Uddhav Thackeray: कैमरे का महारथी नेता, जो परदे के पीछे की बगावत का बना शिकार
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Uddhav Thackeray: कैमरे का महारथी नेता, जो परदे के पीछे की बगावत का बना शिकार

Uddhav Thackeray: पिता बाला साहेब ठाकरे के आक्रामक रुख के उलट मृदु भाषी माने जाने वाले उद्धव ने नवंबर 2019 में तीन पार्टियों के गठबंधन महा विकास आघाडी (MVA) के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने कोई सार्वजनिक पद ग्रहण किया था.

Uddhav Thackeray: कैमरे का महारथी नेता, जो परदे के पीछे की बगावत का बना शिकार

Uddhav Thackeray: साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Legislative Assembly Election) से पहले तक बहुत लोगों ने नहीं सोचा होगा कि शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackeray) के बेटे उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) पुरानी सहयोगी भाजपा के साथ दशकों पुराने गठबंधन को तोड़कर मुख्यमंत्री बनेंगे एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) तथा कांग्रेस के साथ नामुमकिन माने जाने वाला गठबंधन कर सरकार का नेतृत्व करेंगे. 

परिवार में सार्वजनिक पद पर बैठने वाले पहले शख्स

पिता बाला साहेब ठाकरे के आक्रामक रुख के उलट मृदु भाषी माने जाने वाले उद्धव ने नवंबर 2019 में तीन पार्टियों के गठबंधन महा विकास आघाडी (MVA) के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने कोई सार्वजनिक पद ग्रहण किया था. उनके पिता, जिन्होंने शिवसेना की स्थापना की थी ने कभी सार्वजनिक पद ग्रहण नहीं किया था लेकिन वर्ष 1995-99 में बनी पहली शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार को ‘रिमोट कंट्रोल’ की भांति चलाया. 

शरद पवार ने बनाया CM

कुशल फोटोग्राफर उद्धव ठाकरे स्वभाव से मिलनसार हैं लेकिन 2019 के चुनाव के बाद ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद की मांग भाजपा के सामने रखते हुए उन्होंने अपने पिता की तरह ही आक्रामक रुख का प्रदर्शन किया था. उद्धव ठाकरे ने स्वयं कई बार कहा था कि महा विकास आघाडी बनने के बाद वह मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक नहीं थे लेकिन राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने उनके शीर्ष पद की जिम्मेदारी लेने पर जोर दिया.

'दिग्गा के नाम से मशहूर'

मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे (61 वर्षीय) की राजनीतिक पारी बुधवार को अचानक उस समय समाप्त हो गई जब शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने उनसे बगावत कर दी और पार्टी के अधिकतर विधायक बागी गुट में चले गए. बाल ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे जिन्हें ‘दिग्गा’ के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने पिता की पार्टी के कार्यों में 1990 से ही मदद करनी शुरू कर दी थी. 

जब राज ठाकरे हुए पार्टी से अलग

उद्धव ठाकरे को 2001 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया जबकि उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को अधिक करिश्माई और आक्रामक नेता माना जाता था. उद्धव ठाकरे की इस पदोन्नति से अंतत: पार्टी में टूट हुई. वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यंत्री नारायण राणे ने भी राज ठाकरे का अनुकरण किया और वर्ष 2005 में शिवसेना से अलग हो गए. हालांकि, इस झटके के बावजूद शिवसेना अहम बृह्नमुंबई महानगरपालिका और ठाणे निगम चुनाव वर्ष 2002,2007, 2012 और 2017 में जीतने में सफल रही. वर्ष 2012 में जब बाल ठाकरे का निधन हुआ तो पार्टी के कई आलोचकों का कहना था कि शिवसेना समाप्त हो सकती है. 

पार्टी की छवि बदलने में सफल रहे उद्धव

लेकिन इन बातों को गलत साबित करते हुए उद्धव ठाकरे पार्टी को एकजुट रखने में सफल रहे. उन्होंने इसके साथ ही सड़क पर लड़ने वाली पार्टी की पुरानी छवि में बदलाव ला कर शिवसेना को अधिक परिपक्व राजनीति दल बनाने पर जोर दिया. उद्धव ठाकरे वन्य जीव फोटोग्राफर (Wild Life Photographer) हैं. महाराष्ट्र के कुछ किलों की उनकी तस्वीरें दिल्ली में स्थापित नए महाराष्ट्र सदन की दीवारों पर लगी हैं. वर्ष 2014 में जब शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, तब उद्धव ठाकरे ने पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी संभाली और शिवसेना विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा. 

अब भी पार्टी की कमान संभालेंगे उद्धव

हालांकि, बाद में शिवसेना ने दोबारा भाजपा से हाथ मिलाया और राज्य में सरकार बनाई. वर्ष 2019 में दोनों पार्टियां फिर मुख्यमंत्री पद को लेकर अलग हो गईं और शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिला लिया. ठाकरे ने पिछले हफ्ते फेसबुक लाइव पर कहा, ‘मैं जो भी करता हूं, चाहे इच्छा से या अनिच्छा से...मैं पूरी प्रतिबद्धता से करता हूं.’ उनकी इस प्रतिबद्धता की उनके राजनीतिक करियर में भी परीक्षा होती रही. उन्होंने बाल ठाकरे के निधन के बाद पार्टी में बगावत होने पर शिवसेना में उतार-चढ़ाव को भी देखा. उनके कार्यकाल में कोरोना वायरस महामारी का सबसे बुरा दौर आया जिसमें उनके कार्य की प्रशंसा हुई. लेकिन शिवसेना नेताओं के एक धड़े ने शिकायत की कि मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष उनकी पहुंच से दूर हैं. कई शिवसेना नेता घोर विरोधी कांग्रेस और राकांपा से गठबंधन को भी लेकर असहज थे. इस बीच, ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि भले ही उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया है लेकिन वह पार्टी मुख्यालय शिवसेना भवन में बैठेंगे और कार्यकताओं व नेताओं से मिलेंगे. अब यह देखना रोचक होगा कि क्या ठाकरे कमजोर हो चुकी पार्टी को फिर से मजबूत स्थिति में लाने में सफल होते हैं या नहीं.

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