Khufiya Review: तब्बू और वामिका गब्बी के परफॉरमेंस ने बचाया फिल्म को, देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू
Advertisement

Khufiya Review: तब्बू और वामिका गब्बी के परफॉरमेंस ने बचाया फिल्म को, देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू

Khufiya Film Review: तब्बू एक बार फिर बढ़िया किरदार में हैं और उन्होंने इसमें जी-जान लगाई है. वामिका गब्बी भी तेजी से अपनी पहचान बना रही हैं. इस फिल्म के लिए दर्शक उन्हें याद रखेंगे. जासूसी फिल्मों के शौकीन कुछ कमियों के बावजूद विशाल भारद्वाज की यह फिल्म देख सकते हैं...

 

Khufiya Review: तब्बू और वामिका गब्बी के परफॉरमेंस ने बचाया फिल्म को, देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू

Khufiya Movie Review: अगर आप जासूसी फिल्मों के शौकीन हैं, तो विशाल भारद्वाज की फिल्म खुफिया को आजमा सकते हैं. यह जरूर है कि इसकी धीमी रफ्तार के साथ आपको कदमताल करना होगा. कहीं यह भी लगेगा कि कुछ जरूरी सवालों के जवाब नहीं मिले. लेकिन बावजूद इसके राहत की बात इतनी है कि विशाल भारद्वाज सात खून माफ, मटरू की बिजली का मंडोला, रंगून और पटाखा जैसी अपनी कुछ बेहद निराशाजनक फिल्मों से आगे नजर आते हैं. हालांकि वह मकबूल और ओमकारा से कहीं पीछे ही हैं. अक्सर शेक्सपीयर के नाटकों के हिंदीकरण से लेकर अंग्रेजी-हिंदी के लेखकों की कहानियों को पर्दे पर उतारने वाले विशाल ने इस बार अंग्रेजी उपन्यास एस्केप टू नोव्हेयर (अमर भूषण) को खुफिया के रूप में ढाला है.

सवालों के जवाब
हाल के वर्षों में रॉ और उसके एजेंटों से प्रेरित कई सच्ची तथा काल्पनिक कहानियां बॉलीवुड ने बनाई हैं. खुफिया भी उन्हीं में एक है. लेकिन कुछ मायनों में यह उनसे अलग है. यहां बागडोर तब्बू जैसी अभिनेत्री के हाथों में हैं. यहां निशाने पर सीधे पाकिस्तान या अफगान आतंकी नहीं हैं, बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी द्वारा भारतीय एजेंटों का अपने हक में चालाकी से किया जाने वाला इस्तेमाल है. यहां कहानी का घेरा बड़ा और बुनावट थोड़ी जटिल है. इसे आपको समझना पड़ेगा. मगर इन बातों के बीच विशाल भारद्वाज एक बड़े सवाल का जवाब नहीं देते हैं. वह नहीं बताते कि एक आर्मी अफसर की पत्नी अपने बेटे को देश से गद्दारी क्यों सिखाती है! उसे डबल एजेंट क्यों बनाती है!

रहती कुछ कमी
निश्चित ही खुफिया एक साफ-सुथरी जासूसी-थ्रिलर हो सकती थी, मगर वामिका गब्बी के बहाने विशाल भारद्वाज ने कुछ ऐसे एडल्ट सीन फिल्म में डाल दिए हैं, जो ओटीटी की मजबूरी जैसे नजर आते हैं. यह विशाल जैसे नामी निर्देशकों की जिम्मेदारी है कि वे साफ-सुथरा कंटेंट ओटीटी पर चलाकर दिखाएं कि यहां दर्शक सिर्फ गाली-गलौच, अंग प्रदर्शन और समलैंगिकता ही नहीं देखते. विशाल भारद्वाज सीनियर इंटेलिजेंस ऑफिसर कृष्णा मेहरा उर्फ केएम (तब्बू) के परिवार को रूटीन स्पाई-कहानियों जैसा बिखरा हुआ तो दिखाते हैं. मगर केएम को समलैंगिक रिलेशनशिप में भी पेश करते हैं. खुफिया में दो जगहों पर वामिका को देखकर और केएम बनीं तब्बू के समलैंगिक रुझान से आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या इन दृश्यों तथा बातों के बिना फिल्म में कुछ कमी रह रही थीॽ

