Ranbir Kapoor Alia Bhatt Film: ब्रह्मास्त्र शुरुआत में उम्मीदें तो जगाती है, लेकिन जल्द ही पटरी से उतर जाती है. बीच-बीच में जरूर कुछ चिंगारियां हैं लेकिन आग नहीं. दर्शक को छोटे-छोटे ब्रेक के बाद थोड़ा-थोड़ा एंटरटेनमेंट जैसा फील होता है.
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Astraverse Movie: ब्रह्मास्त्र को आम दर्शकों के साथ सिनेमाहॉल में बैठकर देखते हुए पहले पंद्रह-बीस मिनट तक आपको महसूस होगा कि बॉलीवुड का जादू फिर चल पड़ा है. पर्दे पर साइंटिस्ट मोहन भार्गव (शाहरुख खान) और ब्रह्मास्त्र को हासिल करने निकली विलेन जुनून (मौनी रॉय) के बीच टक्कर है. मोहन भार्गव के पास दुनिया के सबसे बड़े अस्त्र ब्रह्मास्त्र के तीन टुकड़ों में से एक टुकड़ा है. जुनून उस पर कब्जा करके, मोहन भार्गव को बंदी बनाकर जानना चाहती है कि बाकी दो टुकड़े कहां और किसके पास मिलेंगे. फिल्म तेज रफ्तार से उड़ान भरती है और तालियों-सीटियों के शोर के बीच लगता है कि आगे का सफर रोमांचक और शानदार है. लेकिन फिर जैसे ही पर्दे से शाहरुख-मौनी गायब होते हैं और रणबीर कपूर-आलिया भट्ट की एंट्री होती है, फिल्म ब्रह्मास्त्र से प्रेमशास्त्र पर आ जाती है. दर्शकों का शोर निराशा और गुस्से में बदल जाता है कि ये बॉलीवुडवाले सुधरेंगे नहीं. तब आप इंतजार करते हैं कि कब हीरो-हीरोइन का प्रेमालाप खत्म होगा और कब ब्रह्मास्त्र की बात आगे बढ़ेगी. पूरी फिल्म में ब्रह्मास्त्र की कहानी थोड़ी देर के लिए आती है, फिर आता है ब्रेक. ब्रेक में हीरो-हीरोइन का बिना केमेस्ट्री वाला चलताऊ प्यार बोर करता है.
पहले थोड़ी अच्छी बात
ब्रह्मास्त्र की खूबियों में सबसे पहले शाहरुख खान का कैमियो है. इसके बाद फिल्म के कुछ वीएफएक्स वाले सीन. फिर फिल्म के अच्छे गाने. केसरिया, देवा और डांस का भूत खूबसूरती से गाए और शूट किए गए हैं. रणबीर कपूर कुछ दृश्यों में जरूर अच्छे लगे हैं, लेकिन उनमें सुपरएनर्जी वाले हीरो वाली बात नहीं है. नागार्जुन अपनी सीमित भूमिका में जमे हैं. मौनी रॉय ने अपनी सीमाओं में अच्छा काम किया है. इसके बाद ज्यादा कुछ कहने को नहीं है. रिलीज से पहले फिल्म को अस्त्रावर्स यानी अस्त्रों की दुनिया बता कर खूब बातें की गईं. लेकिन पूरी कहानी अग्निअस्त्र बने शिवा (रणबीर कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है. वानर अस्त्र जिसके पास होता है, वह लंबी-ऊंची छलांगे भरता है और नंदी अस्त्र धारण करने वाले (नागार्जुन) के पास हजार नंदी बैलों जितनी ताकत होती है. बाकी अस्त्रों से फिल्म में एक्स्ट्रा जैसा बर्ताव किया गया है. वास्तव में यहां हिंदू पौराणिक संदर्भों को नाम के लिए ही इस्तेमाल किया गया है. इनकी बातों में जरा भी गहराई या रिसर्च नहीं है.
