E-Cigarette Risk: कई टीन एजर्स ये सोचते हैं कि ई-सिगरेट पीने से सेहत को कम खतरा होता है, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो ये बात सही नहीं है, क्योंकि वैपिंग से लंग कैंसर का रिस्क बढ़ सकता है.
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Is the Increase in Teen Vaping Affecting Lung Cancer Rates: सिगरेट पीना तो वैसे ही सेहत के लिए खतरनाक है, लेकिन आजकल युवाओं और किशोर उम्र के लोगों में ई-सिगरेट पीने का चलन बढ़ा है, जिसे वैपिंग कहा जाता है. किशोरों के बीच वेपिंग की बढ़ती लत चिंताजनक हो गई है, जिसकी वजह से लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. आमतौर पर इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट को पारंपरिक तंबाकू वाले सिरगेट के सुरक्षित विकल्प के तौर पर प्रचारित किया जाता है, लेकिन ये कम खतरनाक नहीं. फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट, गुरुग्राम के डायरेक्टर और यूनिट हेड (पल्मोनोलॉजी) डॉ. मनोज कुमार गोयल (Dr. Manoj Kumar Goel) ने बताया कि टीन वैपिंग के क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
वैपिंग से लंग कैंसर का खतरा क्यों?
कई फैक्टर्स ऐसे ही जिसके कारण किशोरों के वेपिंग लंग कैंसर के रेट बढ़ जाते हैं. टीन वैपिंग इस बात का सबूत है कि 20 साल से कम उम्र के लोगों में निकोटीन की लत लगातार बढ़ रही है, .ये एक नशीला पदार्थ वैपिंग के प्रोडक्ट में भरपूर मात्रा में पाया जाता है. ये शारीरिक विकास की तरफ बढ़ रहे किशोरों के ब्रेन पर बुरा असर डाल सकता है. न्यूरोलॉजिकल विकास के अहम चरणों के दौरान निकोटीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एडल्टहुड के समय स्वास्थ्य समस्याएं आ सकती हैं, जिनमें कैंसर के रिस्क में इजाफा भी शामिल है.
नुकसानदेह है ई-सेगरेट
इसके अलावा ई-सिगरेट एरोसोल का रासायनिक गठन नुकसान से परे नहीं है. हालांकि ई-सिगरेट में पारंपरिक तंबाकू के धुएं में पाए जाने वाले कई खतरनाक रसायनों का अभाव होता है, फिर भी उनमें फॉर्मल्डेहाइड और ऐक्रेलिन जैसे संभावित रूप से हानिकारक पदार्थ होते हैं. इन केमिकल्स के लंबे समय तक संपर्क में रहने से, खास तौर से शुरुआती टीन एज के दौरान, सांस से जुड़ी समस्याओं के विकास में योगदान हो सकता है और समय के साथ फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.
फ्लेवर्ड ई-सिगरेट से भी बचें
फ्लेवर्ड ई-सिगरेट की तरफ अट्रैक्शन इस समस्या को और बढ़ा देता है, जिससे किशोरों को ऐसी आदत की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके लॉन्ग टर्म इफेक्ट हो सकते हैं. फल, पुदीना और कैंडी जैसे स्वाद किशोरों के लिए वेपिंग को अधिक आकर्षक बना सकते हैं, जिससे संभावित रूप से उपयोग में वृद्धि और हानिकारक पदार्थों के लंबे समय तक संपर्क में रहना पड़ सकता है.
कैसे कम होगा खतरा?
भारत सरकार ने टीन वैपिंग को रोकने की कोशिश की है, जिनमें ई-सिगरेट की बिक्री पर रोक और वेपिंग से जुड़े जोखिमों को उजागर करने वाले अवेयरनेस प्रोग्राम शामिल हैं. हालांकि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट पर बैन के बावजूद ये चलन रुकने का नाम नहीं ले रहा, इसलिए कई बार सारी कोशिशें नाकाफी साबित होती हैं.
बढ़ सकता है लंग कैंसर का रेट
अगर टीन वैपिंग इसी तरह बढ़ता रहा तो लॉन्ग टर्म में इससे किशोरों में लंग कैंसर का रेट बढ़ सकता है. निकोटीन में एडिक्टिव नेचर होता है, जो हमारी सेहत को नुकसान हो सकता है, ये किशोर उम्र के लोगों के रिस्पिरेटरी हेल्थ के लिए भी अच्छा नहीं है. इसके लिए युवाओं और टीन एज ग्रुप के लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है. साथ ही ई-सिगरेट के प्रोडक्शन, सेल, डिस्ट्रीब्यूशन पर बैन का सख्ती से पालन करने की जरूरत है.