Diwakar Kumar Interview: सीनियरों के साथ काम का अनुभव होता है मास्टर क्लास जैसा, संजय मिश्रा-नीना गुप्ता से यही सीखा
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Diwakar Kumar Interview: सीनियरों के साथ काम का अनुभव होता है मास्टर क्लास जैसा, संजय मिश्रा-नीना गुप्ता से यही सीखा

Actor Diwakar Kumar: बिहार से आए युवा एक्टर दिवाकर कुमार ने चुनिंदा फिल्में की हैं मगर मजबूत छाप छोड़ी है. अरशद वारसी, संजय मिश्रा और नीना गुप्ता जैसे एक्टरों के साथ काम करने वाले दिवाकर फिल्मों के साथ रंगमंच पर भी लगातार सक्रिय हैं. उनके साथ एक खास बातचीत...

 

 

Diwakar Kumar Interview: सीनियरों के साथ काम का अनुभव होता है मास्टर क्लास जैसा, संजय मिश्रा-नीना गुप्ता से यही सीखा

Diwakar Kumar Movies: आपने चुनिंदा मगर चर्चित फिल्मों में काम किया है. शुरुआत का इंटरवेल, इरादा और हाल में वध. रंगमंच पर आपने काफी काम किया. आप सबसे पहले अपने बारे में बताइए.
-मैं मूल रूप से बिहार के सीतामढ़ी जिले से हूं. वहां गांव है, चोरौत. मैं जब बहुत छोटा था, मेरे पिता एक हादसे में गुजर गए. मेरी मां मुझे अच्छे से पढ़ाना-लिखाना चाहती थीं. चोरौत में ही मेरी स्कूलिंग हुई और फिर दसवीं के बाद दिल्ली आ गया. यहां मेरे बड़े भाई पहले ही पढ़ने आ चुके थे. मां, हाउस वाइफ थीं और ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं. मगर मैंने अपने जीवन उनके जैसा सशक्त इंसान नहीं देखा. दिल्ली में मैंने 12वीं पास की. फिर बच्चों की ट्यूशन लेना शुरू किया और अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश की.

-आप थियेटर से कैसे जुड़ेॽ
-मैं जब अपने घर में बिहार में था, वहीं अभिनय से जुड़ा. दुर्गापूजा-दीवाली जैसे मौकों पर नाटक होते हैं. मेरे पिता भी एक्टर थे और प्रोफेशनल तरीके से. मुझे याद है कि एक नाटक में वह यमराज बने थे और असली भैंसे पर बैठकर ऑडियंस के बीच से आए थे. हजारों की ऑडियंस की मौजूद थी. शायद वहीं से मेरे पास एक्टिंग आई. लेकिन दिल्ली युनिवर्सिटी पहुंचने के बाद ग्रेजुएशन करके मुझे लगा कि आगे एक्टिंग ही करनी है. ढेर सारे नाटक किए, नुक्कड़ नाटक किए. अलग-अलग भाषाओं में. अलग-अलग निर्देशकों के साथ. 2011 में मैं मुंबई आ गया, मगर लगा कि अभी सीखना बाकी है तो दिल्ली लौट गया. तीन साल फिर दिल्ली रहा. 2014 में वापस मुंबई आया.

-फिल्मों का सफर कैसे शुरू हुआॽ
-यहां सबसे पहले मुझे शुरुआत का इंटरवेल (2015) मिली, जो शॉर्ट फिल्मों का कलेक्शन थी. कई सारे ऑडिशन देने के बाद इरादा (2017) मिली. मुझे डायरेक्टर अपर्णा सिन्हा ने कास्ट किया. इसके बाद कुछ फिल्में की, जो आई नहीं. कई एड और शॉर्ट फिल्में की. वध भी हमने 2019 में शूट कर ली थी. फिर कोविड आ गया.

-आप मुंबई आकर वापस दिल्ली लौट गए. क्या वजह थीॽ
-एक तो फाइनेंशियल और दूसरा मैंने महसूस किया कि मेरे अंदर ऑडिशन को लेकर झिझक थी. मुझे लगा कि अभी और थियेटर करना चाहिए. अपने आर्ट और क्राफ्ट को मांजना चाहिए क्योंकि मैं एक्टिंग प्रोसेस को एंजॉय करता हूं.

