2024 चुनाव से पहले Sharad Pawar का मास्टरस्ट्रोक! ये है उनके इस्तीफे की INSIDE STORY
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2024 चुनाव से पहले Sharad Pawar का मास्टरस्ट्रोक! ये है उनके इस्तीफे की INSIDE STORY

Sharad Pawar ने जब अपने इस्तीफ़े का ऐलान किया तो वाईबी चव्हाण हॉल में मौजूद हर शख़्स ने उनसे इस्तीफ़ा वापस लेने की अपील की. किसी ने रोकर उन्हें रोका, तो किसी ने पार्टी के भविष्य का तर्क दिया, लेकिन वहां एक शख़्स ऐसा भी था, जो शरद पवार से इस्तीफ़े के फैसले से संतुष्ट था और वो थे शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार.

2024 चुनाव से पहले Sharad Pawar का मास्टरस्ट्रोक! ये है उनके इस्तीफे की INSIDE STORY

Sharad Pawar Resigns: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले शरद पवार अपने दिल की बात अक्सर इशारों की जुबान में ही किया करते हैं और उनके फैसलों की झलक भी उनके इन्हीं संकेतों में छिपी होती है. ऐसा ही एक संकेत कुछ दिनों पहले उन्होंने दिया था. महाराष्ट्र के चेंबूर में NCP के युवा कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होने कहा था कि जलने से पहले रोटी को पलट देना चाहिए. मैं पार्टी के नेताओं से भी यही कह रहा हूं कि रोटी पलटने का वक्त आ गया है. 

उनके इस बयान पर महाराष्ट्र की पहले से ही सुलग रही सियासत और उबलने लगी. महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के सियासी पंडित उनके इस बयान के मायने निकालने लगे और पार्टी अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफ़े का ऐलान कर पवार ने सियासी रोटी पलट दी. अब उनके ही इशारे को आधार बनाएं तो कुछ अहम सवाल पैदा होते हैं. पहला तो ये कि क्या अपनी ही पार्टी एनसीपी में अपने भतीजे के तेवर को देखते हुए, शरद पवार को अपनी सियासी रोटी जलने का खतरा पैदा हो गया था और दूसरा ये कि जिस पार्टी में शरद पवार ही सब कुछ हैं और जहां उनकी बात ही ब्रह्मवाक्य है, वहां आखिर ये स्थिति पैदा ही क्यों हुई.

शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष के पद से अपने इस्तीफ़े का ऐलान एक पत्र के जरिए भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि मेरे साथियों! मैं NCP अध्यक्ष का पद छोड़ रहा हूं, लेकिन सामाजिक जीवन से रिटायर नहीं हो रहा हूं. लगातार यात्रा मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा बन चुकी है, मैं पब्लिक मीटिंग और कार्यक्रमों में शामिल होता रहूंगा. मैं पुणे, बारामती, मुंबई, दिल्ली या भारत के किसी भी हिस्से में रहूं, आप लोगों के लिए पहले की तरह मौजूद रहूंगा. लोगों की समस्याएं सुलझाने के लिए मैं हर वक्त काम करता रहूंगा. लोगों का प्यार और भरोसा मेरी सांसें हैं. जनता से मेरा कोई अलगाव नहीं हो रहा है. मैं आपके साथ था और आपके साथ आखिरी सांस तक रहूंगा. हम लोग मिलते रहेंगे. धन्यवाद.

यही नहीं 82 वर्ष के शरद पवार ने ये भी ऐलान किया कि वो अब कोई चुनाव भी नहीं लड़ेंगे.शरद पवार के इस ऐलान के बाद हॉल में एक पल तो सन्नाटा छा गया. शायद वहां बैठे पार्टी के सीनियर नेताओं को उनके इस फैसले का अंदेशा रहा हो लेकिन पवार के इस फैसले से हर कोई हैरान रह गया. पार्टी के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल की आंखें भर आईं. प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल समेत कई सीनियर नेता भी उनसे इस्तीफ़ा वापस लेने की अपील करने लगे.

