OPINION: हिंदी के साथ क्या दिक्कतें हैं, अब तक क्यों नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा; हिंदी दिवस पर क्यों होती है सबसे ज्यादा चर्चा?
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OPINION: हिंदी के साथ क्या दिक्कतें हैं, अब तक क्यों नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा; हिंदी दिवस पर क्यों होती है सबसे ज्यादा चर्चा?

What Problems With Hindi: देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता रहा है, लेकिन 3400 साल में बनी और लगातार विकसित हुई हिंदी अब तक स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है. क्योंकि हिंदी के राष्ट्रभाषा नहीं बनने के पीछे आज भी तमाम रुकावटें हैं. आइए, जानते हैं कि महात्मा गांधी समेत तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के संकल्पों के बावजूद हिंदी को उचित आधिकारिक सम्मान नहीं मिल पाने के पीछे असल में क्या-क्या दिक्कतें हैं? 

OPINION: हिंदी के साथ क्या दिक्कतें हैं, अब तक क्यों नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा; हिंदी दिवस पर क्यों होती है सबसे ज्यादा चर्चा?

Hindi Diwas 2024: भारत के संविधान के अनुच्छेद 343(1) के तहत देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया है. राजभाषा, किसी राज्य या देश की वह घोषित भाषा होती है जो सभी राजकीय प्रयोजन यानी सरकारी काम-काज में इस्तेमाल की जाती है. संविधान के अनुच्छेद 351 में संघ को यह कर्त्तव्य सौंपा गया है कि हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करें, जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके. हालांकि, राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को अब तक उचित सम्मान नहीं दिया जा सका है.

भारत की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं, किसी को नहीं मिला राष्ट्रीय दर्जा

आंकड़ों की बात करें तो हिंदी भारत में सबसे ज्यादा और दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. भारत में हिंदी के महत्व को बताने के मकसद से हर साल 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है. क्योंकि 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया था. लेकिन, आज तक हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता नहीं हासिल कर सकी है. हालांकि, हिंदी ही नहीं दूसरी कोई भाषा भी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है. क्योंकि भारत की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है. संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है.

क्यों राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई हिंदी? राजभाषा बनाने के बहाने खानपूर्ति

दरअसल, स्वतंत्रता हासिल करने के बाद संविधान सभा में भाषा के विषय पर चर्चा और तीखी बहस लगभग बेनतीजा रही थी. कुछ नेता हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में पक्ष में थे. वहीं, कुछ सदस्य इसके सख्त खिलाफ. कई नेताओं का कहना था कि भारत विविधताओं का देश है, जहां अलग-अलग भाषाएं और बोली का चलन है. ऐसे में किसी भी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता. आखिरकार हिंदी को राजभाषा बनाने का फैलसा किया गया. 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान के अनुच्‍छेद 343(1) में हिंदी को देवनागरी लिपि के रूप में राजभाषा का दर्जा दिया.

राष्ट्रभाषा और राजभाषा में महीन अंतर, हिंदी और अंग्रेजी का समीकरण

राष्ट्रभाषा किसी देश की वह भाषा है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यों के लिए किया जाता है. इससे अलग राजभाषा वह भाषा है जिसका इस्तेमाल कोर्ट, संसद, केंद्र और राज्यों के बीच संचार समेत तमाम सरकारी कामकाज के लिए किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 343 के मुताबिक, केंद्र सरकार हिंदी भाषी राज्यों के साथ हिंदी में ही आधिकारिक संचार करती है. हालांकि, सहयोगी आधिकारिक भाषा के तौर पर अंग्रेजी भी कायम है. इसका मतलब यह है कि संविधान के मुताबिक, हिंदी और अंग्रेजी देश की आधिकारिक भाषाएं हैं, राष्ट्रभाषा नहीं. 

हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने की राह में क्या हैं सरकारी दिक्कतें
 
विविधताओं से भरा देश होने की वजह से भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां लिखी, पढ़ी और बोली जाती हैं. सभी भाषाओं का देश में बराबर समान और आदर किया जाता है. देश भर के नागरिक अपनी मातृभाषा बोलने, लिखने और पढ़ने के लिए स्‍वतंत्र हैं. इसके अलावा ब्रिटिश राज में फारसी की जगह अंग्रेजी को अपनाने के दौरान नौकरी के मौके और उम्मीदवारों की समस्याओं से सबक लेते हुए भी संविधान निर्माताओं के मुताबिक, किसी भाषा के साथ परस्पर मुकाबले को रोकने के लिए देश में किसी भी एक भाषा को राष्‍ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया था. 

