कभी पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए नहीं थे 2 रुपये; गांव वालों से उधार लेकर पास किया UPSC और बन गए IAS
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कभी पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए नहीं थे 2 रुपये; गांव वालों से उधार लेकर पास किया UPSC और बन गए IAS

UPSC Success Story: आज हम आपको उस आईएएस ऑफिसर के बारे में बताएंगे, जिनके पास कभी अपने पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए बस का 2 रुपये किराया नहीं था. उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी गांव वालों से उधार लेकर की थी.

कभी पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए नहीं थे 2 रुपये; गांव वालों से उधार लेकर पास किया UPSC और बन गए IAS

IAS Ramesh Gholap: आईएएस रमेश घोलप की कहानी दृढ़ संकल्प, मेहनत और संघर्ष की एक प्रेरणादायक मिसाल है. महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के छोटे से गांव महागांव में जन्मे रमेश ने बचपन में कई कठिनाइयों का सामना किया. उनके पिता गोरख घोलप एक साधारण साइकिल रिपेयर की दुकान चलाते थे, लेकिन उनके पिता की सेहत शराब की लत के कारण बिगड़ती गई. इसके चलते दुकान बंद करनी पड़ी, और परिवार की जिम्मेदारी रमेश की मां विमल घोलप पर आ गई. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए आसपास के गांवों में चूड़ियां बेचनी शुरू कीं.

पिता के अंतिम संस्कार में जाने तक का नहीं था किराया
रमेश के बाएं पैर में पोलियो था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वे अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचने का काम करते थे और साथ ही पढ़ाई में भी ध्यान देते थे. रमेश स्कूल में बहुत अच्छे छात्र थे और महाराष्ट्र के बारसी में अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते थे. दरअसल, पढ़ाई के कारण वह अपने चाचा के पास रहने लगे. लेकिन 2005 में उनके पिता का निधन हो गया. उस समय परिवार के पास इतना भी पैसा नहीं था कि रमेश बस का 2 रुपये किराया देकर अंतिम संस्कार में जा सकें. पड़ोसियों की मदद से वे अंतिम संस्कार में पहुंचे. इस घटना ने रमेश को झकझोर दिया और उन्होंने ठान लिया कि शिक्षा ही उनके परिवार को गरीबी से बाहर निकालने का रास्ता है.

गांव वालो से उधार लेकर की UPSC की तैयारी
रमेश ने अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया और ओपन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में डिग्री पूरी की. 2009 में वे टीचर बने, लेकिन उनकी असली मंजिल कुछ और थी. कॉलेज के दौरान एक तहसीलदार से मुलाकात ने उन्हें बड़ा सपना देखने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने ठान लिया कि वे यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा (CSE) की तैयारी करेंगे. अपनी तैयारी के लिए रमेश पुणे चले गए. उनकी मां ने उनकी पढ़ाई के लिए पैसे बचाए और हर संभव मदद की. यहां तक कि उन्होंने रमेश की पढ़ाई के लिए गांव वालों से उधार तक लिया.

दूसरे प्रयास में बन गए IAS
रमेश भी परीक्षा की तैयारी में जी-जान से जुट गए. हालांकि, 2010 में अपने पहले प्रयास में उनको असफलता मिली. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. साल 2012 में उन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास की और 287वीं रैंक हासिल की. उन्होंने दिव्यांग कोटे के तहत आईएएस बनने का सपना पूरा किया. आज रमेश घोलप झारखंड के ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं. उनकी कहानी यह सिखाती है कि अगर मन में लगन हो और कड़ी मेहनत की जाए, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती. उनका जीवन संघर्ष से सफलता की एक प्रेरणादायक कहानी है.

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