-थियेटर में भी ऑडिशन होते हैं, मगर फिल्म के ऑडिशन उससे अलग कैसे हैंॽ
-थियेटर में ऑडिशन होते हैं परंतु वहां अगर कोई आपको स्टेज पर देख लेता है तो अपने हिसाब से किसी रोल के लिए चुन लेता है. जबकि फिल्मों में हर दूसरे दिन लुक टेस्ट और ऑडिशन होता है. यहां सिर्फ इससे मतलब नहीं होता कि क्या एक्टिंग आती है. कई चीजें हैं, जैसे क्या कैरेक्टर के अनुरूप दिख रहे हैं, चेंज करके कैसे दिखोगे. इसके लिए एक्टर को खुद को जानना बहुत जरूरी है.

-इरादा आपकी पहली बड़ी फिल्म थी. फिल्म को और दिव्या दत्ता को नेशनल अवार्ड मिले थे. नसीरूद्दीन शाह थे. अरशद वारसी के साथ आपका रोल लंबा और अच्छा था. इस फिल्म में आपका क्या अनुभव रहाॽ
-बहुत कुछ सीखा. सीनियर एक्टर्स की बातों से, उनका काम देखकर. सबसे बड़ी बात सीखी कि फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से खुद को तैयार रखना पड़ता है. सैट पर यह जरूरी नहीं कि आप जो तैयारी करके जा रहे हैं, वही होगा. चीजें एकदम बदलती हैं. मेरी थियेटर की ट्रेनिंग वहां बहुत काम आई. मैं इस फिल्म से पहले कैमरे के लुक और एंगिल से वाकिफ नहीं था. वह बात मुझे यहां समझ आई.

-फिल्म में अरशद के साथ आपका लंबा रोल था. क्या लगा उसके साथ काम करकेॽ
-वह बहुत ईमानदार इंसान हैं और इतने सहज हैं कि लगता था, मानो कॉलेज के दोस्त हैं. कभी नहीं लगा कि वह बड़े एक्टर हैं. वह बातों-बातों में सीन को कर लेते थे. साथ ही कभी माहौल को भारी नहीं होने देते. काम को बहुत एंजॉय करते हैं.

-वध (2022) में आप संजय मिश्रा और नीना गुप्ता के बेटे बने. यह फिल्म कैसे मिलीॽ
-वध के दो डायरेक्टर हैं जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल. राजीव सर के साथ मुझे एक शॉर्ट फिल्म करनी थी. मगर वह नहीं बनी तो मैंने इस फिल्म के लिए एप्रोच किया. हालांकि यह रोल पाने के लिए मुझे उन्हें कनविंस करने में काफी समय लगा.

-संजय मिश्रा और नीना गुप्ता सीनियर एक्टर हैं. इनके साथ काम करने से क्या फायदा हुआॽ
-बहुत फायदा हुआ क्योंकि जैसे संजय सर के साथ पहली ही मुलाकात में मैंने जब रोल की तैयारी में तीन-साढ़े तीन घंटे बिताए तो वह एक्टिंग का दो साल का कोर्स करने जैसी बात थी. कैसे वह कैरेक्टर को देखते हैं, कैसे उसकी तैयारी करते है, कैसे उसे अंदर उतारते हैं. नीना मैडम का स्टाइल ही अलग है. वह सैट पर बहुत चिल आती हैं और नॉरमल दिख रही होती हैं. लेकिन अचानक कब कैरेक्टर करके निकल जाती हैं, पता नहीं चलता. जब मैं उनसे गुडबाय के प्रीमियर पर मिला तो मैंने उन्हें बताया कि आपकी एक्टिंग को मैंने कैसे ऑब्जर्व किया. फिर पूछा कि आप ये कैसे कर लेती हैं क्योंकि हमें बड़ी तैयारी करनी पड़ती है. तब उन्होंने कूल ढंग से कहा- बेटा एक्सपीरियंस के साथ सब आ जाएगा.

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