Shahi Idgah Mathura: मथुरा की शाही ईदगाह और श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. यह सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ हो रही है. पूरी खबर पढ़ें.
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Shahi Idgah Mathura: सुप्रीम कोर्ट कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई करने वाला है. दरअसल मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाई में शाही ईदगाह विवाद को लेकर हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं की मैंटेनिबिलिटी को चैलेंज किया था. जिसे कोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया था. इसके बाद मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
29 नवंबर को इस मामले में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई थी और कहा था कि वह 9 दिसंबर को दो बजे याचिका पर डिटेल सुनवाई करेंगे. सीजेआई ने कहा था, "हम इस पर विस्तार से सुनवाई करेंगे. हम इस पर 9 दिसंबर को दोपहर 2 बजे विचार करेंगे... हमें यह तय करना है कि कानूनी स्थिति क्या है."
पीठ की ओर से बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि उन्हें पहली नजर में ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश पीठ के 1 अगस्त के आदेश के खिलाफ अंतर-न्यायालयीय अपील की जा सकती है. बेंच ने कहा था कि वह बहस का मौका जरूर देगी.
1 अगस्त को, हाई कोर्ट ने मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित 18 मामलों की स्थिरता को चुनौती देने वाली प्रबंधन समिति, ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की याचिका को खारिज कर दिया था और फैसला सुनाया छाा कि शाही ईदगाह के “धार्मिक चरित्र” को निर्धारित करने की जरूरत है.
मस्जिद समिति का तर्क था कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और उससे सटी मस्जिद के विवाद से संबंधित हिंदू पक्षकारों के जरिए दायर मुकदमे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करते हैं और इसलिए वे स्वीकार्य नहीं हैं. बता दें, 1991 का यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को देश की आज़ादी के दिन से बदलने पर रोक लगाता है. इसने केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था.
हिंदू पक्ष के जरिए दायर मामलों में औरंगजेब युग की मस्जिद को “हटाने” की मांग की गई है, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह वहां पहले से मौजूद मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी. उच्च न्यायालय ने कहा कि 1991 के अधिनियम में "धार्मिक चरित्र" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है और "विवादित" स्थान का दोहरा धार्मिक चरित्र नहीं हो सकता है. मंदिर और मस्जिद का, जो एक ही समय में "एक दूसरे के प्रतिकूल" हैं.
हाई कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ये मामले "वक्फ अधिनियम, 1995, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963, परिसीमा अधिनियम, 1963 और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XIII नियम 3A के किसी भी प्रावधान के जरिए वर्जित नहीं प्रतीत होते हैं."