फिसलती हुई फिल्म
ब्रह्मास्त्र की समस्या यही है कि अच्छी शुरुआत के बाद फिसलती जाती है और रोग वही पुराना है. खराब राइटिंग. अयन मुखर्जी ने कहानी यहां-वहां के जोड़-तोड़ से बनाई है. फिल्म अनिल कपूर की मिस्टर इंडिया जैसी साइंटिस्ट के साथ शुरू होती है. फिर हीरो अनाथ निकलता है और कई अनाथ बच्चों को पालता-पोसता है. हीरो यहां डीजे है. हजारों फिल्मों की तरह हीरो को हीरोइन को देखते ही प्यार हो जाता है. हीरो अनाथ-गरीब है और हीरोइन अरबपति-खरबपति. इसके बाद हीरो में अयन ने हैरी पॉटर को डाल दिया. जिसके पास जादुई शक्ति है, लेकिन मां-बाप का पता नहीं. जैसे हैरी पॉटर के माता-पिता की कहानी जादू सिखाने वाले स्कूल में थी. वैसे ही यहां हीरो के मां-बाप की कहानी ब्रह्मांश नाम की सोसायटी से जुड़ी है. जिसकी बागडोर फिलहाल गुरुजी (अमिताभ बच्चन) के पास है. मां-बाप की कहानी जानने की उत्सुकता हैरी पॉटर की तरह शिवा में भी है. ऐसे में अगर अयन बताते हैं कि फिल्म का नाम पहले ड्रेगन था, तो आश्चर्य की बात नहीं. कहानी के बीज हॉलीवुड फिल्म से उन्होंने उठाए हैं.
वही पुरानी बीमारी
ब्रह्मास्त्र के निर्माताओं से पूछा जाए कि 400 करोड़ की फिल्म में किस डिपार्टमेंट में सबसे कम खर्च हुआ, तो निश्चित ही राइटिंग का नाम आएगा. किसी महंगी फिल्म में कितने खराब और बुझे हुए संवाद हो सकते हैं, यह जानने के लिए आप यह फिल्म देखिए. किरदारों को यहां ढंग से न रचा गया और न उनकी अपनी कोई कहानियां हैं. शिवा को छोड़ दें, तो बाकियों के बारे में फिल्म देखकर आप सही ढंग से कुछ नहीं बता सकते. यह फिल्म तमाम बड़ी नाकाम बॉलीवुड फिल्मों की तरह खराब राइटिंग की शिकार है. आलिया का किरदार पूरी तरह सपाट है. वह फिल्म के किसी दृश्य में न चौंकाती हैं और न आकर्षित करती हैं. वह सिर्फ रणबीर की प्रेमिका बनी हैं. निर्माता-निर्देशक कनफ्यूज हैं कि ब्रह्मास्त्र में क्या दिखाएं. अस्त्रों के लिए लड़ाई की कहानी या रणबीर-आलिया की म्यूजिकल प्रेम कहानी.
वीएफएक्स का अंधेरा
जिन वीएफक्स दृश्यों पर करोड़ों खर्च करने की बात है, तो उनमें से तमाम अंधेरे में रचे गए हैं. इतना अंधेरा कि कई बार आप बड़े पर्दे पर भी समझ नहीं पाते कि क्या हो रहा है. मोबाइल पर देखने वालों को पता नहीं क्या दिखेगा. फिल्म अंधेरे और रोशनी की लड़ाई की बात करती है, लेकिन उसके ज्यादातर दृश्यों पर अंधेरा छाया है. रणबीर-आलिया-शाहरुख-अमिताभ के डायलॉग कई जगह पर ऐसे हैं, जैसे सेल्फ-हेल्प बुक्स में से लाइनें कॉपी करके लिख दी हैं. सिर्फ पैसे और तकनीकी तरक्की से सिनेमा बनाकर सिनेमाघरों तक तो लाया जा सकता है, लेकिन उससे दर्शकों के दिल में नहीं उतरा जा सकता. अगर आप हॉलीवुड की मार्वल फिल्मों के दर्शक हैं तो शिवा तकनीकी स्तर पर भी निराश करेगी. भले ही खुद को तसल्ली देने के लिए अपनी पीठ ठोक लें कि हमने भी उस स्तर का वीएफएक्स बना लिया. कुल मिलाकर मामला यह कि जिज्ञासावश जरूर आप ब्रह्मास्त्र को देख सकते हैं कि आखिर यह है क्या. वर्ना तो सिनेमाघरों में टिकट खरीदना मेहनत से कमाए अपने नोटों के हवाई जहाज बना कर उड़ाने बराबर है.
निर्देशकः अयन मुखर्जी
सितारेः रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, अमिताभ बच्चन, मौनी रॉय, शाहरुख खान, नागार्जुन अक्किनेनी
रेटिंग **1/2
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