I.N.D.I.A: इन 5 सवालों का जवाब तलाश लें तो अब भी संभव है विपक्षी गठबंधन, कौन दिखाएगा बड़ा दिल?
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I.N.D.I.A: इन 5 सवालों का जवाब तलाश लें तो अब भी संभव है विपक्षी गठबंधन, कौन दिखाएगा बड़ा दिल?

INDIA alliance: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान की ओर से राज्य में सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में हड़कंप मच गया है. आइए, जानते हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले किन पांच सवालों का जवाब तलाशने से गठबंधन अब भी बरकरार रह सकता है?

I.N.D.I.A: इन 5 सवालों का जवाब तलाश लें तो अब भी संभव है विपक्षी गठबंधन, कौन दिखाएगा बड़ा दिल?

Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में केंद्र से भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को बाहर करने के लिए बने विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) में भगदड़ मच गई है. सीट शेयरिंग को लेकर बुधवार (24 जनवरी) को पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन को झटका दिया. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी.

पूरब में ममता बनर्जी और पश्चिम में भगवंत मान ने इंडिया गठबंधन से पल्ला झाड़ा 

पूरब में ममता बनर्जी के 'एकला चलो रे' राग के बाद पश्चिम में आम आदमी पार्टी के नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कह दिया कि वहां कांग्रेस के साथ 13-0 का गठबंधन हो सकता है. इसका मतलब उनकी पार्टी पंजाब की सभी सीटों पर अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी. इसके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के सुर लंबे समय से बदले हुए नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की ओर से भी संकेत बेहतर नहीं हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 में गिनती के दिन बाकी, गठबंधन कैसे बरकरार रह सकेगा

लोकसभा चुनाव 2024 में महज गिनती के दिन बाकी हैं. चुनाव आयोग उसके लिए अगले महीने अधिसूचना भी जारी कर सकता है. ऐसे में लोकसभा चुनाव होने से पहले ही विपक्षी गठबंधन का बंटाधार होने के सियासी कयास लगाए जाने लगे हैं. इसके बावजूद इंडिया गठबंधन के बड़े दल चाहें तो उम्मीद अब भी बाकी है. आइए, जानते हैं कि ऐसे कौन से पांच सवाल हैं, जिन्हें हल करने से गठबंधन के बरकरार रहने और एनडीए से कड़ा मुकाबला करने की गुंजाइश है. 

1. सहयोगी दलों और उनके नेताओं की नाराजगी दूर हो

मोदी सरकार के खिलाफ बने विपक्षी दलों की पहली बैठक 23 जून 2023 को बिहार की राजधानी पटना में हुई. उसमें सबने माना था कि विपक्षी दलों के बीच जो भी मतभेद हैं वह सब भुलाकर और मिलकर लोकसभा चुनाव 2024 में केंद्र से भाजपा और एनडीए को बाहर करेंगे. उसके बाद से हर बैठक में कोई न कोई नेता नाराज रहा है. पहले अरविंद केजरीवाल, फिर नीतीश कुमार और बाद में ममता बनर्जी. इसलिए इंडिया गठबंधन को बनाए रखने के लिए सबसे पहले सहयोगी दलों और उनके नेताओं की नाराजगी को दूर कर लिया जाए. इससे सामूहिक नेतृत्व, सीट शेयरिंग, वैचारिक एकता, कार्यकर्ताओं को संदेश और साझा चुनावी रणनीति बनाने में समय रहते बड़ी मदद मिल सकती है.

2. पीएम मोदी के सामने पेश करें विपक्षी गठबंधन का चेहरा 

लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए उतर रही भाजपा और एनडीए के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केंद्र में दो कार्यकाल का मजबूत और ओके-टेस्टेड पीएम फेस मौजूद है. विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को पीएम मोदी के सामने साझा तौर पर एक चेहरा पेश करना होगा. इससे सत्ता विरोधी वोटरों का भरोसा बढ़ेगा. उदाहरण के लिए अगर समाजवादी नेता नीतीश कुमार को पीएम मोदी के खिलाफ पेश किया गया तो कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने से भाजपा के पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के बड़े वोट बैंक में सेंध लग सकती है. 

भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं होना, परिवारवाद से दूर रहना, सेक्यूलर छवि और राजनीतिक-प्रशासनिक अनुभव से लैस नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन के निर्माण में भी शुरुआती और बड़ी भूमिका निभाई. हालांकि,  विपक्षी गठबंधन के नामकरण के समय से ही वह नाराज हैं और उनके एनडीए में वापसी के कयास भी लगाए जा रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो इंडिया गठबंधन के लिए और नुकसान ही होगा.

3. सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग को जल्दी तय कर लेना

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, अगर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन टूट जाता है तो इसके सभी सहयोगी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसे गठबंधन के अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेने जैसी हरकत माना जाएगा. बड़े-बड़े दावे कर एक मंच पर आए विपक्षी दलों का गठबंधन एक साल से भी कम समय में टूट जाने से उनके कार्यकर्ताओं और वोटर्स का भी भरोसा कम होगा. इसलिए सबसे पहले जितनी जल्दी हो सके इंडिया गठबंधन को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीट शेयरिंग कर लेना चाहिए. क्योंकि इनका कहना था कि दिसंबर, 2023 के अंतिम सप्ताह या जनवरी, 2024 की शुरुआत में इसे पूरा कर लिया जाएगा. 

कांग्रेस समेत सभी दलों ने इसके लिए समन्वय समिति बनाया था और सबने सीटों को लेकर लचीला रूख अपनाने की बात कही थी. कांग्रेस ने ऐतिहासिक तौर पर अब तक के सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे. वहीं, अब सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस की बात बनती नहीं दिख रही. जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कांग्रेस जैसे बड़े दल से बड़ा दिल दिखाने की अपील की है. ऐसा नहीं होने पर गठबंधन के संकट में फंसने की बात भी कही जा रही है. 

4. सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी होने के चलते कांग्रेस की भूमिका

कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत के बाद इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका हिंदी पट्टी के प्रमुख तीन राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में करारी हार के बाद बदल चुकी है. कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हैं. ऐसे में इंडिया गठबंधन के कई सहयोगी दल जो एक से ज्यादा राज्यों में चुनाव लड़ना चाहते हैं उनकी मदद करनी चाहिए.

सपा, जदयू, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, टीएमसी, लेफ्ट जैसे दल पहले भी अलग-अलग राज्यों में उम्मीदवार उतारते रहे हैं. टीएमसी त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में सक्रिय रही है. वहीं पूर्वोत्तर के कई राज्यों में जदयू के भी विधायक रहे हैं. महाराष्ट्र के अलावा झारखंड, पूर्वोत्तर और दक्षिण के राज्यों में भी एनसीपी का जनाधार रहा है. आम आदमी पार्टी भी दिल्ली, पंजाब के अलावा हरियाणा और गोवा में पूरे दम से लड़ती है. इसको लेकर इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को पैन इंडिया में अपने जनाधार को देखते हुए सहयोगी दलों के साथ अपनी भूमिका जल्दी तय करनी होगी.

5. भाजपा और एनडीए के हमले का सामना करने के लिए साझा चुनावी रणनीति

इंडिया गठबंधन को आपस में एक-दूसरे दलों और उनके नेताओं पर जुबानी हमला या तल्ख बयानबाजी से बाज आकर भाजपा और एनडीए के सियासी हमले से बचने के लिए साझा चुनावी रणनीति बनानी होगी. सनातन-हिंदुत्व या उत्तर-दक्षिण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अपनी डफली अपना राग से ऊपर उठकर जल्दी से जल्दी इस साझा चुनावी रणनीति को जमीन पर उतारना होगा. एक सीट पर पूरे इंडिया गठबंधन की ओर से एक उम्मीदवार बनाने के लिए भी यही रणनीति काम आएगी. 

देश में 40 से ज्यादा लोकसभा सीटों वाले चारों राज्यों के लिए खासकर इसे अपनाना होगा. इसमें एक राज्य पश्चिम बंगाल में फिर से ममता बनर्जी को मनाने की कवायद करनी होगी. वहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अखिलेश यादव के साथ ही मायावती को भी जोड़ने की कोशिश करनी होगी. क्योंकि मायावती के अकेले लड़ने पर विपक्षी गठबंधन का नुकसान तय माना जा रहा है. यूपी और बिहार की तरह महाराष्ट्र और केरल में भी गठबंधन को सावधानी से रणनीति बनानी होगी. क्योंकि वहां कांग्रेस कमजोर है और क्षेत्रीय दल आपस में बंटे हुए हैं.

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