RARKPK Review: डबल इंजन वाली लवस्टोरी में रणवीर का जबर्दस्त कमबैक, बाकी है करण जौहर का थकाऊ लेक्चर
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RARKPK Review: डबल इंजन वाली लवस्टोरी में रणवीर का जबर्दस्त कमबैक, बाकी है करण जौहर का थकाऊ लेक्चर

Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani Review: रणवीर सिंह के अगर आप फैन न भी हों, तो इस फिल्म को सिर्फ उनके लिए देखें. जया बच्चन बताती हैं कि वाकई अगर उनके लिए फिल्म लिखी जाए तो उम्र सिर्फ नंबर है. बाकी सब करण जौहर की इस फिल्म में कॉलेज के लचर और उबाऊ लेक्चर की तरह है. बेहतर होता कि जिन मुद्दों पर करण ने यहां बात की, उन पर अपने कॉफी शो में बतिया लेते...

 

RARKPK Review: डबल इंजन वाली लवस्टोरी में रणवीर का जबर्दस्त कमबैक, बाकी है करण जौहर का थकाऊ लेक्चर

Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani Movie Review: बॉलीवुड सिनेमा (Bollywood Films) के दर्शकों को नए किस्म के कंटेंट की तलाश है. ऐसे में जब करण जौहर (Karan Johar) जैसे निर्देशक की फिल्म आती है, तो उम्मीद जागती है कि वह कोई दिशा दिखाएंगे. लेकिन रॉकी और रानी की प्रेम कहानी देखने के बाद पता चलता है कि वह खुद रिवर्स गियर में हैं. 2001 में जो कभी खुशी कभी गम बनाई थी, उसकी केंद्रीय समस्या में ही अटके हैं. व्यवसायी साम्राज्य का वारिस लड़का और अकूत धन के अहंकार में जीने वाला उसका परिवार. दूसरी तरफ लड़की है, विदेशी युनिवर्सिटी से पढ़ी-लिखी एकदम मॉडर्न. लड़के के साथ यहां-वहां घूमते. जाने कितनी बार उसके गले में झूलते और चूमते. उसके सपने देखते और बरसात में भीगते हुए गाना गाते. लड़की के लिए यह प्यार नहीं, हंसी-ठिठोली है. लड़का इसे प्यार समझ रहा है. हालांकि यह पिछड़ी बात लगती है, लेकिन करण की फिल्म में इसी नए-पुराने का टकराव है.

ब्रा-शॉपिंग का सिनेमा
रॉकी और रानी की प्रेम कहानी (Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani) में कहानी पुरानी है. उसकी बातें पुरानी है. यह सही है कि हमारा देश-काल-समाज स्त्री-पुरुष संबंधों, परिवारों के टूटने-गढ़ने-बढ़ने, काले-गोरे-मोटे जैसे शारीरिक संबोधनों से लेकर तमाम गैर-बराबरी और दूसरे को उसकी नैगर्सिक या हालात की वजह से रह गई कमी के लिए शर्मिंदा करने वाली मानसिकता के विरुद्ध लड़ रहा है. लेकिन यह लड़ाई उतनी भी उथली नहीं है, जितना यह फिल्म बताती है. लड़की को ऊंचा उठाने के लिए लेखक-निर्देशक उसके सामने लड़के को गबरू-गंवार जैसा दिखाते हैं. लड़की के सुसंस्कृत-आधुनिक परिवार के सामने लड़के के धनी परिवार को पुरातन सोच वाला, आदिम रूढ़ियों में जकड़ा बताते हैं. स्त्री के प्रति पुरुष के संवेदनशील होने का पैमाना ब्रा-शॉपिंग बताते हैं. कई जगहों पर फिल्म देखते हुए लगता है कि नई-पुरानी पीढ़ी में सामंजस्य की स्थितियां तथा समझ पैदा करने के बजाय, करण जौहर परिवारों और रिश्तों को तोड़ने के फार्मूले गढ़ रहे हैं. यूं भी अब यह सब काफी हद तक सिमट ही चुके हैं.