कहानी की शुरुआत
खुफिया की कहानी का मुख्य किरदार भले ही तब्बू नजर आएं, लेकिन ऐसा नहीं है. खुफिया में कहानी ही किरदार है. जिसमें कारगिल युद्ध के बाद भारत और उसके पड़ोसी देश एक-दूसरे के यहां खुफियागीरी करा रहे हैं. बांग्लादेश भी इसमें अपने हित देख रहा है और अमेरिका भी. कृष्णा मेहरा उर्फ केएम के द्वारा बांग्लादेश में एक मिशन पर भेजी गई एजेंट की हत्या हो जाती है और पता चलता है कि भारत में किसी ने उसके बारे में खबर लीक की थी. तब केएम और उसकी टीम को अपने साथी रवि मोहन (अली फजल) पर नजर रखने को कहा जाता है क्योंकि शक है कि वही खुफिया जानकारियां लीक कर रहा है. यहां से कहानी असली ट्रेक पर चलती है.

रफ्तार से ढलान
रवि मोहन को बेहद आसानी से तमाम खुफिया फाइलों की स्कैनिंग करते, फोटो कॉपी निकाल कर दुश्मनों तक पहुंचाते दिखाया गया है. संभवतः यह सब इतना आसान नहीं होता! यही नहीं, सबूत जुटाने के चक्कर में केएम और अन्य सीनियर रवि मोहन को ढेर सारे कागजात लीक करने के मौके देते हैं. क्या एजेंसियां इतने धीरे-धीरे काम करती हैंॽ यही एजेंट पोल खुलने के बाद निकल भी जाता है और एजेंसी हाथ मिलती रह जाती है. यह अलग बात है कि उसे पकड़ने के लिए बाद में अलग तरह का जाल बिछाया जाता है. हकीकत यह है कि विशाल की फिल्म उम्मीद जगाते हुए जिस रफ्तार से शुरू होती है, वह दूसरे हिस्से में ढलान पर आ जाती है. क्लाइमेक्स में भी बातें अस्पष्ट रह जाती हैं.

ओटीटी पर फिल्म
विशाल भारद्वाज फिल्म के कुछ हिस्सों पर अच्छी पकड़ बनाए रहते हैं, लेकिन कई जगहों पर चूक भी जाते हैं. इसका असर फिल्म पर पड़ा है. फिल्म को तब्बू और वामिका गब्बी का बड़ा सहारा मिला है. दोनों अपने परफॉरमेंस से इसे देखने योग्य बनाए रखती हैं. जबकि अली फजल का किरदार फिल्म में बहुत देर से सक्रिय होता है और शुरुआती कई दृश्यों में वह सिर्फ खुफिया फाइलों की फोटोकॉपी करता नजर आता है. फिल्म में अगर कोई किरदार चौंकाता है, तो वह है रवि मोहन की मां के रूप में दिखीं नवनींद्र बहल. लेकिन विशाल इस किरदार के साथ न्याय नहीं करते और इससे जुड़े तमाम सवालों को अधर में छोड़ देते हैं. फिल्म का म्यूजिक सुनने जैसा है. फिल्म को अच्छे ढंग से शूट किया गया है. फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. अगर आपके पास सब्सक्रिप्शन है और आप विशाल भारद्वाज की फिल्मों को उनकी कमियों के बावजूद देख सकते हैं, तो खुफिया आपके लिए है.

निर्देशकः विशाल भारद्वाज
सितारे: तब्बू, वामिका गब्बी, अली फजल, आशीष विद्यार्थी, नवनींद्र बहल
रेटिंग***

Trending news