Satyaprem Ki Katha Review: भगवान भरोसे है यह कथा, कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी के भरोसे मत जाइएगा
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Satyaprem Ki Katha Review: भगवान भरोसे है यह कथा, कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी के भरोसे मत जाइएगा

Satyaprem Ki Katha Film Review: ट्रेलर अच्छा होना, अच्छी फिल्म की गारंटी नहीं है. सत्यप्रेम की कथा का ट्रेलर जिस एंटरेटनमेंट की उम्मीद जगाता है, वह फिल्म से गायब है. यहां नायिका नायक से कहती हैः तुम बोलने से पहले बिल्कुल सोचते नहीं हो ना. सत्यप्रेम की कथा देखकर लगता है कि मेकर्स ने भी फिल्म बनाने से पहले स्टोरी-स्क्रिप्ट पर जरा सोच लिया होता...

 

Satyaprem Ki Katha Review: भगवान भरोसे है यह कथा, कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी के भरोसे मत जाइएगा

Satyaprem Ki Katha Movie Review: तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) और अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) स्टारर फिल्म पिंक (Film Pink) के मैसेज, ‘नो मीन्स नो’ को अब हिंदी फिल्मों का दर्शक खूब ढंग से समझ चुका है. बीच में कई फिल्मों में इस बारे में इशारा किया गया या फिर कहानी में ऐसे ट्रेक डाले गए. सत्यप्रेम की कथा इसी ‘नो मीन्स नो’ (No Means No) को नए सिरे से, हीरो के नजरिये से पेश करती है. इस मैसेज के लिए कहानी इतने रास्तों से गुजरती है कि दर्शक चक्कर खाते राइटर-डायरेक्टर से पूछना चाहता हैः भाई, तुम कहना क्या चाहते होॽ बात कॉमेडी से शुरू होती है और रोमांस की तरफ बढ़ती है. फिर शादी आ जाती है. लेकिन शादी न केवल हीरो के लिए ट्रेजडी साबित होती है, बल्कि देखने वाला भी ट्रेजडी का शिकार हो जाता है.

कहानी को लगी ठंड
सत्यप्रेम, फिल्म का हीरो है. कथा, फिल्म की हीरोइन है. एक गरबा नाइट में हीरोइन को देखते ही हीरो उसे दिल दे बैठता है. हीरोइन का पहले से बॉयफ्रेंड है, तपन. हीरो कहता है कि मेरे नाम के साथ तुम्हारा हैशटैग अच्छा बनेगा, सत्यप्रेम की कथा (Satyaprem Ki Katha). इसलिए मेरी-तुम्हारी जोड़ी जमेगी. कुछ देर बाद जोड़ी जम जाती है और शादी हो जाती है. लेकिन शादी के बाद न तो सत्यप्रेम को प्रेम मिलता है और न कथा की कहानी में रोमांच रहता है. फिल्म ढलान पर आने लगती है. फिल्म की कॉमेडी तो यहीं खत्म हो ही जाती है, रोमांस का ग्राफ रत्ती भर उठ नहीं पाता है. पसूरी गाने की रीमेक की तरह उसे ठंड लग जाती है.

सिर्फ बढ़ता जाता है टेंशन
सत्यप्रेम की कहानी शुरु होती है, अहमदाबाद (गुजरात) में सत्यप्रेम के घर से. सत्यप्रेम (कार्तिक आर्यन) और उसके पिता (गजराज राव) निठल्ले हैं. बड़े-से पुश्तैनी घर में रहते हैं. कुछ कमाते नहीं. घर सत्यप्रेम की मां, दीवाली (सुप्रिया पाठक) और बहन, सेजल (शिखा तलसानिया) की कमाई से चलता है. दोनों, बाप-बेटों को कोसती रहती हैं. निठल्लेपन के कारण सत्यप्रेम की शादी नहीं हो रही, जबकि वह मोहल्ले का आखिरी कुंवारा है. लेकिन सत्यप्रेम को शहर के सबसे बड़े मिठाई और फरसाणवाले की बेटी कथा (कियारा आडवाणी) से प्यार हो गया है. होने को तो दोनों परिवारों में जमीन-आसमान जैसी गरीबी-अमीरी का अंतर है, लेकिन घटनाक्रम ऐसे घूमता है कि कथा के रईस मां-बाप खुद बेटी का रिश्ता सत्यप्रेम के लिए ले जाते हैं. शादी हो जाती है, लेकिन इससे न तो इन परिवारों में खुशी आती है और न ही दर्शक के चेहरे पर मुस्कान. यहां से हर तरफ सिर्फ टेंशन बढ़ता है और आप सोचते हैं कि कब फिल्म खत्म होगी.

