Nakshatra: इस नक्षत्र के लोग दायित्व निर्वहन में माने जाते हैं कुशल, स्वभाव से होते हैं उग्र
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Nakshatra: इस नक्षत्र के लोग दायित्व निर्वहन में माने जाते हैं कुशल, स्वभाव से होते हैं उग्र

Mool Nakshatra 2023: मूल नक्षत्र की अधिष्ठात्री देवी नृति को माना गया है, जो प्रलयंकर शिव की संहार शक्ति हैं. पौराणिक साहित्य में देवी नृति को अधर्म व हिंसा की पुत्री तथा भय व मृत्यु की माता माना गया है.

 

Nakshatra

Mool Nakshatra: मूल नक्षत्र का मुख्य तारा शौला बिच्छू का डंक है. यह सबसे दक्षिणी नक्षत्र है. मूल का अर्थ है किसी पेड़ या पौधे की जड़, केंद्र बिंदु या सार तत्व. नक्षत्र का नाम ही उसके गुणों की पहचान करा देता है. जड़ सदा भूमि के भीतर ही छिपी रहती है, इसलिए मूल नक्षत्र का संबंध भूमि में दबी हुई, छिपी हुई तथा गुप्त, अनजाने क्षेत्र व अज्ञात घटनाओं के साथ माना जाता है. जो भी छिपा हुआ है, अनजाना है, गुप्त है उसका कारकत्व मूल नक्षत्र को प्राप्त है. 

मूल नक्षत्र की अधिष्ठात्री देवी नृति को माना गया है, जो प्रलयंकर शिव की संहार शक्ति हैं. पौराणिक साहित्य में देवी नृति को अधर्म व हिंसा की पुत्री तथा भय व मृत्यु की माता माना गया है. मूल नक्षत्र धनु राशि में पड़ता है, इसलिए जिन लोगों की धनु राशि है, उनका मूल नक्षत्र हो सकता है. इस नक्षत्र को भगवान विष्णु के दोनों पैर माना गया है. जिस प्रकार पांव समूची देह का भार उठाते हैं, उसी भांति मूल नक्षत्र का व्यक्ति दायित्व निर्वहन में कुशल और कर्तव्यनिष्ठ होता है.

इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को हिंसा, विध्वंस, विनाश, तोड़फोड़ करने में संकोच नहीं होता है, इसलिए इस नक्षत्र वालों को अपना दिमाग ठंडा रखना चाहिए और हमेशा जोश के साथ होश में काम करना इनके जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए. यह क्षोभ व उद्विग्नता से परेशान होकर नकारात्मक विचारों को लेकर आत्मघाती कदम उठा सकते है. ऐसे में मूल नक्षत्र वाले व्यक्तियों को जब भी नकारात्मक विचार आए तो उन्हें आत्मबल नहीं खोना चाहिए. इनके अंदर जो भी गुण होते हैं. उसके साइ़ड एफेक्ट पर भी ध्यान देना चाहिए जैसे खोजी प्रवृत्ति और कठोरता इनके गुण हैं, लेकिन भावनात्मक रिश्तों में यही अवगुण हो जाते हैं.   

उपाय

शाल या साखू इस नक्षत्र की वनस्पति है. यह तराई के स्थानों में बहुतायत में पाया जाता है. इसकी लकड़ी इमारती कामों में इस्तेमाल की जाती है. इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है. इसका पौराणिक नाम अग्नि वल्लभा, अश्वकर्ण या अश्वकर्णिका है. इस वृक्ष की उपयोगिता मुख्यत: इसकी लकड़ी में है जो अपनी मजबूती के लिए प्रख्यात है. मूल नक्षत्र वालों को इस पेड़ के संरक्षण में अपना योगदान अवश्य देना चाहिए. उपयुक्त जलवायु वाले स्थानों पर इन पेड़ों को लगाने से मूल नक्षत्र मजबूत होता है.

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