शिवसेना ने मांग की थी कि उन्हें एनसीपी और कांग्रेस से समर्थन का लेटर लेने के लिए तीन दिन का समय दिया जाए.
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नई दिल्ली: शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल के उस फ़ैसले को चुनौती दी गई है जिसमें राज्यपाल ने शिवसेना की मांग को ठुकरा दिया था. शिवसेना ने मांग की थी कि उन्हें एनसीपी और कांग्रेस से समर्थन का लेटर लेने के लिए तीन दिन का समय दिया जाए. याचिका में आरोप लगाया कि गवर्नर बीजेपी के इशारों पर काम कर रहे हैं. उन्हें सरकार बनाने के लिए ज़रूरी वक़्त नहीं दिया. गवर्नर ने जहां बीजेपी को समर्थन जुटाने के लिए 48 घंटे का वक़्त दिया. वहीं शिव सेना को NCP, कांग्रेस का समर्थन जुटाने के लिए महज 24 घंटे मिले. शिव सेना ने कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने चीफ़ जस्टिस से पूछा है कि याचिका को सुनवाई के लिए कब लिस्ट करना है. सूत्रों के मुताबिक इससे पहले शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के नेताओं कपिल सिब्बल और अहमद पटेल से इस बारे में संपर्क भी किया.
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शिवसेना के एमएलसी अनिल दत्तात्रेय ने पार्टी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. शिवसेना ने याचिका में केंद्र, कांग्रेस और एनसीपी और महाराष्ट्र सरकार को प्रतिवादी बनाया है. याचिका में कहा गया कि गवर्नर उस वक्त तक ये तय नहीं कर सकते कि किसके पास बहुमत है जब तक सरकार बनाने का दावा करने वाली पार्टी को सदन में ऐसा करने का मौका नहीं दिया जाता.
महाराष्ट्र में लगा राष्ट्रपति शासन
महाराष्ट्र में पल-पल बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र के पास राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश भेज दी है. राज्यपाल ने राष्ट्रपति से संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफ़ारिश की. मौजूदा राजनीतिक संकट के मद्देनज़र मौजूदा सरकार आगे नहीं चल पाने की रिपोर्ट भेजी. बता दें कि कुछ देर पहले ही खबर आई थी कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन को लेकर केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक हुई जिसमें मोदी कैबिनेट ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की गवर्नर की सिफारिश को राष्ट्रपति के पास भेज दिया है. गौरतलब है कि नौ नवंबर को पिछले विधानसभा की मियाद खत्म हुई थी. इससे पहले राज्यपाल ने बीजेपी, शिवसेना के बाद एनसीपी को आज शाम साढ़े आठ बजे तक समर्थन जुटाने का वक्त दिया था. लेकिन सूत्रों के मुताबिक संभवतया राज्यपाल को ऐसा लगा कि कोई भी दल या गठबंधन स्थिर सरकार बनाने के पक्ष में नहीं है, लिहाजा राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है.