Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से पूछा है कि समलैंगिक शादी (Same Sex Marriage) को मान्यता दिए बगैर ऐसे कपल की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनकी परेशानी को दूर करने के लिए केंद्र क्या कदम उठा सकता है.
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Supreme Court on Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से पूछा है कि समलैंगिक शादी (Same Sex Marriage) को मान्यता दिए बगैर ऐसे कपल की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनकी परेशानी को दूर करने के लिए केंद्र क्या कदम उठा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून ऐसे हेट्रोसेक्सुअल कपल को भी अधिकार देता है, जो विधिवत शादी के बंधन में नहीं बंधे होते है, लेकिन लंबे वक्त से साथ रह रहे होते है. तो क्या ऐसे अधिकार समलैंगिक कपल को नहीं दिए जा सकते. इस तरह के अधिकार उनमें सामाजिक सुरक्षा का एहसास कराएंगे.
'मामला विधायिका के दायरे में होने की दलील में दम'
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आपकी इस दलील में दम है कि ये मामला विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और कोर्ट को इसमे दखल नहीं देना चाहिए. लेकिन, वक्त के साथ कानून और समाज बदलता है. हम ये जानना चाहते हैं कि समलैंगिक शादी को मान्यता दिए बगैर आप उनकी परेशानी को दूर करने के लिए क्या कदम उठा सकते हो. क्या समलैंगिक जोड़ों को जॉइंट बैंक अकाउंट रखने या बीमा पॉलिसी में अपने साथी को नामांकित करने की अनुमति देकर उन्हें वित्तीय सुरक्षा देने के कुछ उपाय किया जा सकते हैं.
'समलैंगिक कपल की दिक्कत कैसे दूर करेगी सरकार'
बेंच के सदस्य जस्टिस सजंय किशन कौल ने भी कहा कि समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने के बाद ऐसे लोग खुलकर सामने आ रहे है. ऐसे में हम ये जानना चाहते हैं कि क्या ऐसे लोगों को रोजमर्रा के जिन्दगी में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार कुछ सोच रही है.
SG तुषार मेहता का कोर्ट को आश्वासन
सरकार की ओर से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इन दिक्कतों को समझती है. वो इस मसले पर कोर्ट को सहयोग देने के लिए तैयार है. इस पर विचार किया जा सकता है कि बिना समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता दिए हुए भी उनकी व्यवहारिक दिक्कतों को कैसे दूर किया जा सकता है.
आगे परिवारिक रिश्तों में यौन संबंध के खिलाफ प्रावधानों को भी दी जा सकती है चुनौती-SG
इससे पहले सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलील है कि उन्हें अपने सेक्सुअल रुझान के मुताबिक संबंध रखने का अधिकार है. इस दलील के आधार पर तो आगे चलकर कोई नजदीकी परिवारिक रिश्तों में यौन संबंध के खिलाफ मौजूदा प्रावधानों को भी चुनौती दे सकता है. उसकी दलील हो सकती है कि दो वयस्क लोगों ने अपनी मर्जी से ऐसे संबंध कायम किए हैं, उन्हें भी शादी का अधिकार मिलना चाहिए और सरकार को इसमें दखल देने का कोई औचित्य नहीं है.
CJI ने दलील पर सवाल उठाया
चीफ जस्टिस ने एसजी तुषार मेहता की इस दलील पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि आपकी ये दलील व्यवहारिक नहीं लगती. शादी से जुड़े मामलों में यौन स्वायत्तता की दलील को उठाकर परिवारीक रिश्तों में यौन संबंध/शादी को सही नहीं ठहराया जा सकता.
समलैंगिक कपल में किसे पति माना जाएगा, किसे पत्नी- SG
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से विभिन्न कानूनों की 160 धाराएं प्रभावित होंगी. वहीं ऐसी शादियों को मान्यता मिल जाने के बाद तलाक, संतान गोद लेने और अलगाव की स्थिति में पत्नी और बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी से जुड़े कानूनों को लागू करने में तमाम दिक्कतें पेश आएंगी. ऐसे मामलों में किसे पति माना जाए और किसे पत्,नी अदालत इसे तय करने में नाकाम रहेंगी. अभी पत्नी रेप, अप्राकृतिक यौन सबंध संबंध का हवाला देकर तलाक मांग सकती है. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पत्नी गुजारा भत्ता की भी मांग कर सकती है, फिर समलैंगिक संबंधों में कौन पति होगा और कौन पत्नी, ये कैसे तय होगा. अगर आप दोनों ही समलैंगिक पार्टनर को ये अधिकार देते हैं तो भी ये हेट्रोसेक्सुअल कपल के साथ भेदभावपूर्ण होगा.