रावण की वजह से लाखों रुपये कमा रहा छत्तीसगढ़ का ये परिवार, 50 सालों से जारी ये काम...
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रावण की वजह से लाखों रुपये कमा रहा छत्तीसगढ़ का ये परिवार, 50 सालों से जारी ये काम...

दुर्ग में पिछले 50 सालों से एक ही परिवार इसी तरह रावण के विशालकाय पुतले बनाकर अपनी पारिवारिक परम्परा का निर्वहन कर रहे है.

रावण की वजह से लाखों रुपये कमा रहा छत्तीसगढ़ का ये परिवार, 50 सालों से जारी ये काम...

हितेश शर्मा/दुर्ग:  बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा कई मायनों खास पर्व माना जाता है. जिसमें भगवान श्रीराम का नाम लेकर लोग पुण्य कमाते है. लेकिन छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कुथरेल गांव में लोग रावण की वजह से लाखों की कमाई कर लेते है. जी हां, रावण की वजह से गांव के कई लोग लाखों रुपये कमा रहे हैं.

दरअसल दुर्ग जिले का कुथरेल गांव महज साढ़े चार हजार की आबादी वाले गांव में अब चौथी पीढ़ी रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले बना रहे हैं. पिछले 50 सालों से एक ही परिवार इसी तरह रावण के विशालकाय पुतले बनाकर अपनी पारिवारिक परम्परा का निर्वहन कर रहे है.

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गांव के बुजुर्ग ने शुरुआत की थी
इस गांव मे रावण के भीमकाय पुतले बनाने की शुरुआत गांव के ही बुजुर्ग बिसोहाराम साहू ने की थी. पेशे से वे बढ़ई थे लेकिन गांव की रामलीला मंडली में रावण का किरदार निभाते थे. अपने किरदार में इतने रम गए कि उन्होंने दशहरे के लिए रावण का पुतला बनाना सीखा. धीरे-धीरे उनके बनाए पुतलों की मांग बढ़ती गई. तब उनके ही परिवार के लोमन सिंह साहू ने यह काम सीखा और आज इस परंपरा को स्व. लोमन सिंह के बेटे डॉ जितेन्द्र साहू आगे बढ़ा रहे है.

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रावण के नाम से बनी पहचान
डॉ जितेन्द्र ने बताया कि अब उनके परिवार के बच्चे भी रावण का पुतला बनाना सीख गए है. खास बात यह है कि बिसोहाराम के बाद उनके बेटे लोमन सिंह ने भी कई वर्षों तक रामलीला में रावण का किरदार निभाया और गांव में उनकी पहचान ही रावण के नाम से हो गई.                        

10 से ज्यादा जिलों में जा रहे रावण
साहू परिवार द्वारा निर्मित रावण के पुतले छत्तीसगढ़ के 10 से ज्यादा जिलों में जाते हैं. जिसमें दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, सहित करीब 10 जिले शामिल है. अकेले उनके पास ही इस बार 25 समितियों ने रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले तैयार करने का आर्डर दिया है. 50 ,70 और अधिकतम 90 फीट के रावण इस बार बनाए जा रहे है. वे भिलाई-दुर्ग सहित रायपुर के बीरगांव और आसपास के कई जिलों और गांवों की समितियों के लिए भी पुतले तैयार कर रहे हैं.

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महिलाएं भी दे रही साथ
इस पूरे काम मे साहू परिवार की महिलाएं भी साथ मे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है. सुखवंती बाई कागज के लेप से मुखोटा तैयार कर रही है तो हीरा बाई उसको सुखा रही है. इस काम में घर की महिलाएं पुरुष कारीगरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है. एक पुतले की कीमत करीब 25 हजार रुपए तक होती है. 

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इस तरह होता है रावण तैयार
आपको बता दे कि रावण के शरीर को तैयार करने बांस, पुरानी बोरी पुट्टा और कागज का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन मुखौटा बनाने में बड़ा वक्त लगता है. इसके लिए पहले मिट्टी का एक खांचा तैयार किया जाता है. जिस पर कागज को सजाया और लगाया जाता है. उसके बाद अखबार के पन्ने को एक-एक लेयर कर उस पर बिछाया जाता है. करीब 20 से 25 लेयर के बाद उसे सूखने छोड़ दिया जाता है. जब यह स्ट्रक्चर सूख जाता है, तब स्प्रे पेटिंग के जरिए इसे चेहरे का रूप दिया जाता है. यह चेहरा दशहरा के दिन ही लगाया जाता है. पुरे रावण के पुतले को बनाने में करीब 2 माह का समय लगता है. इन 60 दिनों में पूरी शिद्दत और राम भक्ति के साथ रावण के ये विशाल काय पुतले तैयार किए जाते है. 

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