Tulsi Puja: आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ऐसे करें तुलसी की पूजा, भगवान विष्णु भी होंगे प्रसन्न
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Tulsi Puja: आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ऐसे करें तुलसी की पूजा, भगवान विष्णु भी होंगे प्रसन्न

Tulsi Chalisa: तुलसी चालीसा का पाठ करने से घर की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है. इसके साथ कुंडली में किसी ग्रह के दोष के प्रभाव को कम करने में भी तुलसी का पाठ काफी लाभकारी सिद्ध होता है.

Tulsi Puja: आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए ऐसे करें तुलसी की पूजा, भगवान विष्णु भी होंगे प्रसन्न

Tulsi Puja: तुलसी का पौधा हिन्दू धर्म में काफी महत्व रखता है. मान्यता है कि तुलसी के पौधे में मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है. दोनों देवी-देवता का आशीर्वाद पाने के लिए शाम के समय तुलसी के पास घी का दीपक जलाना चाहिए. जीवन में समस्याओं से निजात पाने के लिए और दरिद्रता दूर करने के लिए नियमित रुप से तुलसी की पूजा और तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए. 

तुलसी चालीसा पाठ के फायदे

तुलसी चालीसा का पाठ करने से घर की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है. इसके साथ कुंडली में किसी ग्रह के दोष के प्रभाव को कम करने में भी तुलसी का पाठ काफी लाभकारी सिद्ध होता है. यहां पढ़ें तुलसी चालीसा का पाठ.

तुलसी चालीसा का पाठ

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानि ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुण खानि ।।
श्री हरि शीश बिराजिनी, देहु अमर वर अम्बा जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब।।

धन्य धन्य श्री तुलसी माता।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता।।

हरि के प्राणहू से तुम प्यारी।
हरिहिं हेतु कीन्हों तप भारी ॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो।
तब कर जोरि विनय अस कीन्ह्यो।

हे भगवन्त कन्त मम होहू।
दीन जानि जनि छांड़हु छोहू।
सुनि लख्मी तुलसी की बानी।
दीन्हों श्राम कध पर आनी॥

अस अयोग्य वर मांगन हारी।
होहु विटप तुम जड़ तनु धारी ॥

सुनि तुलसहिं श्राप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहुँ नीचन धामा ॥

दियो वचन हरि तब तत्काला।
सुनहु सुमुखि जनिहोहु बिहाला ।।

समय पाई व्है रों पति तोरा।
पुजिहौं आस वचन सत मोरा ।।

तब गोकुल महं गोप सुदामा।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥

कृष्ण रास लीला के माहीं।
राधे शक्यो प्रेम लखि नाहीं॥

दियो श्राप तुलसिंह तत्काला।
नर लोकहिं तुम जन्महु बाला ।।

यो गोप वह दानव राजा।
शंख चूड़ नामक शिर ताजा॥

तुलसी भई तासु की नारी।
परम सती गुण रूप अगारी ॥

अस द्वै कल्प गीत जब गयऊ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को।
असुर जलन्धर नाम पति को॥

करि अति द्वन्द्व अतुल बलधामा।
लीन्हा शंकर से संग्रामा ॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे।
मरहि न तब हर हिरहिं पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी।
कोउ न सके पतिहिं संहारी॥

तब जलन्धरहि भेष बनाई।
वृन्दा ढिंग हरि पहुच्यो जाई ॥

शिव हितलहि करि कपट प्रसंगा।
कियो सतीत्व धर्म तेहि भंगा।
भयो जलन्धर कर सुनि संहारा।
उर शोक अपारा।।

तिहिं क्षण दियो कपट हरि टारी।
लखि वृन्दा दुख गिरा उचारी ॥
जलन्धरहिं जस हत्यो अभीता।
सोई रावण तस हरिही सीता।।

अस प्रस्तर सम हृदय तुम्हारा।
धर्म खण्डि मम पतिहिं संहारा॥

यहि कारण लहि श्राप हमारा।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा।।
सुनि हरि तुरतहिं वचन उचारे।
दियो श्राप तुम बिना विचारे ।।

लख्यो न निज करतूति पती को।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥

जड़मति तुहुँ अस हो जड़रूपा।
जगमहं तुलसी विटप अनूपा ॥

धग्व रूप हम शालिगरामा।
दी गण्डकी बीच ललामा ।।

जो तुलसीदल हमहिं चढ़ इहैं।
सब सुख भोगि परम पद पइ हैं।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत।
प्तो सहस्त्र घट अमृत डारत।।
तुलसी हरि मन रंजनि हारी। रोग दोष दुख भंजनि हारी ॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर।
तुलसी राधा में नहिं अन्तर॥
व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा।
बिनु तुलसीदल हरिहिं प्यारा ॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाहीं।
लहत मुक्ति जन संशय नांहीं।।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत।
तुलसिहिं निकट सहसगुण पावत।।

बसत निकट दुर्बासा धामा।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
पाठ करहिं जो नित नर नारी।
होहिं सखी भाषहिं त्रिपुरारी॥

।।दोहा।।
 
तुलसी चालीसा पढ़हिं तुलसी तरु गृह धारि।
दीपदान करि पुत्रफल पावहि बन्ध्यहं नारि ॥
सकल दुःख दरिद्र हरि हार है परम प्रसन्न।
अतिशय धन जन लहहिं गृह बसहिं पूरणा-अत्र
लहि अभिमत फल जगत महं लहहिं पूर्ण सबकाम
जइदल अर्पहिं तुलसि तहं सहस बसहिं हरिराम
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सुत सुखराम।
मानस चालीसा रच्यो जग महं तुलसीदास ॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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