harsiddhi mata temple ujjain: 51शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता हरिसिद्धि के धाम में 51फुट ऊंचे दो दीप स्तंभ में अचानक दीप जलने लगे. जिसको लेकर लोग कई तरह की बातें कह रहे हैं, कोई इसे चमत्करा मान रहा है तो कोई इसे मां का रुद्र रूप बता रहा है.
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राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी उज्जैन में शिप्रा किनारे स्थापित 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता हरसिद्धि के (harsiddhi mata) नाम से प्रसिद्ध है. जहां कहा जाता है कि माता सती की दाहिनी कोहनी गिरी. माता के स्थान का एक वीडियो सोशल मीडिया (social media) पर गुरुवार को जमकर वायरल (viral) हुआ. वीडियो में मंदिर परिसर में स्थित 51 फुट ऊंचे दो दीप स्तंभ में दोपहर के वक्त अचानक दीप प्रज्वलित हो जाते हैं अचानक दीप प्रज्वलित होते देख लोग उसका वीडियो बना कर वायरल कर देते है.
अब कोई अचानक हुए इस दीप प्रज्वलन को चमत्कार मान रहा है तो कोई माता सती का रूद्र रूप बता रहा है. आइये जानते हैं मंदिर के पुजारी और आसपास के दुकान संचालकों का क्या कहना है, क्योंकि हर रोज देर शाम संध्या आरती के वक्त माता के धाम में दीप प्रज्वलन किया जाता. दोपहर में अचानक हुई ये घटना एक रहस्य बन गई है.
जानिए क्या कहा दुकानदार ने
मंदिर के बाहर दुकान संचालकों में से प्रशांत साहुदेकर का कहना है कि ऐसा सालों में एक बार होता है यह माता सती का रूद्र रूप है माता सती अपना यह चमत्कार समय-समय पर देती रहती है. लेकिन आज की ये घटना हैरान करने वाली है. फायर कर्मी भी आग पर काबू बमुश्किल ही पा पाए.
जानिए क्या कहा पुजारी ने
मंदिर के पुजारी और जानकारों ने इसका अलग तर्क दिया है, पुजारी राजेश गोस्वामी का कहना है कि देर शाम हर रोज दीप प्रज्वलित किए जाते हैं. दीपस्तंभ में तेल रहता ही रहता है जो बाती है, वह भी थोड़ी बहुत बच जाती है, पूरी नहीं जल पाती, क्योंकि बीती रात तेज आंधी तूफान जले तो कुछ बाती रह गई. लकड़ी का जो बुरादा भी लगाया गया था, वह भी बच गया. ऐसे में तेज धूप के कारण यह आग लगी होगी. लेकिन चमत्कार यह है कि कोई जनहानि कोई नुकसान नहीं हुआ मां की कृपा है। पुजारी ने बताया कि कुछ दीपो को नुकसान हुआ है अब जब तक इसका सुधार कार्य पूर्ण नहीं हो जाता दीपों को नीचे ही प्रज्वलित किया जाएगा।
हर रोज प्रज्वलित किए जाते हैं दीप
आपको बता दें कि मंदिर में स्थापित 51 फीट ऊंचे 1100 दीपों के दो दीप स्तम्भ हैं. जिन्हें जलाने में एक बार में 60 लीटर तेल की आवश्यकता होती है व 4 किलो रुई की, समय-समय पर लकड़ी का बुरादा भी लगाया जाता है. इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है, जो काफी मुश्किल है. आज भी शहर का एक परिवार इस परंपरा को बखूबी निभा रहा है. ये दीप हर रोज प्रज्वलित किए जाते है.
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