इस्लाम में मियां-बीवी की ये हैं जिम्मेदारियां, अक्सर पुरुष नहीं निभाते
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इस्लाम में मियां-बीवी की ये हैं जिम्मेदारियां, अक्सर पुरुष नहीं निभाते

इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि वह कौन से हक और जिम्मदारियां हैं जिन्हें मर्द और औरत को निभानी चाहिए ताकि दोनों के रिश्ते अच्छे से चलते रहें.

इस्लाम में मियां-बीवी की ये हैं जिम्मेदारियां, अक्सर पुरुष नहीं निभाते

इस्लाम में मियां-बीवी के रिश्ते को काफी अहमियत दी जाती है. इस्लाम में रिश्ते निभाने के लिए मर्दों और औरतों को अलग-अलग हुक्म दिया गया है. अगर मियां-बीवी दोनों इस्लामिक तौर तरीके से अपनी जिम्मेदारियां समझें तो बहुत हद तक उनका रिश्ता काफी अच्छा चलेगा. 

प्रोफेट मोहम्मद स0 ने एक जगह कहा है कि "मियां-बीवी के हक और जिम्मेदारियों के बारे में जो हिदायत दी हैं उनका मकसद यही है कि दोनों के लिए यह रिश्ता ज्यादा से ज्यादा खुशगवार और राहत देने वाला साथ ही दोनों के दिल जोड़ने वाला हो."

इस लेख में प्रोफेट मोहम्मद स0 ने जो फरमाया है उसका खुलासा यह है कि बीवी को चाहिए कि अपने शौहर को सबसे बेहतर समझे. उसकी वफादार रहे. उसकी हर बात माने. उसकी खातिर में कोई कमी न करें. अपनी दुनिया और आखिरत की भलाई उसकी खुशी से समझे. इसके साथ शौहर को चाहिए कि बीवी को अल्लाह की अता की हुई नेमत समझे. उसकी कद्र करे और उससे मोहब्बत करे. अगर उससे गलती हो जाए तो उसे छिपाए. सब्र और अकलमंदी से काम ले. उसको समझाए. उसके लिए आसानियां पैदा करे. उससे दिल जोड़ने की कोशिश करे. 

शौहर की अहमियत

इस्लाम में शौहर का इतना बड़ा रुतबा है कि अगर इस्लाम में अल्लाह के बाद किसी को सजदा करने का हुक्म होता तो शौहर को सज्दा करने का हुक्म होता. 

हजरत आएशा रजि0 से रिवायत है कि "प्रोफेट मोहम्मद स0 फरमाते हैं कि औरत पर सबसे बड़ा हक उसके शौहर का है, और मर्द पर सबसे बड़ा हक उसकी मां का है."

हजरत अबु हुरैरा रजि0 से रिवातय है कि "प्रोफेट मोहम्मद स0 ने फरमाया कि अगर मैं किसी को किसी मखलूक के लिए सजदे का हुकम करता तो औरत को हुक्म देता कि वह अपने शौहर को सजदा करे."

बीवी की अहमियत

इस्लाम में औरतों को कई हक दिए गए हैं. सबसे बड़ा हक तो यही है कि जब किसी लड़की की शादी होती है तो जब हां नहीं कहती है उसका निकाह नहीं होता है.

हजरत आइशा सिद्दीका रजि0 से रिवायत है कि "प्रोफेट मोहम्मद स0 ने फरमाया कि मुसलमानों में उस आदमी का ईमान ज्यादा कामिल है जिस का अख्लाक बहुत अच्छा हो, जिसका रवैया लुत्फ व मोहब्बत का हो."

हजरत अबूहुरैरा रजि0 से रिवायत है कि "प्रोफेट मोहम्मद स0 फरमाते हैं कि कोई भी ईमान वाला शौहर अपनी मोमिना बीवी से नफरत नहीं करता. अगर उसकी कोई आदत नापसंदीदा होगी तो दूसरी कोई आदत पसंद भी होगी."

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