाम में भगवान शिव का ये अद्भुत लोक में जिस विधान के तहत बनाया गया है, उसका जिक्र दुनिया के पहले ग्रंथ माने जाने वाले ऋग्वेद में मिलता है. इसके मुताबिक भगवान शिव इस ब्रह्मांड के वो तत्व हैं, जिसे आज का विज्ञान डार्क मैटर की संज्ञा देता है. डार्क मैटर ब्रह्मांड में वो चीज है, जिससे ब्रह्मांड का 85 फीसदी हिस्सा बना है और यही मैटर पूरे लौकिक और अलौकिक ब्रहांड को रहस्यमयी उर्जा में बांधे हुए है.
ब्रह्मांड के 8वें आयाम में शिवलोक
ऋग्वेद के मुताबिक भगवान शिव इस ब्रह्मांड के 8वें आयाम में रहते हैं. अब यहां आयाम का वेद और विज्ञान समझ लीजिए. आयाम यानी विज्ञान का डाइमेंशन. वेदों में ब्रह्मांड के 64 आयाम बताए गए हैं. जबकि विज्ञान अब तक ब्रह्मांड को 3 आयाम में ही देख पाता है. तीसरे आयाम को वैज्ञानिक भाषा में 3-D यानी थर्ड डाइमेंशन कहा जाता है. मतलब, 3-D में मानव आंख किसी भी चीज को लंबाई, चौड़ाई और मोटाई में देख सकती है. विज्ञान चौथे आयाम को समय कहता है. ये गणित के कॉन्सेप्ट रूप में तो क्लीयर है, लेकिन ब्रह्मांड के इस आयाम को देखना संभव नहीं हो सकता है.
विज्ञान समय को मापने में तो सफल हुआ, लेकिन इसे देखा नहीं जा सकता, क्योंकि अब तक चौथे आयाम को देखने की तकनीक हमारे पास नहीं. लेकिन वेदों में आयाम की कल्पना चौथे आयाम से आगे की है. अव्वल तो हमारे वेद चार आयामों को ब्रह्मांड का नश्वर हिस्सा मानते हैं, यानी यहां हर चीज की उम्र तय है. वेदों के मुताबिक इस ब्रह्मांड में जो भी देव तत्व, यानी कभी खत्म नहीं होने वाला हिस्सा है, वो पांचवें आयाम से शुरू होता है.
विज्ञान से आगे वेदों में आयाम
बह्मांड के पांचवें आयाम में ब्रह्मा रहते हैं. इसी आयाम से अलौकिक ब्रह्मांड का लगातार निर्माण होता है. छठे आयाम में महाविष्णु का लोक है. इसी आयाम में पूरे ब्रह्मांड के तत्व का निर्माण होता है. 7वें आयाम को सत्य आयाम यानी ब्रह्म ज्योति कहते हैं. ब्रह्मांड का पूरा तत्व ज्ञान इसी आयाम में है, जिसकी प्राप्ति के बाद मनुष्य देवताओं की श्रेणी में आता है. आठवां आयाम शिवलोक है, जहां शिव भौतिक रूप में, यानी सशरीर मौजूद होते हैं. इस आयाम से ही नीचे के 7 आयामों का संतुलन कायम होता है.
9वें आयाम को बैकुंठ कहते हैं. वेदों में मोक्ष की अवधारणा इसी 9वें आयाम से जुड़ी है. वहीं 10वें आयाम को अनंत कहा गया है. इसी आयाम से संपूर्ण सृष्टि की रचना हई. इसीलिए वेद कहते हैं, शिव हैं तो सृस्टि है, शिव हैं तो जीव हैं. इसलिए धरती पर कहीं एकमुखी से लेकर पंचमुखी शिवलिंग, तो कहीं मानव मूर्ति की शक्ल में शिव को विराजमान करने का विधान है...
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)