कुतर्क का लव त्रिकोण
वास्तव में फिल्म एक बार फिर यह स्थापित करती है कि बॉलीवुड के कम से कम बड़े तथा स्थापित फिल्ममेकर भारत को मुंबई की जूहू-बांद्रा-अंधेरी की गलियों से बाहर निकलकर देखते-समझते नहीं हैं. फिल्म में जया बच्चन (Jaya Bachchan) के सामने धर्मेंद्र-शबाना आजमी का रोमांस स्थापित करना करण जौहर के कुतर्क गढ़ने जैसा लगता है. इसमें वह जया के किरदार को पूरी तरह खलनायिका बना देते हैं. लेकिन मुश्किल यह है कि इस पूरे त्रिकोण को हल्के ढंग से स्थापित करते हैं. इसकी आड़ में वह रॉकी और रानी की प्रेम कहानी (Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani) को आगे बढ़ाते हैं. हालांकि एक समय बाद दोनों की कहानी अलग ट्रेक पर चली जाती है, जब वे तीन महीने के लिए एक-दूसरे के घरों में जाकर कल्चरल चेंज के बीच खुद को एडजस्ट करने की चुनौती स्वीकार करते हैं.

रेट्रो फील की अति
रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की कहानी और स्क्रीन प्ले दोनों लगातार समस्याग्रस्त रहते हैं. मूल रूप से फिल्म रॉकी और रानी के बहाने दो परिवारों, पंजाबी रंधावा और बंगाली चटर्जी परिवार को आमने-सामने कर देती है. फिल्म में रानी की नानी (शबाना आजमी) उसे समझाती है कि प्यार में स्टेयरिंग भले ही प्रेमियों के हाथ में हो, लेकिन बैकसीट पर बैठा परिवार ही उन्हें कंट्रोल करता है. रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की शुरुआत हल्के-फुल्के ढंग से होती है. कंवल (धर्मेंद्र) और जामिनी (शबाना) के युवा दिनों के प्रेम से वह रेट्रो फील भी देती है. जो अच्छा लगता है. लेकिन जल्द ही यह डबल इंजन वाली लवस्टोरी अपने मूल उद्देश्य यानी एंटरटेनमेंट से भटक जाती है और दर्शक को लगातार सामाजिक-पारिवारिक-रिश्तों पर पाठ पढ़ाने लगती है. फिल्म का दूसरा हिस्सा बोर करता है. आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या यह वही करण जौहर हैं, जिन्होंने कुछ कुछ होता है और कभी खुशी कभी गम बनाई! प्रेम कहानियों में रिश्तों की गहराई और जटिलता, ऐ दिल है मुश्किल में उन्होंने कहीं बेहतर दिखाई थी.

लिरिक्स बोले तो, बोल
फिल्म में ट्विस्ट तब आता है, जब रॉकी और रानी यह जानने के लिए एक-दूसरे के परिवार के साथ रहने चले जाते हैं कि क्या भविष्य में वे इन संबंधियों के संग निबाह सकेंगेॽ यहां कुछ पेच पैदा होते हैं, लेकिन करण जौहर का दर्शकों को लगातार लेक्चर देना, फिल्म को पटरी से उतार देता है. इस फिल्म को देखने की एकमात्र वजह रणवीर सिंह और जया बच्चन का परफॉरमेंस है. 83, जयेशभाई जोरदार और सर्कस में रणवीर ने जितना निराश किया था, वह उसकी भरपाई करते हुए जबर्दस्त कमबैक करते हैं. वह रॉकी के रोल में जितने सहज हैं, आलिया (Alia Bhatt) रानी के रोल में उतनी ही ऐक्टिंग करती नजर आती हैं. करण जौहर के नेपोटिज्म से इस फिल्म का भला नहीं होता. फिल्म में गीत-संगीत तो बहुत सारा है, लेकिन कानों को वही अच्छा लगता है, जो पुराना है. मगर कहानी में घुल-मिलकर एक मौके के बाद वह भी असर खो देता है. फिल्म में म्यूजिक के साथ कैसा बर्ताव किया गया है, वह आप एक और बात से समझ सकते हैं. फिल्म के गाने अमिताभ भट्टचार्य ने लिखे हैं. पर्दे पर अंग्रेजी में उनके नाम के साथ लिखा आता है, लिरिक्स. जबकि उसका हिंदी तर्जुमा यहां गीत न करके किया गया है, बोल! फिल्म की लंबाई है, 163 मिनिट.

निर्देशकः करण जौहर
सितारे: रणवीर सिंह, आलिया भट्ट, जया बच्चन, धर्मेंद्र, शबाना आजमी, तोता रॉय चौधरी, चर्नी गांगुली
रेटिंग**1/2

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