नई दिल्लीः Greenland: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजरें ग्रीनलैंड पर हैं. वह इसको लेकर साफगोई के साथ अपने इरादे भी जाहिर कर चुके हैं. दूसरी तरफ ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि ग्रीनलैंड उसके लोगों का है, बिकाऊ नहीं है. इसके बाद से सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिका सैन्य कार्रवाई के बल पर ग्रीनलैंड को अपने कब्जे में ले लेगा? एक्सपर्ट भी इस पर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ग्रीनलैंड के पास खुद को 'ट्रंप की सनक' से बचाने के लिए क्या रास्ते हैं?
डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है ग्रीनलैंड
ग्रीनलैंड एक स्वतंत्र देश नहीं, बल्कि डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है. इसकी अपनी संसद और सरकार है. ग्रीनलैंड का दो तिहाई बजट डेनमार्क से आता है. वहीं बाकी का हिस्सा आर्कटिक क्षेत्र में मछली के व्यापार से हासिल होता है. हालांकि 57 हजार की आबादी वाले इस क्षेत्र पर तीखी नजरें करने वाले ट्रंप के इरादों के आड़े एक संधि आ रही है, जो उन्हें ऐसा करने से रोकती है.
1. 1951 की संधि: ट्रंप के आड़े आएगी?
दरअसल ग्रीनलैंड की रक्षा करने का कानूनी दायित्व अमेरिका ने खुद ही 74 साल पहले स्वीकार किया था. अमेरिका ने साल 1951 में डेनमार्क के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें ग्रीनलैंड को हमले से बचाने का वचन दिया था. इसकी वजह यह है कि डेनमार्क की सशस्त्र सेनाएं बिना मदद के किसी संभावित हमलावर से लड़ने में असमर्थ थीं. हालांकि आज भी कमोबेश यही स्थिति है. डेनमार्क का रक्षा बजट 6 अरब पाउंड का है. ये अमेरिका के रक्षा बजट से 100 गुना कम है.
यही नहीं नाटो के अंदर डेनमार्क के पास 17 हजार सैनिक हैं, जबकि अमेरिका के पास 13 लाख सैनिक हैं. दिलचस्प बात यह है कि ग्रीनलैंड की सुरक्षा में भी अमेरिकी सैनिक ही तैनात हैं.
ग्रीनलैंड में किससे लड़ेंगे अमेरिकी?
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के सैन्य अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ शोधकर्ता क्रिस्टियन सोबी क्रिस्टेंसन अमेरिकी मीडिया आउटलेट 'पॉलिटिको' से बातचीत में कहते हैं, 'डेनमार्क इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि वह अकेले ग्रीनलैंड की रक्षा नहीं कर सकता है.' अगर डोनाल्ड ट्रंप बलपूर्वक क्षेत्र पर कब्जा करने का प्रयास करते हैं तो सवाल यह है- अमेरिकी किससे लड़ेंगे? अपनी सेना से? क्योंकि वे पहले से ही वहां मौजूद हैं.'
इसी तरह डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के सीनियर रिसर्चर उलरिक प्रम गाद कहते हैं कि अगर ट्रंप सैन्य कार्रवाई के दम पर आगे बढ़ते हैं तो 'यह दुनिया का सबसे छोटा युद्ध होगा, ग्रीनलैंड में कोई रक्षात्मक क्षमता नहीं है.'
2. EU की संधिः कितनी कागजी और कितनी वास्तविक?
डेनमार्क यूरोपीय संघ (EU) से मदद मांग सकता है. हालांकि पिछले दिनों फ्रांसीसी विदेश मंत्री जीन-नोएल बैरोट ने कहा था कि ईयू भूमि अधिग्रहण नहीं होने देगा, लेकिन यह साफ नहीं है कि डेनमार्क वास्तव में सैन्य सहायता के लिए यूरोपीय संघ पर निर्भर हो पाएगा या नहीं. इसके अलावा यूरोपीय आयोग के एक प्रवक्ता ने कहा था कि ग्रीनलैंड पर अमेरिकी आक्रमण 'अत्यंत सैद्धांतिक' है, लेकिन इस मामले में यूरोपीय संघ की संधि का अनुच्छेद 42 (7) लागू होगा. ये संधि का पारस्परिक-सहायता क्लॉज है. इसके तहत आक्रमण की स्थिति में अन्य राष्ट्रों को सदस्य देश को मदद करनी होती है.
लेकिन ब्रुसेल्स स्कूल ऑफ गवर्नेंस में सुरक्षा, कूटनीति और रणनीति केंद्र से जुड़े डैनियल फिएट एक्स पर लिखते हैं, 'ये क्लॉज अपने वर्तमान स्वरूप में अर्थहीन है, क्योंकि इसके पीछे कोई वास्तविक सैन्य शक्ति है ही नहीं.'
3. नाटो: किसकी मदद करेंगे सदस्य देश?
इसी तरह डेनमार्क के पास एक और रास्ता तो है, लेकिन वह भी धुंधला ही है. दरअसल अमेरिका की तरह ही डेनमार्क भी नाटो का संस्थापक सदस्य है. NATO का आर्टिकल 5 हमले की स्थिति में पारस्परिक-सहायता की बात करता है, लेकिन यह साफ नहीं है कि जब नाटो एक सदस्य दूसरे पर हमला करेगा, तब ये लागू हो सकता है या नहीं. फिर भी अगर अमेरिका ग्रीनलैंड पर सैन्य कार्रवाई करता है तो यह ऐसा होगा कि एक नाटो सदस्य दूसरे पर कब्जा करेगा.
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