सिलक्यारा टनल रेस्क्यू: ऑपरेशन के वो आखिरी 90 मिनट, 17 दिनों की बेसब्री के बाद कैसे बढ़ गई थी बेचैनी
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सिलक्यारा टनल रेस्क्यू: ऑपरेशन के वो आखिरी 90 मिनट, 17 दिनों की बेसब्री के बाद कैसे बढ़ गई थी बेचैनी

उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में फंसे सभी 41 मजदूरों को 28 नवंबर को सुरक्षित निकाल लिया गया. लेकिन हम यहां बात उन रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े उस 90 मिनट की करेंगे जो बेहद चुनौतीपूर्ण थे.

सिलक्यारा टनल रेस्क्यू: ऑपरेशन के वो आखिरी 90 मिनट, 17 दिनों की बेसब्री के बाद कैसे बढ़ गई थी बेचैनी

Uttarkashi Tunnel rescue:  एक कहावत है कि जब आप मंजिल के बेहद करीब होते हैं तो बेचैनी कुछ अधिक ही बढ़ जाती है. मंगलवार को जब माइक्रो टनल क्रिस कूपर ने कहा कि हमारा मिशन सही दिशा में आगे बढ़ रहा. अब बस कुछ मीटर की खुदाई बची है तो उम्मीद बढ़ गई कि मिशन को कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन बीच में जब थोड़ी देर के लिए बारिश हुई तो ऐसा लगा कि मिशन पर असर पड़ सकता है. हालांकि हल्की सी बारिश के बाद मौसम पूरी तरह साफ हो चुका था. मिशन को और रफ्तार मिल गई. दोपहर बाद ऑपरेशन में और तेजी आई. खास बात यह रही है कि जब सिलक्यारा टनल के बाहर एंबुलेंस की हलचल तेज हुई, टनल के अंदर गद्दे और दूसरे सामान भेजे गए तो तस्वीर करीब करीब साफ हो चुकी थी कि मिशन अब अपने सफल अंजाम की तरफ बढ़ रहा है.

मिशन के आखिरी वो 90 मिनट

वैसे तो 12 तारीख से ही  मजदूरों को टनल से बाहर निकालने की प्रक्रिया पर काम शुरू हो चुका था. लेकिन जितनी बेसब्री इन 17 दिन रही उससे अधिक बेचैनी मिशन के आखिरी के 90 मिनट दिखाई दी थी. आखिर के डेढ़ घंटे में एक एक कर जैसे मजदूर बाहर आ रहे थे.वैसे वैसे रेस्क्यू के काम में लगी टीम की खुशी से नारे लगाती हुई दिखाई दी.आखिरी के डेढ़ घंटे में ये मलबा हटाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी. इसका अंदाजा .टनल के अंदर पहाड़ जैसा मलबा हटाने की कोशिश चल रही थी... तो बाहर उस मलबे को खाली करने की कोशिशें भी ज़ोरदार तरीके से चल रही थीं. NDRFऔर दूसरी एजेंसियों ने मिलकर करीब डेढ़ घंटे में ये रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा किया था.एनडीआरएफ के अधिकारी कहते हैं कि हमेशा एक ही बात की चिंता थी कि आखिरी क्षण में किसी तरह की मुश्किल ना आ जाए. समतल ड्रिलिंग कर रैट माइनर्स अपना काम कर चुके थे. लेकिन मजदूर टनल के अंदर ही फंसे हुए थे. जब आखिरी पाइप को वेल्ड कर पुश किया गया और वो मजदूरों के पास पहुंच गया तो ऐसा लगा कि अब हम अपना काम कर लेंगे.

आखिरी मजदूर तक अटकी रही सांस

एनडीआरएफ के अधिकारी कहते हैं कि इस तरह के मिशन में हर एक सेकेंड कीमती होता है. आखिर सवाल लोगों की जिंदगी से जुड़ा होता है. किसी तरह की लापरवाही का मतलब यह है कि आप किसी भी मोड़ पर किसी भी समय पर मंजिल से काफी दूर जा सकते हैं. ऐसे में ज्यादा धैर्य की जरूरत होती है. हमने यह कोशिश की अब इस मोड़ पर किसी तरह की जल्दबाजी नहीं दिखाएंगे, इत्मिनान के साथ एक एक मजदूर को पाइप के रास्ते बाहर निकालेंगे. जब पाइप के रास्ते मजदूर बाहर निकलने लगे तो जान में जान आई कि चलो अब मिशन को कामयाब होने में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी. और टनल से जब आखिरी मजदूर बाहर निकला तो दिमाग से तनाव के बादल छंट चुके थे और 17 दिन तक चलने वाला यह मिशन पूरी तरह कामयाब हो गया.

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