DNA Analysis: भगत सिंह के अपमान पर सन्नाटा क्यों? क्या पंजाब में अलगाववाद भड़काने वाले भिंडरावाले को माना जा सकता है आदर्श
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DNA Analysis: भगत सिंह के अपमान पर सन्नाटा क्यों? क्या पंजाब में अलगाववाद भड़काने वाले भिंडरावाले को माना जा सकता है आदर्श

Jarnail Singh Bhindranwale and Shaheed Bhagat Singh: पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट से चुनाव जीते सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने एक बार फिर विवादित बयान दिया है. मान ने भगत सिंह को आतंकवादी और आतंकी भिंडरावाले को संत बताया है. 

DNA Analysis: भगत सिंह के अपमान पर सन्नाटा क्यों? क्या पंजाब में अलगाववाद भड़काने वाले भिंडरावाले को माना जा सकता है आदर्श

Comparison between Jarnail Singh Bhindranwale and Shaheed Bhagat Singh: क्या आप शहीद-ए-आज़म भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) को अपना आदर्श मानते हैं या आप पंजाब में अलगाववाद की आग को भड़काने वाले जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwale) को अपना आदर्श मानते हैं? हमें पूरा भरोसा है कि आप भगत सिंह को अपना आदर्श मानते होंगे. दुख की बात ये है कि हमारे देश में आज भी ऐसे लोग हैं, जो भगत सिंह को नहीं बल्कि जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपना नायक मानते हैं. ये वो लोग हैं, जो भगत सिंह के प्रशंसक नहीं बल्कि भिंडरावाले के भक्त हैं. यानी हमारे देश में मुट्ठीभर लोग ऐसे हैं, जिनके दिल और दिमाग में अलगाववाद का एक विशाल पेड़ अपनी जगह बना चुका है. ये लोग इसी पेड़ की छांव में रह कर भारत के टुकड़े टुकड़े करने का सपना देखते हैं. 

सिमरनजीत सिंह मान के लिए भिंडरावाले नायक

पंजाब के संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) ने भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) को आतंकवादी और जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) को अपना नायक बताया हैं. ये भारत में ही हो सकता है, जहां एक क्रान्तिकारी को आतंकवादी बताया जाता है लेकिन एक आतंकवादी को क्रान्तिकारी बताकर उसका महिमामंडन किया जाता है. उससे भी बड़ा मजाक ये है किशहीद भगत सिंह का ये अपमान कोई और नहीं बल्कि एक सांसद करता है.

सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) पंजाब के संगरूर से शिरोमणि अकाली दल अमतृसर के सांसद हैं. ये वही पार्टी है, जिसकी स्थापना साल 1994 में हुए Amritsar Declaration के तहत हुई थी. इस Declaration का मुख्य उद्देश्य था, लोकतांत्रिक दायरे में रह कर सिखों के लिए अलग क्षेत्र की मांग करना. सिमरनजीत सिंह मान लगातार पंजाब को खालिस्तान बनाने की मांग करते रहे हैं. उन्होंने शुक्रवार को शहीद-ए-आजम भगत सिंह का भी अपमान किया है.

संगरूर से लोकसभा उपचुनाव जीते हैं सिमरनजीत सिंह मान

सोचिए देश की आज़ादी के लिए सिर्फ 23 साल की उम्र में शहादत को गले लगाने वाले वाले भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) आज जिन्दा होते तो उन्हें ये बातें सुन कर कितना दुख होता? हाल ही में जब सिमरनजीत सिंह मान संगरूर लोक सभा के उपचुनाव में विजयी हुई थे, तब भी उन्होंने अपनी इस जीत को जनरैल सिंह भिंडरावाले को समर्पित किया था. इसके अलावा उन्होंने 12 फरवरी 2021 को पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में खालिस्तानी आतंकी भिंडरावाले के जन्मदिन के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था. इस कार्यक्रम में 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर एक खास धर्म का झंडा फहराने वाले आरोपियों के परिवावालों को मंच पर बुला कर सम्मानित किया था. 

सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) का ट्विटर हैंडल खालिस्तान के नारों से भरा पड़ा है. इसके अलावा वो लगातार भगत सिंह का अपमान करते रहे हैं. उन्होंने हिन्दू धर्म के खिलाफ़ कई आपत्तिजनक बातें लिखी हैं. जैसे, 6 जून 2018 को जब भिंडरवाले (Jarnail Singh Bhindranwale) की मौत के 34 वर्ष पूरे हुए थे, तब सिमरनजीत सिंह मान ने भिंडरवाले की तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट करके लिखा था कि भिंडरवाले एक महान लड़ाका था, जो हिन्दू आतंक के खिलाफ खड़ा हुआ.