पार्टी के कार्यकर्ता भी इस फैसले के लिए तैयार नहीं थे, हॉल के अंदर से लेकर बाहर तक कार्यकर्ता धरने पर बैठ गए. शरद पवार से इस्तीफ़ा वापस लेने की गुहार लगाने लगे.हालात ऐसे हो गए कि पार्टी के सीनियर नेताओं को उन्हे समझाने के लिए मोर्चा संभालना पड़ा.

शरद पवार ने जब अपने इस्तीफ़े का ऐलान किया तो वाईबी चव्हाण हॉल में मौजूद हर शख़्स ने उनसे इस्तीफ़ा वापस लेने की अपील की. किसी ने रोकर उन्हें रोका, तो किसी ने पार्टी के भविष्य का तर्क दिया, लेकिन वहां एक शख़्स ऐसा भी था, जो शरद पवार से इस्तीफ़े के फैसले से संतुष्ट था और वो थे शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार. एक तरफ़ जब पार्टी के दूसरे नेता शरद पवार से इस्तीफ़ा वापस लेने की गुहार लगा रहे थे, तब अजित पवार ने कहा कि शरद पवार पर इस्तीफ़ा वापस लेने का दबाव नहीं डालना चाहिए और अब नए नेतृत्व को मौक़ा मिलना चाहिए. उन्होंने क्या कहा पहले आपको ये सुनाते हैं.

शरद पवार ने ही महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी की बुनियाद रखी थी और उन्होंने बीजेपी के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधारा वाली शिवसेना और कांग्रेस को न सिर्फ़ एकजुट किया था, बल्कि महाराष्ट्र की सरकार भी चलाई थी. ऐसे में उनके इस फैसले पर सिर्फ़ NCP ही नहीं महाविकास आघाडी में भी सियासी खलबली मच गई.

इस इस्तीफ़े के साथ ही ये तय हो गया कि शरद पवार अपने 60 वर्षों के राजनीतिक करियर को विराम देने जा रहे हैं. शरद पवार देश की सक्रिय राजनीति का सबसे उम्रदराज़ चेहरा हैं और सियासी अनुभव के मामले में फिलहाल कोई भी नेता उनके आसपास भी नहीं है. इसीलिए उन्हें महाराष्ट्र की सियासत का भीष्म पितामह और चाणक्य भी कहा जाता रहा है और इसीलिए उनके इस इस्तीफ़े को सिर्फ़ इस्तीफ़े की तरह नहीं देखा जा सकता क्योंकि सियासी जानकारों के एक वर्ग ये भी मानता है कि शरद पवार का ये इस्तीफ़ा उनके शक्ति प्रदर्शन का एक तरीक़ा है और वो इसी बहाने पार्टी के भीतर से लेकर परिवार के भीतर तक, एक साथ कई निशाने साध लेना चाहते हैं.

और ये निशाने क्या हो सकते हैं ये भी समझिए...

- कहा जा रहा है कि अजित पवार और उनके गुट के कुछ नेता, शरद पवार पर बीजेपी का साथ देने का दबाव बना रहे थे ताकि अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिंदे सरकार को कोई ख़तरा हो, तो वो उनका साथ दे सकें. यही नहीं कुछ दिन पहले अजित पवार के 10 से 15 विधायकों के साथ बीजेपी में जाने की अटकलें भी सामने आई थीं और अजित पवार ने अपने ट्विटर बायो से भी NCP का चुनाव चिह्न हटा लिया था.

अजित पवार वर्ष 2019 में भी बीजेपी के साथ जाकर राजभवन में शपथ ग्रहण कर चुके थे. ऐसे में माना जा रहा है कि शरद पवार ने इस्तीफ़े का दांव अजित पवार को चित करने के लिए ही चला है ताकि अजित पवार की स्थिति पार्टी के भीतर कमज़ोर हो, और अगर वो पार्टी से बग़ावत करें भी तो NCP को ज़्यादा नुक़सान न हो.

