Why Quran in Arabic? कुरान अरबी में ही क्यों आया? वजह जान कर होगी हैरानी
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Why Quran in Arabic? कुरान अरबी में ही क्यों आया? वजह जान कर होगी हैरानी

Why Quran in Arabic? सभी जानते हैं कि मुसलमानों की पवित्र कुरान अरबी में है. हर जमाने में यह सवाल पूछा जाता रहा है कि कुरान अरबी में ही क्यों है? इस बारे में कई मौलाना अपने-अपने हिसाब से दलीलें देते हैं. यहां हम आपको कुरान की कुछ आयतें पेश कर रहे हैं जिसमें इस बात का जवाब मिल जाएगा कि कुरान अरबी में ही क्यों है.

Why Quran in Arabic? कुरान अरबी में ही क्यों आया? वजह जान कर होगी हैरानी

Why Quran in Arabic? पैगंबर मोहम्मद अरब में पैदा हुआ. वह यहां पले बढ़े. इसलिए जाहिर है कि उन्हें अरबी भाषा आती थी. दलील ये दी जाती है कि जिस कौम या इलाके में पैगंबर को पैदा किया जा रहा हो वह उस कौम की भाषा को समझता हो. इसीलिए अल्लाह ने अरब में अरबी जानने वाले पैगंबर स0 को भेजा. इसीलिए अल्लाह ने कुरान को अरबी में उतारा ताकि पैगंबर मोहम्मद उसे समझ सकें और अपनी कौम को समझा सकें.

अल्लाह तालाल कुरान में कहता है कि "हमने कोई रसूल नहीं भेजा मगर उसी कौम की जबान में ताकि वह उन्हें कायदे से बात समझा सके फिर उसके बाद अल्लाह जिसे चाहता है गुमराह करता है और जिसे चाहता है हिदायत देता है और वही बड़ा गालिब आने वाला, हिकमत वाला है." (अब्राहीम-4)

कुरान में एक दूसरी आयत है जिसमें अल्लाह कहता है कि "और तहकीक के साथ ये (कुरान) सारे जहां के रब की तरफ से नाजिल किया हुआ है. जैसे रूहुल अमीन ने उतारा. आपके कल्ब पर उतारा ताकि आप चेतावनी देने वालों में से हो जाएं. साफ अरबी जबान में."

माना जाता है कि अगल कुरान अरबी के अलावा किसी और जबान में अतारा जाता तो इसके माने समझने में पैगंबर को दुश्वारी होती जो कि कुरान के खिलाफ होता. अगर कुरान को किसी दूसरी जबान में उतारा जाता तो पैगंबर स0 की जबान दूसरी रहती. इस तरह से बहुत से लोग हिदायत से महरूम रह जाते. इसके बाद जिहालत की वजह से इसे जान नहीं पाते.

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कुरान में एक जगह है कि "और अगर हम इस कुरान को अजमी (गैर अरबी) जबान में करार देते तो यह लोग कहते कि इस की आयात को खोल-खोल कर बयान क्यों नहीं किया गया? (किताब) अजमी और (नबी) अरबी? कह दीजिय: यह किताब ईमान वालों के लिए हिदायत है और शिफा है और जो ईमान नहीं लाते उन के कानों में भारीपन है और वह उन के लिए अंधापन है, वह ऐसे हैं जैसे उन्हें दूर से पुकारा जा रहा हो." (फुस्सिलत-44)

मौलाना तारिक मसूद अपने एक बयान में बताते हैं कि दुनिया की तमाम जबानों में वक्त-वक्त पर तबदीली होती है. लेकिन अरबी में तबदीली नहीं होती है. वह सैकड़ों साल पहले जैसी थी वैसी ही अभी भी है. उन्होंने उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी को लिया. उनका कहना है कि अंग्रेजी में कई वर्ड और मीनिंग पहले से बदल गए हैं. इसमें कुछ वर्ड्स को हटा भी दिया गया है. अगर कोई भी शख्स 150 साल पहले की अंग्रेजी की किताब पढ़ना चाहे तो उसे वह कम ही समझ में आएगी क्योंकि इसमें तबदीली हो गई है. लेकिन अरबी में तबदीली नहीं हुई है.

कुछ आलिम मानते हैं कि कुरान की हिफाजत करने की जिम्मेदारी खुद अल्लाह ने ली है इसलिए अल्लाह ने उसे लोगों के सीने में रख दिया. यह गौरतलब है कि कुरान के हाफिज कुरान को पूरी तरह से याद कर लेते हैं. वह जिस तहर कुरान में लिखा है उसी तरह से उसे याद कर लेते हैं. वह इसे वक्त-वक्त पर दोहराते भी रहते हैं.

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