ढीले हैं कैरेक्टर
एक समय के बाद फिल्म में साफ दिखता है कि लेखक करण श्रीकांत शर्मा और निर्देशक समीर विद्वांस भटक गए हैं. कहां से चले थे और कहां पहुंच गए. जैसे-जैसे कहानी बढ़ती है, दोनों की पकड़ से छूटकर बिखरती जाती है. सत्यप्रेम की मां बेटे को कोसते-कोसते रंग बदलती है और लालची सास बन जाती है. वही लालची सास कुछ देर बाद बहू के प्रति नर्मदिल और सहानुभूति रखने वाली बन जाती है. दीवाली की बड़ी बहन फिल्म के बीच दो सीन के लिए आती और गायब हो जाती है. दूधवाले भाईसाब बने राजपाल यादव (Rajpal Yadav) नाममात्र को हैं. सत्यप्रेम की बहन का किरदार कहानी में अहम होने के बावजूद निखर नहीं पाता. कथा की मां बनीं अनुराधा पटेल एक भी ऐसा संवाद नहीं बोलतीं, जिसका कोई मतलब कहानी में हो. कथा के एक्स-बॉयफ्रेंड तपन के रोल का भारी पतन यहां है. उसे कैमरे के सामने कुछ सकेंड की तीन-चार झलक दिखाने और हीरो के हाथ से कुछ लात-घूंसे खान के लिए रखा गया है.

सिर्फ मुहावरा नहीं
सत्यप्रेम की कथा, वैसी नहीं है जैसा इसके टाइटल से फील होता है या जैसा आपने ट्रेलर (Satyaprem Ki Katha Trailer) में देखा-महसूस किया होगा. फिल्म में असेक्सुअल, रेप और कंसेंट जैसे मुद्दे उठाए हैं लेकिन इन्हें तार्किक ढंग से नहीं निभाया गया. असेक्सुल (Asexuality) होना यहां झूठ की आड़ बन जाता है. रेप (Rape) और कंसेंट को राइटर-डायरेक्टर जिस तरह से क्लाइमेक्स में ले जाते हैं, उससे लगता है कि अपराधी को अब इस घृणित अपराध की सजा भगवान सत्यनारायण की कथा (Satyanarayan Ki Katha) करने से मिलेगी. फिल्म के आखिरी के पांच-सात मिनिट हास्यास्पद हैं और जो लोग इस भयानक हादसे के शिकार हुए हैं, उनकी भावनाओं के साथ मजाक हैं. ऐसा लगता है कि ‘भगवान भरोसे’ सिर्फ मुहावरा नहीं है. सत्यप्रेम की कथा सचमुच ‘भगवान भरोसे’ को क्लाइमेक्स में साकार करती है. सिर्फ इतना दिखाना बाकी रह गया कि पुलिस थाने और अदालत में भी सत्यनारायण की कथा हो रही है.

छप्पर फाड़ पैसा
हर एक्टर के लिए शुरुआती सफलता के बाद अच्छी कहानियों का चुनाव बड़ी चुनौती होती है. कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) अब इस समस्या से जूझ रहे हैं. शहजादा (Film Shehzada) के बाद वह फिर मुश्किल में हैं. फिल्म में उनका अभिनय अच्छा है और वह अपने कंधों पर फिल्म को लेकर चले हैं, लेकिन कहानी में सिर्फ भटकाव है. राइटर-डायरेक्टर-एडिटर अपना काम सही ढंग से नहीं कर पाए. संगीत औसत है. कियारा आडवाणी (Kiara Advani) का अभिनय भी अच्छा है, लेकिन आज के जमाने में वह जरूरत से ज्यादा बेचारी नजर आती हैं. कुल मिलकर सत्यप्रेम की कथा, वह फिल्म नहीं है जो आपको सवा दो घंटे एंटरटेन करे. शुरुआत ठीक है और लाउड कॉमेडी के बावजूद आप कहानी के पटरी पर आने की उम्मीद करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हो नहीं पाता. इंटरवेल के बाद तो आप पाते हैं कि लेखक-निर्देशक ने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया है. अगर आपके पास छप्पर फाड़कर भगवान का बरसाया पैसा नहीं है, आपने कड़ी मेहनत से कमाया है, तो सोच-समझकर खर्च कीजिएगा.

निर्देशकः समीर विद्वांस
सितारे: कार्तिक आर्यन, कियारा आडवाणी, गजराज राव, सुप्रिया पाठक, शिखा तलसानिया, राजपाल यादव
रेटिंग**

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