1965 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी की जल्दबाजी भी बड़ी वजह

लेखक विष्णु शर्मा की किताब इंदिरा फाइल्स में कई ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर बताया गया है कि साल 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री कैबिनेट में सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी भी हिंदी के राष्ट्रभाषा या पूरी तरह राजभाषा नहीं बन पाने और तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू होने की जिम्मेदार नेता थीं. लेखक ने बीबीसी पर प्रकाशित वामपंथी राजनीति की दिग्गज नेता सुभासिनी अली के संस्मरण के हवाले से इस पूरे वाकए के बारे में विस्तार से बताया है. क्योंकि इंदिरा गांधी की मिनिस्ट्री से जारी सर्कुलर के बाद ही यह आंदोलन भड़क उठा था.
 
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को बिना बताए मद्रास जाकर दिया आश्वासन

रामचंद्र गुहा की पुस्तक भारत: गांधी के बाद में शास्त्रीजी के शासनकाल 1965 में चल रहे हिंदी विरोधी आंदोलन को लेकर कई पन्ने लिखे गए हैं. हालांकि, इसमें इंदिरा गांधी को लेकर एक शब्द भी नहीं लिखा गया है. दूसरी ओर, इंदिरा गांधी हिंदी विरोधी आंदोलन को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को बिना बताए मद्रास उड़ गई थीं. वहां जाकर उन्होंने भारत सरकार की तरफ से आंदोलनकारियों को आश्वासन दे दिया था कि हिंदी इकलौती राजभाषा के तौर पर नहीं लागू की जाएगी, बल्कि अंग्रेजी का भी विकल्प मिलेगा. 

संविधान सभा में राजभाषा के ऊपर तीन साल तक कई बार गंभीर चर्चा 

संविधान सभा में राजभाषा के ऊपर तीन साल तक कई बार चर्चा हुई, लेकिन कोई बात नहीं बन पा रही थी. 12 सितम्बर 1949 से 14 सितम्बर 1949 तक आखिरी और लम्बी चर्चा हुई थी. सभा में दक्षिण के तमाम सदस्य हिंदी और देवनागरी को उन पर थोपने को लेकर विरोध जता रहे थे. बाद में नेहरू कैबिनेट के सदस्य बने टीटी कृष्णामचारी और गोपाल स्वामी आयंगर इनमें प्रमुख थे. वहीं, अलगू राय शास्त्री और आरवी धुलेकर जैसे कई सदस्य देश पर विदेशी भाषा अंग्रेजी को थोपना नहीं चाहते थे. 

मुंशी-आयंगर फॉर्मूला के तहत हिंदी बनी आधिकारी भाषा, अंग्रेजी बाध्यता

आखिर में बीच का रास्ता निकाला गया और मुंशी-आयंगर फॉर्मूला (केएम मुंशी और गोपाल स्वामी आयंगर) के तहत हिंदी को देवनागरी लिपि के साथ राष्ट्रीय भाषा नहीं बल्कि आधिकारिक भाषा घोषित किया गया, लेकिन तय किया गया कि 15 साल तक अंग्रेजी भी प्रयोग में रहेगी. बाद में धीरे-धीरे अंग्रेजी को चलन से बाहर कर दिया जाएगा. हर पांच साल में राजभाषा आयोग बनाने की बात भी की गई. 1955 में बीजी खेर आयोग भी बना. 

खेर आयोग की सिफारिशों के बाद गोविंद बल्लभ पंत की अध्यक्षता में 1957 में कमेटी बनाई गई. उसने 2 साल बाद अपनी सिफारिशें दीं कि हिंदी को प्राथमिक और अंग्रेजी को द्वितीयक आधिकारिक भाषा घोषित किया जाए. इन सिफारिशों को विरोध शुरू हो गया तो पंडित नेहरू ने हिंदी विरोधियों को संसद में 7 अगस्त 1959 को आश्वासन दिया कि कुछ भी थोपा नहीं जाएगा. अंग्रेजी बंद नहीं की जाएगी. 

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हिंदी में शामिल हैं देश की 21 और विदेश की दर्जन भर भाषाओं के शब्द

हिंदी भाषा संस्कृत, प्राकृत, पाली के सहज और आसान रुप में आम जन-जीवन में घुली-मिली है. भारतीय संविधान में शामिल दूसरी 21 भाषाओं असमिया, बांग्ला, गुजराती, कन्नड़ कश्मीरी, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत तमिल, तेलुगु, उर्दू, सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली सहित सम्पूर्ण भारत की स्थानीय बोलियों और अंग्रेजी समेत अन्य यूरोपीय भाषाओं के शब्दों का हिंदी में सुंदर तरीके से समावेश किया गया है. दूसरी ओर, दुनिया के 200 से ज्यादा यूनिवर्सिटी में हिंदी को पढ़ाया जाता है.

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