-शरद पवार की उम्र 82 वर्ष की है, वो कैंसर सर्वाइवर हैं पिछले वर्ष कोरोना से संक्रमित भी हो गए थे. ऐसे में हो सकता है कि अपने स्वास्थ्य को देखते हुए वो अपने सामने पार्टी की लीडरशिप ट्रांसफर करना चाहते हों ताकि उनके इस फैसले का विरोध भी न हो और पार्टी को नया उत्तराधिकारी भी मिल जाए.

-पवार परिवार में पार्टी पर वर्चस्व को लेकर भी घमासान है. एक तरफ़ जहां शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले उनकी उत्तराधिकारी मानी जाती रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ़ उनके भतीजे अजित पवार भी पार्टी पर अपनी दावेदारी पेश करते रहे हैं. एक इंटरव्यू में अजित पवार ने खुलकर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की थी. उन्होंने कहा था NCP 2024 के महाराष्ट्र चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री पद के लिए दावा कर सकती है और मैं 100% मुख्यमंत्री बनना चाहूंगा यानी उनकी महात्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं हैं. ऐसे में हो सकता है कि शरद पवार अपने इस इमोशन कार्ड के ज़रिए इस विवाद को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हों.

-पिछले कुछ वक्त से अजित पवार NCP की कई अहम बैठकों से ग़ैर हाज़िर रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि शरद पवार की फैमिली में शायद सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. ऐसे में ये भी हो सकता है कि शरद पवार ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर एक इमोशनल कार्ड चला हो ताकि लोकसभा चुनावों से पहले वो पार्टी को एकजुट रख सकें.

वैसे सियासत में ये कोई नई बात नहीं है. इससे पहले शिवसेना अध्यक्ष बालासाहेब ठाकरे भी दो बार ऐसा कर चुके हैं और हर बार इस्तीफ़ा पेश करने के बाद वो पार्टी के अंदर पहले से ज़्यादा मज़बूत हो कर सामने आए.

- वर्ष 1978 के विधानसभा चुनावों और मुंबई नगर निगम चुनावों में शिवसेना का प्रदर्शन खास नहीं रहा, जिसके बाद बालासाहेब ठाकरे ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया लेकिन शिवसैनिकों ने इसके खिलाफ़ प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसके बाद बालठाकरे ने इस्तीफ़ा वापस ले लिया.

- इसी तरह वर्ष 1992 में बालासाहेब ठाकरे के पुराने साथी माधव देशपांडे ने आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पार्टी में ज़रूरत से ज़्यादा दखलंदाज़ी कर रहे हैं. पार्टी के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ था, जब पार्टी के अंदर किसी ने बालासाहेब ठाकरे पर सवाल उठाए थे, ऐसे में उन्होने पार्टी के मुखपत्र सामना में एक लेख लिख कर परिवार समेत शिवसेना छोड़ने का ऐलान कर दिया. ये पता चलते ही, शिवसैनिक सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन शुरू कर दिया, और उन्होंने बालासाहेब से इस्तीफ़ा वापस न लेने पर मातोश्री के सामने आत्मदाह की धमकियां देनी शुरू कर दीं. बाल ठाकरे के इस्तीफ़े की इस पेशकश के बाद पार्टी में उनके विरोध के स्वर थम गए और शिवसेना महाराष्ट्र की राजनीति में और ज्यादा मज़बूत पार्टी बन कर सामने आई.

ऐसे में हो सकता है कि अब शरद पवार ने भी बालासाहेब ठाकरे की इसी रणनीति को दोहराया हो क्योंकि उनके इस्तीफ़े के ऐलान के बाद NCP कार्यकर्ताओं ने भी आंदोलन शुरू कर दिया है. इन कार्यकर्ताओं की मांग है कि शरद पवार अपने फैसले पर फिर से विचार करें और अगर पवार इस्तीफ़ा वापस लेते हैं, तो वो न सिर्फ़ बग़ावत साधने में कामयाब होंगे बल्कि महाविकास अघाड़ी में भी उनकी स्थिति और मज़बूत होगी और इसीलिए शरद पवार के इस इस्तीफ़े को उनके शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है.

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