Uttarkashi Tunnel: 17 दिन कैसे नहाया, क्या क्या खाया; शौचालय कैसे गए? मजदूर ने बताई एक एक कहानी
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Uttarkashi Tunnel: 17 दिन कैसे नहाया, क्या क्या खाया; शौचालय कैसे गए? मजदूर ने बताई एक एक कहानी

Uttarkashi Tunnel Rescue: सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों को निकाला जा चुका है. अब आपको यह जानने में दिलचस्पी होगी कि 17 दिनों तक मजदूरों ने टनल में जिंदगी कैसे बिताई, उन्हें खाने पीने के लिए क्या मिलता था, किस तरह से नहाते थे. 

Uttarkashi Tunnel: 17 दिन कैसे नहाया, क्या क्या खाया; शौचालय कैसे गए? मजदूर ने बताई एक एक कहानी

Uttarkashi Tunnel Story: सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों के सकुशल निकलने के बाद देश ने राहत की सांस ली. सिलक्यारा टनल रेस्क्यू में तरह तरह की अड़चनें सामने आईं. लेकिन रेस्क्यू टीम के हौसले के आगे सभी चुनौतियां बौनी साबित हुईं. मजदूरों को चिन्यालीसौड़ के अस्थाई अस्पताल में ऐहतियातन भर्ती कराया गया और सभी मजदूर स्वस्थ हैं. लेकिन आप को यह जानने में दिलचस्पी होगी कि टनल में फंसे होने के दौरान उनकी दिनचर्या कैसी थी, वो खाना क्या खाते थे. वो शौच के लिए कहां जाते थे. वो किस तरह से नहाते थे. यहां पर हम उनकी दिनचर्या के बारे में बताएंगे.

मिल गई दूसरी जिंदगी

अगर आप के सिर पर हर समय मौत का साया मंडरा रहा हो. सांस की डोर शरीर से किसी भी समय कट सकती हो तो ऐसी सूरत में मनोस्थिति को समझा जा सकता है. लेकिन अगर आप को उम्मीद हो कि कोई तो है जो आपको बचाने की हर संभव लड़ाई लड रहा है तो जीने के लिए हौसला खुद ब खुद आ जाता है. कुछ ऐसा ही हाल सिलक्यारा टनल में फंसे हुए मजदूरों का था. झारखंड के खूंटी के रहने वाले चमरा ओरांव बताते हैं कि फोन पर लूडो, पानी के नेचुरल स्रोत में नहाने की सुविधा, इलायची युक्त चावल के जरिए वो अपनी जिंदगी काट रहे थे. 28 नवंबर को जब उन्होंने खुली हवा में सांस ली तो लगा कि नई जिंदगी मिल गई हो. एक तरह से उनको दूसरा जीवन मिला है और इसका श्रेय रेस्क्यू टीम से जुड़े लोगों को जाता है.

ऐसी थी दिनचर्या

ओरांव बताते हैं कि 12 नवंबर को वो सुरंग में काम कर रहे थे कि जोरों से आवाज आई और मलबा गिरने लगा था. उन्होंने भागने की कोशिश की. लेकिन मलबे की वजह से फंस गए. हमें अंदाजा हो गया था कि अब लंबे समय के लिए फंस चुके हैं, ऐसे में बेचैनी बढ़ गई. हम लोगों के पास खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं था. भगवान से सिर्फ वो प्रार्थना ही कर सकते थे. अच्छी बात यह है कि उम्मीद कभी नहीं छोड़ी. करीब 24 घंटे बाद यानी 13 नवंबर को हमें इलायची युक्त चावल मिला. जब हमें खाना मिला तो यकीन हो गया कि कोई न कोई साइट पर आ चुका है और खुशी की लहर दौड़ गई. भरोसा हो गया था कि अब तो बच ही जाएंगे. लेकिन समय काटना बेहद मुश्किल हो रहा था. हम लोगों के पास मोबाइल फोन था और उस पर लूडो खेलना शुरू किया. लेकिन नेटवर्क ना होने की वजह से किसी से बात नहीं हो सकती थी. हम एक दूसरे से बातचीत कर अपनी परेशानियों को कम करने की कोशिश करते थे. उनसे जब पूछा गया कि नहाने और शौच के लिए क्या करते थे. इस सवाल के जवाब में कहा कि देखिए नहाने के लिए पानी का नेचुरल स्रोत था और शौच के लिए हमने एक जगह बना रखी थी.

देखते हैं आगे क्या करेंगे

झारखंड के ही रहने वाले विजय होरो कहते हैं कि अब वो अपने राज्य से बाहर कहीं नहीं जाएंगे. विजय के भाई रॉबिन कहते हैं कि हम लोग पढ़े लिखे हैं. झारखंड में ही कोई जॉब खोज लेंगे. अगर बाहर जाने की नौबत आई तो कम खतरे वाली नौकरी में किस्मत आजमाएंगे.तीन बच्चों के पिता ओरांव कहते हैं कि घर वाले उनका इंतजार कर रहे हैं. वो अच्छे हैं, भगवान पर भरोसा था और वहीं से शक्ति मिल रही थी. हमें यकीन था कि सुरंग में कुल 41 लोग फंसे हुए हैं कोई ना कोई बचाने के लिए जरूर आएगा. ओरांव से जब यह पूछा गया कि क्या वो दोबारा काम पर वापस लौटेंगे तो उनका जवाब था कि देखिए 18 हजार रुपए कमाता हूं, यह तो समय ही बताएगी कि वो वापस लौटेंगे या नहीं. हमारे राज्य यानी झारखंड से कुल 15 मजदूर फंसे हुए थे. 

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