देशद्रोह के आरोप में अब तक 30 बार गिरफ्तार

सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) को अब तक 30 से ज्यादा बार गिरफ्तार और हिरासत में लिया जा चुका है. जिन मामलों में उन पर कार्रवाई हुई, उनमें से अधिकतर देशद्रोह से जुड़े थे. संक्षेप में कहें तो सिमरनजीत सिंह मान के लिए भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) तो उनका आदर्श है लेकिन वो भगत सिंह से बहुत नफरत करते हैं. इसलिए आपको ये भी समझना चाहिए कि खालिस्तान की मांग करने वाले ये लोग भगत सिंह को अपना दुश्मन क्यों मानते हैं?. इसे आप चार Points में समझ सकते हैं.

पहला Point, भगत सिंह ने अपनी धार्मिक पहचान की जगह भारतीय पहचान को सबसे ऊपर रखते हुए स्वतंत्र भारत के लिए 23 वर्ष की उम्र में शहादत दी थी. जबकि भिंडरावाले इसी धर्मनिरपेक्ष भारत को तोड़ कर सिखों के लिए अलग देश बनाना चाहता था.

दूसरा Point, भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) ने मार्च 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. 1928 में उन्होंने Hindustan Republican Association का नाम बदल कर Hindustan Socialist Republican Association कर दिया था. इन संगठनों के नाम से ही आप ये समझ सकते हैं कि भगत सिंह के विचारों में सिर्फ भारत के लिए ही जगह थी, खालिस्तान के लिए नहीं.

तीसरा Point, भगत सिंह ऐसे भारत का सपना देखते थे, जहां हम अपनी धार्मिक पहचान के बजाय अपनी भारतीय पहचान को महत्व दें.  चौथा Point ये कि भगत सिंह किसानों और मज़दूरों के हक की बात करते थे. वो सिखों के अधिकारों की बात नहीं करते थे.वो धर्म की बात नहीं करते थे. ये वो बातें हैं, जिनकी वजह से खालिस्तान की मांग करने वाले ये लोग भगत सिंह को पसन्द नहीं करते.

शहीद भगत सिंह के बारे में जानिए

शहीदे आज़म भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) ने एक बार कहा था कि राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है. मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है. भगत सिंह के जीवन का सिर्फ़ एक ही मकसद था, भारत की आज़ादी. इस मकसद को हासिल करने के लिए वो सर्वोच्च बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे. जबकि जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान के सबसे बड़े Posterboy थे. वो अलगावाद के रास्ते पंजाब को भारत से तोड़कर खालिस्तान बनाना चाहते थे. ये दुर्भाग्य है कि आज हमारे ही देश के कुछ लोग भिंडरावाले को क्रान्तिकारी बताते हैं और क्रान्तिकारी भगत सिंह को आतंकवादी बताते हैं.

लोकतंत्र में अलगाववाद की कोई जगह नहीं हो सकती और इसे आज हम एक छोटी सी कहानी के माध्यम से आपको समझाना चाहते हैं. ये कहानी एक राजा और दो हिस्सों में बंटी उसकी प्रजा की है. राजा के महल में एक खूबसूरत बगीचा था.

उसने अपनी प्रजा के स्वभाव को समझने के लिए लोगों से कहा कि वो उसके बगीचे में दो पौधे या पेड़ लगाएं. एक गुट ने नागफनी यानी Cactus का पौधा लगाया जबकि दूसरे गुट ने बांस का वृक्ष लगाने के लिए बीज अंकुरित किए. Cactus के पौधे में कुछ ही दिनों में पत्तियां निकल आईं. एक साल में उसने बड़ा रूप ले लिया. लेकिन दूसरी तरफ़ बांस का पेड़ था, जिसमें समय के साथ कोई परिवर्तन नहीं हुआ.

अलगाववाद की जड़े होती हैं कमजोर

तीन वर्षों के बाद राजा ने देखा कि Cactus का पौधा तो और बड़ा हो चुका है जबकि बांस के पेड़ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. हालांकि कुछ और समय बीता और बांस के पेड़ में अंकूर फूटे और देखते ही देखते बांस का पेड़ काफ़ी ऊंचा हो गया . ये देख कर तब राजा को ये बात समझ आई कि उसकी प्रजा दो हिस्सों में बंटी हुई है. पहली नागफनी पौधा लगाने वाली है, जिसके मन में अलगाववाद की भावना है, जो अलग हो जाना चाहती है क्योंकि नागफनी का पौधा तेजी से बड़ा होता है लेकिन उसकी जड़ें बहुत कमज़ोर होती हैं और तेज हवा से ये जड़ें उखड़ने लगती हैं.

जबकि बांस के पेड़ की जड़ें इतनी मज़बूत होती हैं कि बड़े से बड़ा तूफान भी उसे नहीं हिला सकता. लोकतंत्र बांस के पेड़ की तरह ही होता है. ये अपनी जड़ें जमाने में समय लेता है और भारत के लोकतंत्र ने अपनी जड़ों को स्थापित करने के लिए कई वर्षों का समय लिया है, जिसे अलगाववाद का विचार कभी झुका नहीं सकता.

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